img-fluid

MP के नागदा में एक पिता ने विकलांग बेटी के सम्मान के लिए रेलवे से लड़ी असाधारण लड़ाई और जीती भी

November 29, 2025

उज्जैन: मध्य प्रदेश के उज्जैन ज़िले (Ujjain District) का एक छोटा-सा क़स्बा है- नागदा (Nagda). यहीं पंकज मारू (Pankaj Maru) ने एक बेहद सामान्य से अधिकार, गरिमा, के लिए एक असाधारण लड़ाई (Extraordinary Battle) लड़ी. उनकी बेटी (Daughter) सोनू को 65% बौद्धिक विकलांगता (Intellectual Disability) है. उसके लिए ट्रेन में यात्रा (Traveling by Train) के लिए रियायत कार्ड के लिए सामान्य आवेदन के साथ एक ऐसा संघर्ष शुरू हुआ जो सरकारी दस्तावेज़ों में सम्मानजनक भाषा के लिए ऐतिहासिक लड़ाई बन गया. जब पंकज ने सोनू का नया रेल रियायत कार्ड देखा, तो उसमें ‘अक्षमता का प्रकार’ के नीचे मानसिक विकृति लिखा था. यह देखकर पंकज बेहद परेशान हो गए. उन्होंने कहा, “कोई कैसे लिख सकता है ‘मानसिक विकृति’? यह शब्द अपमानजनक है.”

भारतीय रेल विकलांग व्यक्तियों को यात्रा में रियायत देती है और हर कार्ड में अक्षमता का प्रकार लिखा होता है. लेकिन सोनू के कार्ड में जो शब्द इस्तेमाल हुआ, उसके पिता के मुताबिक़ वह तकलीफ़ पहुंचाने वाला था, “यह सिर्फ़ एक लेबल नहीं था, यह गरिमा पर हमला था.” पंकज यह मामला मुख्य आयुक्त, दिव्यांगजन की अदालत में ले गए. नतीजा यह हुआ कि भारतीय रेल को अपने सभी दस्तावेज़ों में इस्तेमाल होने वाले शब्द बदलने पड़े.

आज ‘मानसिक विकृति’ की जगह रियायत कार्ड पर ‘इंटेलेक्चुअली डिसेबल्ड’ या ‘बौद्धिक रूप से अक्षम’ लिखा जाता है, जो भारत के दिव्यांग अधिकार क़ानून के अनुरूप है. सोनू को अटेंशन-डेफ़िसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर है, जिसकी वजह से उसे ध्यान केंद्रित रखने और ध्यान नियंत्रित करने में मुश्किल होती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, एडीएचडी एक न्यूरो-डेवलपमेंटल स्थिति है, जिसमें लगातार ध्यान की कमी, अत्यधिक सक्रियता और अचानक आवेग के नियमित पैटर्न होते हैं, जो सामान्य क्रियाकलाप को भी मुश्किल बना देते हैं.


भारत में किए गए शोधों के अनुसार, एडीएचडी लगभग एक से 7% बच्चों को प्रभावित करता है. यह दर शोध के तरीके़ और जनसंख्या पर निर्भर करती है. सोनू की मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर पंकज बताते हैं कि एडीएचडी के साथ-साथ उसकी बौद्धिक अक्षमता 65% है. यह औपचारिक मूल्यांकन के अनुसार है जो भारत में विकलांगों को मिलने वाले अधिकारों के लिए पात्रता तय करता है.

पंकज ने सोनू के लिए रियायती कार्ड इसलिए बनवाने की कोशिश की क्योंकि दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम (आरपीडब्ल्यूडी), 2016 के तहत उसे इसका अधिकार था. लेकिन जैसे ही उन्होंने कार्ड पर ‘मानसिक विकृति’ शब्द देखा, वह हिल गए. वह कहते हैं, “अपनी बेटी के सर्टिफ़िकेट पर यह शब्द देखना झटका देने वाला था. कोई उसे ‘विकृत’ कैसे कह सकता है? यह तो बेइज़्ज़ती है.” उन्होंने रतलाम के डिविज़नल रेलवे मैनेजर को ईमेल करके सुधार की मांग की. वहां से जवाब मिला कि यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात है.

जनरल मैनेजर ने भी मना कर दिया. रेलवे बोर्ड ने भी ‘ना’ कह दिया. लेकिन पंकज रुके नहीं. “मैं उस शब्द को बदलवाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था, क्योंकि यह मेरी बेटी की गरिमा का सवाल था.” “आप मेरी बेटी को ‘विकृत’ कैसे कह सकते हैं?” आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम के तहत, किसी भी व्यक्ति को अगर किसी सरकारी एजेंसी से भेदभाव का सामना करना पड़ता है तो वह मुख्य आयुक्त, दिव्यांगजन से संपर्क कर सकता है. जब किसी भी विभाग ने शब्द को ठीक नहीं किया, तो पंकज ने 2024 में सीसीपीडी से संपर्क किया.

उन्होंने ख़ुद ही इस मामले की पैरवी की. उन्होंने बताया, “मैं विकलांगता अधिकार क़ानून की मसौदा समिति का सदस्य था, इसलिए मैंने ख़ुद ही अपने मामले की पैरवी करने का फ़ैसला किया.” उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय, सरकारी दिशा-निर्देश, और बॉम्बे उच्च न्यायालय के उस निर्णय को पेश किया जिसमें पुरानी और अपमानजनक शब्दावली के उपयोग की आलोचना की थी. उन्होंने तर्क दिया कि सार्वजनिक दस्तावेज़ों में इस प्रकार की भाषा का उपयोग क़ानून के तहत भेदभाव या यहां तक कि अत्याचार माना जा सकता है.

