
डेस्क: संसद (Parliament) के शीतकालीन सत्र (Winter Session) में जहां एक ओर वंदे मातरम (Vande Mataram) पर एक दिन की विशेष चर्चा होने वाली है तो वहीं दूसरी ओर देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी (Maulana Mahmood Madani) ने वंदे मातरम को लेकर हैरान करने वाला बयान दिया है, जिस पर विवाद मचना लाजिमी है.
भोपाल में जमीयत के राष्ट्रीय प्रबन्धक कमेटी के अधिवेशन में वंदे मातरम को लेकर मौलाना महमूद मदनी ने कहा, ”मुर्दा कौमों के लिए मुश्किल नहीं होती है, क्योंकि वह तो सरेंडर कर देती हैं. वह कहेंगे ‘वंदे मातरम’ पढ़ो तो पढ़ना शुरू कर देंगे, लेकिन यह पहचान होगी मुर्दा कौम होने की. अगर जिंदा कौम है तो फिर हौसला बुलंद करना पड़ेगा और हालात का मुकाबला करना पड़ेगा.” मौलाना महमूद मदनी के इस बयान पर बवाल मच तय माना जा रहा है.
मुसलमानों से जुड़े मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को लेकर मौलाना महमूद मदनी ने देश की सर्वोच्च अदालत की भी आलोचना की है. मौलाना महमूद मदनी ने कहा, ”बाबरी मस्जिद का फैसला हो या तीन तलाक का. इस फैसले के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अदालतें सरकार के दबाव में काम कर रहीं हैं.”
मदनी ने कहा कि अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों के हनन की ऐसी मिसालें सामने आई हैं, जिन्होंने अदालतों के किरदार पर सवालिया निशान लगा दिया है. मौजूदा वक्त में वरशिप एक्ट को नजरअंदाज कर ज्ञानवापी और मथुरा के मुकदमा को कोर्ट में सुनने लायक बताया गया है. उन्होंने उच्चतम न्यायालय पर निशाना साधते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट तब तक ही सुप्रीम कहलाने का हकदार है जब तक कि वह संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करें. अगर वह ऐसा ना करें तो फिर वह सुप्रीम कहलाने का हकदार नहीं है.
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