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अल फलाह यूनिवर्सिटी चेयरमैन के घर के अवैध निर्माण गिराने पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक, जाने क्या दी दलीलें?

November 23, 2025

इंदौर । फरीदाबाद (Faridabad) के अल-फलाह यूनिवर्सिटी (Al-Falah University) के कुलाधिपति जवाद अहमद सिद्दीकी (Chancellor Jawad Ahmed Siddiqui) के महू स्थित पैतृक मकान के कथित अवैध निर्माण (Illegal construction) को गिराने को लेकर छावनी परिषद के नोटिस के अमल पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) की इंदौर पीठ ने अंतरिम रोक लगा दी है। अदालत ने मकान पर मालिकाना हक का दावा करने वाले एक शख्स की याचिका पर उक्त आदेश जारी किया। याचिकाकर्ता ने हिबानामा (इस्लामी परंपरा के मुताबिक भेंट स्वरूप किसी व्यक्ति के नाम जायदाद कर देना) के जरिए मकान पर मालिकाना हक का दावा किया है।

पिता रहे हैं काजी
अधिकारियों के मुताबिक, अल फलाह यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति जवाद अहमद सिद्दीकी मूल रूप से महू के रहने वाले हैं। उनके पिता हम्माद अहमद लंबे समय तक महू शहर काजी रहे थे। उनका वर्षों पहले निधन हो चुका है।


पिता के नाम पर है संपत्ति
अधिकारियों की मानें तो इंदौर से करीब 30 किलोमीटर दूर महू की छावनी परिषद के रिकॉर्ड में मुकेरी मोहल्ले का मकान क्रमांक 1371 जवाद अहमद सिद्दीकी के दिवंगत पिता हम्माद अहमद के नाम पर दर्ज है।

ध्वस्तीकरण का जारी हुआ था नोटिस
छावनी परिषद के 19 नवंबर को जारी नोटिस में कहा गया था कि 3 दिन के भीतर इस मकान का कथित अवैध निर्माण हटा लें अन्यथा परिषद कानूनी प्रावधानों के तहत इस निर्माण को ढहा देगी और इस कार्रवाई का खर्च मकान के कब्जाधारी या संपत्ति के मालिक के वैध वारिसों से वसूलेगी। सनद रहे हाल फिलहाल में बुलडोजर से अवैध निर्माण गिराए जाने चर्चित घटनाएं सामने आई हैं।

‘हिबा’ के तहत संपत्ति देने का दावा
महू के इस मकान में रह रहे अब्दुल माजिद (59) ने छावनी परिषद के नोटिस को चुनौती देते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। माजिद ने याचिका में कहा है कि अपने पिता हम्माद अहमद के निधन के बाद यह संपत्ति उन्हें जवाद अहमद सिद्दीकी ने साल 2021 में ‘हिबा’ के तहत दी थी।

याचिकाकर्ता ने बताया मालिक
खुद को पेशे से किसान बताने वाले माजिद ने याचिका में दलील दी है कि इस तरह से हिबानामा के आधार पर याचिकाकर्ता यानी वह ही इसका मालिक है।

सुनवाई का मौका दिए बिना नोटिस
माजिद के वकील अजय बागड़िया ने अदालत में दलील दी कि छावनी परिषद ने उनके मुवक्किल को सुनवाई का मौका दिए बिना नोटिस जारी कर दिया। वकील ने आगे कहा कि उनके मुवक्किल को सुनवाई का एक मौका जरूर दिया जाना चाहिए।

छावनी परिषद की क्या दलील?
उधर, छावनी परिषद के वकील आशुतोष निमगांवकर ने अदालत में दलील दी कि इस मकान को लेकर पहले भी नोटिस जारी किए गए थे लेकिन इनका कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया। ऐसे में अब याचिकाकर्ता को जवाब दाखिल करने की मोहलत नहीं दी जानी चाहिए।

30 साल पहले दिए थे नोटिस
जस्टिस प्रणय वर्मा ने दोनों पक्षों की दलीलों पर गौर के बाद कहा कि हालांकि पहले याचिकाकर्ता को नोटिस जारी किए गए थे लेकिन वे लगभग 30 साल पहले 1996/1997 में जारी किए गए थे। इसके बाद अब जाकर फिर नोटिस जारी किया गया है।

सुनवाई का मौका दिया जाना चाहिए
अदालत ने कहा कि ऐसे में यदि पिछले नोटिस के लगभग 30 साल बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई कार्रवाई की जानी थी तो उसे सुनवाई का मौका दिया जाना चाहिए। अत: मामले के मौजूदा तथ्यों को देखते हुए निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता 15 दिनों के भीतर जरूरी दस्तावेजों के साथ प्रतिवादियों/सक्षम प्राधिकारी के सामने अपना जवाब दाखिल करे।

सुनवाई पूरी नहीं होने तक ऐक्शन नहीं
अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को सुनवाई का पूरा मौका दिया जाएगा। इसके बाद एक तर्कपूर्ण आदेश जारी किया जाएगा। जब तक प्रक्रिया पूरी नहीं होती तब तक याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाएगी। अदालत ने स्पष्ट किया कि वह याचिका के गुण-दोष पर कोई राय जताए बगैर इसका निराकरण कर रही है।

दिल्ली ब्लास्ट के बाद से एजेंसियों के रडार पर
बता दें कि दिल्ली में लाल किला के पास हुए कार धमाके के बाद अल फलाह यूनिवर्सिटी एजेंसियों की जांच के घेरे में है। ईडी ने अल फलाह यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति जवाद अहमद सिद्दीकी को गिरफ्तार कर लिया है। वह फिलहाल ईडी की कस्टडी में हैं। 10 नवंबर को हुए इस विस्फोट में 15 लोगों की जान चली गई थी।

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