चेन्नई । मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी भी सरकारी भूमि का उपयोग केवल किसी एक धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश (India is a secular country) है और अगर कोई भूमि सार्वजनिक उपयोग के लिए उपलब्ध है, तो वह सभी समुदायों के लिए समान रूप से खुली होनी चाहिए।
यह फैसला न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामिनाथन ने उस मामले में सुनाया, जिसमें एक तहसीलदार ने एक हिंदू निवासी को सार्वजनिक मैदान पर अन्नदानम (भोजन वितरण) करने की अनुमति देने से मना कर दिया था। यह मैदान पिछले सौ वर्षों से केवल ईसाई समुदाय द्वारा उपयोग में लाया जा रहा था।
अदालत की सख्त टिप्पणी
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायमूर्ति स्वामिनाथन ने कहा, ‘जब जमीन सरकारी स्वामित्व की है तो उसे किसी भी धार्मिक या सामुदायिक पृष्ठभूमि के बावजूद सभी वर्गों के उपयोग के लिए उपलब्ध होना चाहिए। यदि किसी को केवल धर्म के आधार पर रोका जाता है, तो यह निश्चित रूप से संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है।’उन्होंने आगे कहा कि भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ है और कोई भी पूर्व-संवैधानिक व्यवस्था, जो संविधान के मूल सिद्धांतों के विपरीत हो, उसे जारी नहीं रखा जा सकता।
1912 के समझौते को ठुकराया
मामले में एक ईसाई पक्षकार ने दलील दी थी कि 1912 से चली आ रही एक सहमति के तहत यह मैदान केवल ईसाई समुदाय के उपयोग के लिए आरक्षित है और 2017 में हुई एक शांति बैठक में इस समझौते को दोहराया गया था। अदालत ने इस तर्क को असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया।
धर्म के नाम पर बहिष्कार नहीं- अदालत
न्यायमूर्ति स्वामिनाथन ने यह भी कहा कि यह अन्नदान कार्यक्रम ईस्टर के समय नहीं, बल्कि 3 नवंबर को आयोजित किया जाना था, जब मैदान खाली था। उन्होंने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि ईस्टर के अवसर पर हिंदू वहां कार्यक्रम करना चाहते थे। ईस्टर के दौरान मैदान का उपयोग केवल ईसाई समुदाय को करना चाहिए और इसमें कोई विवाद नहीं। लेकिन जब मैदान खाली है, तो अन्य समुदायों को उससे वंचित नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने तहसीलदार का आदेश रद्द किया
अदालत ने आथूर तालुक तहसीलदार के 24 अक्टूबर के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उन्होंने अन्नदान के आयोजन की अनुमति देने से इंकार किया था। याचिकाकर्ता के. राजमणि ने कालीअम्मन मंदिर के कुंभाभिषेकम (मंदिर शुद्धिकरण अनुष्ठान) के अवसर पर अन्नदान करने की अनुमति मांगी थी। तहसीलदार ने उन्हें किसी अन्य स्थान पर आयोजन की अनुमति दी थी, जिससे असंतुष्ट होकर राजमणि ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का हवाला
न्यायमूर्ति ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देते हैं, और केवल कानून-व्यवस्था की आशंका के आधार पर किसी धार्मिक आयोजन पर रोक नहीं लगाई जा सकती। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार बाइबल अध्ययन केंद्र की स्थापना को अदालत ने पहले अनुमति दी थी, उसी सिद्धांत के अनुसार कुंभाभिषेकम के अवसर पर अन्नदान भी आयोजित किया जा सकता है।
यह बहुत ही दुखद स्थिति है- न्यायमूर्ति स्वामिनाथन
न्यायमूर्ति स्वामिनाथन ने यह भी कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि धार्मिक आयोजन को लेकर इतना विरोध हो रहा है। उन्होंने बताया कि संबंधित गांव में 2,500 ईसाई परिवार हैं और केवल 400 हिंदू परिवार, यही कारण हो सकता है कि प्रशासन ने कानून-व्यवस्था की समस्या की बात कही। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही दुखद स्थिति है। हर धार्मिक आयोजन में अन्य धर्मों के लोगों की भागीदारी होनी चाहिए। जब मेरा ईसाई मित्र क्रिसमस मनाता है, तो मुझे सबसे पहले उसे शुभकामना देनी चाहिए।
यही है भारत की सांस्कृतिक सुंदरता- न्यायमूर्ति स्वामिनाथन
न्यायमूर्ति ने उदाहरण देते हुए कहा कि मुझे याद है, एक मुस्लिम दोस्त ने रमजान के दौरान मेरे लिए केवल शाकाहारी नोंबु कांजी तैयार की थी ताकि मैं भी उसका आनंद ले सकूं। यही है हमारे समाज की खूबसूरती। जब तक ऐसी सांस्कृतिक और सभ्यतागत एकता व्यवहार में नहीं दिखाई देगी, तब तक समाज में शांति संभव नहीं है।” अंत में अदालत ने कहा कि प्रशासन को सभी समुदायों के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए और धर्म के आधार पर किसी को भी सार्वजनिक संपत्ति के उपयोग से वंचित नहीं किया जा सकता।
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