
उज्जैन। घर दीवार से नहीं घर में रहने वालों और उनके व्यवहार से बनता है। कुटुम्ब अयोध्या में भी था और कुटुम्ब हस्तिनापुर में भी था, परंतु कुटुम्ब में संघर्ष होता है तो वह कुरूक्षेत्र का विलाप बन जाता है। घर का कवच चरित्र है। चरित्र गया तो न सोने के घर में रहने वाला रावण बचा न 18 अक्षणी सेना से सुरक्षित दुर्योधन बचा। यह बात कुटुंब प्रबोधन विषय पर कहते हुए प्रखर वक्ता पं. श्याम मनावत ने कही। आगर रोड स्थित सामाजिक न्याय परिसर में संस्कार मंच द्वारा आयोजित की जा रही रामलीला के दौरान वैचारिक अनुष्ठान में पं. मनावत ने कहा कि भारत में नारी को प्रथम कहा गया है जबकि नारी प्रथम ना होकर प्रधान होना चाहिए।
घर का आधार मां है। जननी बनने में तो मात्र नौ महीने लगते हैं परंतु मां बनने में 19 साल लग जाते हैं। जननी होना एक शारीरिक घटना है परंतु मां होना एक सांस्कृतिक घटना है। बेटा कुल का दीपक है तो बेटियां कुल की मणियां हैं। स्वागत भाषण संस्कार मंच के सचिव पुष्पेंद्र शर्मा द्वारा दिया गया। अतिथियों का स्वागत मंच के संयोजक सोनू गहलोत उल्लास वेद, चरणजीत सिंह कालरा, प्रमोद डोडिया, अभिषेक निगम, निलेश कोशिशा, अखिलेश श्रीवास्तव आदि ने किया। मंच पर डॉ. विनोद बैरागी, समाजसेवी गंगाराम राघवानी, उपस्थित थे।
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