याचिका दाख़िल करने के तीन दिन बाद अदालत ने रेलवे को नोटिस जारी किया. 4 सितंबर, 2024 को रेलवे ने जवाब दिया कि शब्दावली बदलना असंभव है. पंकज कहते हैं, “मैं वापस कोर्ट पहुंचा और पूछा कि यह क्यों संभव नहीं था. बाद में, एक रेलवे टीम हमारे पास आई और एक अजीब बदलाव किया. उन्होंने सोनू के लिए एक नया कार्ड जारी किया, जिसमें ‘मानसिक विकृति’ की जगह ‘मानसिक रूप से कमज़ोर’ लिखा था. यह अब भी अपमानजनक था.”

संबंधित दस्तावेज़ो की जांच के बाद, सीसीपीडी ने रेलवे को शब्दावली की समीक्षा के लिए एक समिति बनाने का आदेश दिया. एक महीने बाद, समिति ने आरपीडब्ल्यूडी के अनुरूप भाषा अपनाने की सिफ़ारिश की. मई 2025 में, रेलवे ने एक सर्कुलर जारी किया जिसमें सभी ज़ोनों को ‘मानसिक विकृति’ को ‘इंटलेक्चुअल डिसेबिलिटी’ से बदलने का निर्देश दिया गया.

अगली सुनवाई में, रेलवे ने कार्यान्वयन का सबूत पेश किया. 1 जून, 2025 से यह बदलाव पूरे देश के लिए नीति बन गया. पंकज कहते हैं, “इस जीत ने भारत भर के लगभग 20 मिलियन बौद्धिक रूप से विकलांग लोगों की गरिमा बहाल की है.” सोनू के नए सर्टिफ़िकेट में अब लिखा है: “बौद्धिक रूप से अक्षमता वाला व्यक्ति जो बिना किसी सहयोग के यात्रा नहीं कर सकता.”

विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, जिसे भारत ने अंगीकार किया है, समावेशी और सम्मानजनक भाषा को अधिकारों को प्राथमिकता देने वाले दृष्टिकोण की नींव के रूप में महत्व देता है. भारत का आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम भी उसी दर्शन को दर्शाता है, जिसमें लिखा है- गरिमा शब्दों से शुरू होती है. यही वह क़ानूनी और नैतिक ढांचा है जो पंकज की लड़ाई का आधार था और यह बताता है कि सार्वजनिक फ़ॉर्म में एक शब्द बदलना इतना महत्वपूर्ण क्यों था.

सोनू क़ानूनी ब्यौरे तो नहीं समझ पाई, लेकिन उसे पता था कि उसके पिता उसके लिए लड़ रहे हैं. वह कहती हैं, “रेलवे ने मुझे ग़लत कार्ड दे दिया था. मेरे पिता बहुत परेशान थे. वह मुंबई, पुणे, कोलकाता, हर जगह गए. आख़िरकार हमें सही कार्ड मिला.” पंकज कहते हैं, “सोनू जैसे बच्चे अदालत की कार्यवाही को नहीं समझ सकते, लेकिन यह निर्णय विकलांग व्यक्तियों के लिए गरिमा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है.”

पंकज नागदा में विकलांग बच्चों के लिए एक संस्था ‘स्नेह’ चलाते हैं. सोनू अपने पिता और अन्य थेरेपिस्ट की मदद करती हैं. वह बच्चों के साथ बात करती हैं और उनकी गतिविधियों में उनकी मदद करती हैं. पंकज कहते हैं, “बौद्धिक रूप से विकलांग बच्चों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करना महत्वपूर्ण है. उनकी मानसिक उम्र के कारण हम अक्सर मान लेते हैं कि वे छोटे बच्चे जैसे हैं, लेकिन ऐसा सही नहीं है. उनके पास भावनाएं और क्षमताएं होती हैं जिन्हें हम ही नहीं पहचान पाते.”

पंकज कहते हैं, “कई लोग सोच सकते हैं कि एक शब्द से क्या फर्क पड़ेगा. लेकिन ऐसे शब्द व्यवस्थागत दृष्टिकोण को आकार देते हैं और भेदभाव पैदा कर सकते हैं. इस शब्द को बदलने से न केवल क़ानून का पालन हुआ बल्कि विकलांग व्यक्तियों के लिए सम्मानजनक भाषा को भी प्रोत्साहन मिला.” पिता-बेटी की इस जोड़ी ने न सिर्फ़ व्यक्तिगत संघर्ष में जीत हासिल की है बल्कि एक बड़ी सरकारी संस्था की भाषा में सकारात्मक, मानवतावादी बदलाव भी लाई है.

Share:

  • इंदौर: एमवाय अस्पताल की चौथी मंजिल से कैदी हुआ फरार

    Sat Nov 29 , 2025
    इंदौर। इंदौर (Indore) के एमवाय अस्पताल (MY Hospital) से एक कैदी (Prisoner) चौथी मंजिल से फरार हो गया, जो अस्पताल में चल रहे निर्माण कार्य के दौरान लगाए गए मचान का सहारा लेकर भाग निकला, जब जेल गार्ड ने उसे बेड पर नहीं पाया, तो उसने अधिकारियों और पुलिस को सूचना दी। इसके बाद संयोगितागंज […]
    सम्बंधित ख़बरें
    लेटेस्ट
    खरी-खरी
    का राशिफल
    जीवनशैली
    मनोरंजन
    अभी-अभी
  • Archives

  • ©2025 Agnibaan , All Rights Reserved