नई दिल्ली। नेशनल सिक्योरिटी (National Security) को ध्यान में रखते हुए एजेंसियों ने भारत में रह रहे अवैध बांग्लादेशियों (illegal Bangladeshis) की पहचान कर उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू की है. इसी अभियान के तहत साल के शुरुआती महीनों में सुनाली खातून नाम की एक महिला को वापस बांग्लादेश भेज दिया गया. वह गर्भवती थीं. कुछ दिनों पहले ही बांग्लादेश की अदालत ने सुनाली को भारतीय नागरिक करार दे दिया. इससे उनकी समस्या काफी बढ़ गई थी. सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा और अब देश की सर्वोच्च अदालत से उन्हें राहत पहुंचाने वाली खबर सामने आई है.
भारत में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशी नागरिकों की कई अवैध गतिविधयों में संलिप्तता पाई गई. लगातार ऐसे मामले सामने आने के बाद अवैध बांग्लादेशियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई. बड़ी तादाद में लोगों को डिपोर्ट किया गया तो बहुत लोग खुद ही सीमा पार कर बांग्लादेश जाने लगे. पश्चिम बंगाल की सुनाली खातून को भी इसी क्रम में उनके 8 साल के बेटे के साथ बांग्लादेश भेज दिया गया था. पहले बांग्लादेश सरकार और अब वहां की अदालत ने सुनाली को वहां का नागरिक मानने से इनकार कर दिया. सुनाली को भारतीय नागरिक करार दिया गया. बता दें कि सुनाली गर्भवती हैं, ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठा कि यदि सुनाली ने बांग्लादेश में ही बच्चे को जन्मू दिया तो वह किस देश का नागरिक होगा? फौरी तौर पर इस मामले का समाधान हो गया है.
सुनाली खातून से जुड़े मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जसिटस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने की. केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए. पश्चिम बंगाल की ओर से कपिल सिब्बल ने भी अपनी दलील रखी. दरअसल, बांग्लादेश भेजे जाने के 5 महीने से ज्यादा समय बाद केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह मानवता के आधार पर गर्भवती सुनाली खातून और उसके आठ साल के बेटे को वापस लाएगी. हालांकि, सरकार का यही कहना है कि सुनेली बांग्लादेश की अवैध प्रवासी हैं. CJI सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा, ‘कानून को मानवता के आगे झुकना चाहिए.’ अदालत ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से यह भी कहा कि वे सरकार से पूछें कि जून में दिल्ली से पकड़े गए और बाद में बांग्लादेश भेजे गए अन्य चार लोगों को वापस लाने पर उसके क्या निर्देश हैं. 3 अक्टूबर 2025 को बांग्लादेश की एक अदालत ने सुनाली और उसके परिवार को भारतीय नागरिक बताया था. ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के अनुसार, तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र सरकार ने केवल महिला की गंभीर गर्भावस्था को देखते हुए मानवता के आधार पर फैसला लिया है. सुनाली और उनके बेटे को दिल्ली वापस लाया जाएगा और उसे उचित स्वास्थ्य सुविधा दी जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया निर्देश?
सुनाली के पिता भोदू शेख की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ से कहा कि सुनाली अपने पिता के साथ पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले में अपने घर पर ज्यादा सुरक्षित और आराम से रहेगी. ममता बनर्जी सरकार ने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के माध्यम से इस याचिका का समर्थन किया और सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वह केंद्र सरकार से बाकी चार लोगों (जिनमें सुनाली के पति दानिश भी शामिल हैं) को वापस लाने पर जवाब मांगे. पीठ ने इस बात से सहमति जताई और कहा कि सुनाली की गर्भावस्था के दौरान उसकी बेहतर देखभाल हो सकेगी अगर वह अपने पिता के पास रहे. कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि सुनाली और उसके बेटे को भारत वापस लाने के बाद उन्हें पश्चिम बंगाल भेजा जाए. साथ ही कोर्ट ने बीरभूम के मेडिकल ऑफिसर को निर्देश दिया कि वह सुनाली को गर्भावस्था से जुड़ी सभी स्वास्थ्य सेवाएं मुफ्त में उपलब्ध कराए. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि सरकार ने भोदू शेख के खिलाफ यह कहकर कोई कार्रवाई नहीं की कि वह बांग्लादेशी हैं, इसलिए यह माना जा सकता है कि वे भारत के नागरिक हैं.
SC के फैसले पर क्या बोलीं सुनाली खातून?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सुनाली खातून का क्या कहना है? 26 साल की सुनाली खातून ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के लौटाने के निर्देश से वह बहुत खुश हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि वह अपने बंगाल के बीरभूम जिले में माता-पिता के पास कब लौट पाएंगी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रिएक्शन देते हुए सुनाली ने कहा कि बांग्लादेश से बताया कि मैं तुरंत अपने घर बीरभूम लौटना चाहती हूं, लेकिन पता नहीं यह संभव होगा या नहीं. मेरी कमर के निचले हिस्से में दर्द है. मुझे नहीं पता कि मेरा बच्चा भारत में पैदा होगा या यहीं.
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