
नई दिल्ली । कल्पना कीजिए- एक ऐसा युद्धक्षेत्र(Battlefield) जहां दुश्मन की आंखें(eyes of the enemy) यानी रडार (radar)को कुछ दिखाई ही न दे। जहां एक विमान न सिर्फ हवा में राज करे, बल्कि जमीन पर भी हमला बोले और वह भी बिना किसी को खबर दिए। यह कोई साइंस-फिक्शन फिल्म नहीं, बल्कि आज के हवाई युद्ध की हकीकत है। अमेरिका का F-35 लाइटनिंग II और रूस का Su-57 फेलॉन- ये दोनों पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान हैं, जो स्टील्थ (अदृश्यता), सेंसर फ्यूजन (डेटा एकीकरण) और मल्टी-रोल क्षमताओं से लैस हैं। लेकिन एक सवाल बना हुआ है: इनमें से कौन सा दुनिया का सबसे ताकतवर लड़ाकू विमान है? और भारत जैसे देश के लिए कौन सा विकल्प सही हो सकता है क्योंकि दोनों ही देशों ने भारत को बिक्री का ऑफर दिया है। आइए इस सबको विस्तार से समझते हैं।
F-35 की जड़ें- अमेरिका का ‘जॉइंट स्ट्राइक फाइटर’ सपना
F-35 की कहानी 1980-90 के दशक से शुरू होती है, जब अमेरिका कोल्ड वॉर के बाद अपनी पुरानी फ्लीट- F-16, F/A-18 और AV-8B हारियर को बदलना चाहता था। सोवियत संघ के विघटन के बाद, अमेरिका ने महसूस किया कि भविष्य के युद्ध में एक ही विमान तीनों सेनाओं (वायुसेना, नौसेना, मरीन कोर) के लिए काम करे- हवा से हवा, हवा से जमीन, और यहां तक कि विमानवाहक पोत से उड़ान भर सके। 1995 में ‘जॉइंट स्ट्राइक फाइटर’ (JSF) प्रोग्राम लॉन्च हुआ, जो DARPA के ASTOVL (एडवांस्ड शॉर्ट टेक-ऑफ/वर्टिकल लैंडिंग) प्रोजेक्ट का विस्तार था।
2001 में लॉकहीड मार्टिन के X-35 डिजाइन ने बोइंग के X-32 को हरा दिया। पहली उड़ान 2000 में हुई और 2006 में F-35A ने आधिकारिक डेब्यू किया। लेकिन रास्ता आसान नहीं था- लागत ओवररन (अनुमानित 1.7 ट्रिलियन डॉलर कुल खर्च) और डिजाइन बदलावों ने इसे विवादों में डाल दिया। फिर भी, 2015 में US मरीन कोर ने इसे सर्विस में लिया और 2025 तक 1000 से ज्यादा F-35 18 से ज्यादा देशों में तैनात हैं। यह इजरायल जैसे सहयोगियों के साथ रीयल-वर्ल्ड कॉम्बैट (जैसे गाजा ऑपरेशन्स) में साबित हो चुका है। F-35 अमेरिकी सैन्य दर्शन का प्रतीक है: नेटवर्क-सेंट्रिक वॉरफेयर, जहां यह NATO सहयोगियों के साथ डेटा शेयर करता है।
Su-57 की जड़ें- रूस का ‘PAK FA’ स्वदेशी स्टील्थ का संघर्ष
Su-57 की कहानी रूस के 1990 के दशक के अंत की है, जब सोवियत संघ के पतन के बाद मिग-29 और Su-27 जैसे पुराने विमानों को बदलने की जरूरत पड़ी। 1999 में ‘पर्स्पेक्टिव एयरक्राफ्ट सिस्टम फॉर फ्रंटलाइन एविएशन’ (PAK FA) प्रोग्राम शुरू हुआ, जो मिग के MFI (1.44) प्रोजेक्ट का उत्तराधिकारी था। सुखोई डिजाइन ब्यूरो को 2002 में कॉन्ट्रैक्ट मिला और 2010 में पहला प्रोटोटाइप T-50 उड़ा। 2007 में रूसी वायुसेना ने घोषणा की कि डेवलपमेंट पूरा हो गया, लेकिन इंजन (AL-41F1), स्टील्थ और कॉस्ट इश्यूज ने देरी कर दी।
2017 में इसे Su-57 नाम मिला, लेकिन 2019 में एक क्रैश ने झटका दे दिया। 2020 में पहला प्रोडक्शन मॉडल डिलीवर हुआ और 2025 तक सिर्फ 35 से कम विमान रूस के पास हैं। यूक्रेन युद्ध और प्रतिबंधों की वजह से प्रोडक्शन सीमित है। फिर भी, Su-57 रूसी दर्शन को दर्शाता है: हाई-स्पीड इंटरसेप्शन और लॉन्ग-रेंज स्ट्राइक्स, जहां स्टील्थ के साथ मैन्यूवरेबिलिटी (घुमाव) को प्राथमिकता दी गई। यह विमान Su-27 फैमिली का उत्तराधिकारी है, जो कोल्ड वॉर के ‘फ्लैंकर’ विमानों की विरासत को आगे बढ़ाता है।
तकनीकी तुलना: कौन किसमें आगे?
अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर- कौन ज्यादा ताकतवर? दोनों स्टील्थ हैं, लेकिन दोनों की फिलोसोफी अलग है। F-35 ‘ऑफेंसिव’ है- अदृश्य होकर दुश्मन के दिल में घुस जाता है। Su-57 ‘डिफेंसिव’ है- तेजी से इंटरसेप्ट करता है। स्टील्थ के मामले में F-35 कहीं आगे है- इसका रडार क्रॉस सेक्शन (RCS) सिर्फ 0.001 वर्ग मीटर के आसपास है, यानी आधुनिक रडार के लिए यह लगभग अदृश्य है, जबकि Su-57 का RCS सामने से 0.1 से 1 वर्ग मीटर के बीच माना जाता है, यानी अच्छा लेकिन F-35 जितना नहीं। सेंसर और एवियोनिक्स में F-35 का AN/APG-81 AESA रडार, DAS 360° इन्फ्रारेड सिस्टम और सेंसर फ्यूजन पायलट को ऐसा विजन देता है जैसे वह पूरे आसमान को एक साथ देख रहा हो, और यह सारी जानकारी NATO के नेटवर्क में तुरंत शेयर भी होती है। Su-57 में भी N036 Byelka AESA रडार और शक्तिशाली IRST सिस्टम है, पर ऐसा कहा जाता है कि उसका फ्यूजन और नेटवर्किंग अभी F-35 जितना परिपक्व नहीं है।
स्पीड और मैन्यूवरेबिलिटी में Su-57 स्पष्ट रूप से आगे है। यह माच 2 से ऊपर जा सकता है, 3D थ्रस्ट वेक्टरिंग की वजह से कोबरा मैन्यूवर जैसे करतब कर सकता है और डॉगफाइट में बेहद खतरनाक है। F-35 की टॉप स्पीड सिर्फ माच 1.6 है और वह मैन्यूवरेबिलिटी पर ज्यादा जोर नहीं देता- उसका फोकस BVR (बियॉन्ड विजुअल रेंज) लड़ाई में दुश्मन को पहले देखने और पहले मारने पर है। रेंज में भी Su-57 आगे है- लगभग 3500 किमी फेरी रेंज और 1500 किमी से ज्यादा कॉम्बैट रेडियस, जबकि F-35 की रेंज करीब 2,200-2,800 किमी ही है।
हथियारों में दोनों के आंतरिक बे लगभग बराबर हैं, लेकिन Su-57 बड़ी और भारी मिसाइलें (जैसे हाइपरसोनिक किंजल का हल्का वर्जन) अंदर ले जा सकता है, वहीं F-35 ज्यादा सटीक और नेटवर्क-गाइडेड हथियारों (JDAM-ER, छोटी डायमीटर बॉम्ब, AIM-120D) में माहिर है। रखरखाव और परिचालन लागत में Su-57 बहुत सस्ता है- प्रति फ्लाइट घंटा करीब 18-20 हजार डॉलर, जबकि F-35 का खर्च अभी भी 33-36 हजार डॉलर प्रति घंटा है।
F-35 रडार-एब्जॉर्बिंग मटेरियल्स से लगभग अदृश्य है, जो इसे दुश्मन एयर डिफेंस को चकमा देने में माहिर बनाता है। Su-57 का स्टील्थ एंगल-विशिष्ट है- सामने से अच्छा, लेकिन कैनार्ड्स (सामने के विंग) और बड़े नोजल्स से पीछे से दिखता है। लेकिन Su-57 का DAS जैसा 360° IRST सिस्टम इसे क्लोज-क्वार्टर कॉम्बैट में मजबूत बनाता है।
संक्षेप में कहें तो:
अगर लड़ाई- पहले देखो, पहले मारो, बिना दिखे भाग जाओ वाली है- तो F-35 दुनिया में सबसे आगे है।
अगर लड़ाई स्पीड, रेंज, मैन्यूवर और किफायती कीमत वाली है- तो Su-57 अभी भी खतरनाक प्रतिद्वंद्वी है।
दोनों में कोई एक ‘बेस्ट’ नहीं है; सिर्फ अलग-अलग ताकतें हैं।
भारत के पास दोनों का ऑफर- एक दुविधा या अवसर?
भारत की वायुसेना (IAF) के पास करीब 30 स्क्वाड्रन्स हैं (42 चाहिए), और चीन का J-20/J-35 विमान पहले ही पांचवीं पीढ़ी में है। 2010 में भारत-रूस FGFA प्रोग्राम में पार्टनर बने, लेकिन 2018 में भारत बाहर हो गया- Su-57 की स्टील्थ और इंजन पर सवाल उठे थे। लेकिन 2025 में Aero India में दोनों विमान दिखे, और ऑफर आए।
अमेरिका का F-35 ऑफर: फरवरी 2025 में राष्ट्रपति ट्रंप ने PM मोदी के सामने वाइट हाउस में F-35A की G2G डील ऑफर की। 2027 से डिलीवरी की भी बात सामने आई, लेकिन प्रतिबंधों और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की कमी के कारण भारत ने इसे अभी तक स्वीकार नहीं किया।
रूस का Su-57 ऑफर: एरो इंडिया 2025 में रोसोबोरोनएक्सपोर्ट ने Su-57E का प्रपोजल दिया। यानी 20-30 रेडीमेड विमान भारत को दिए जाएंगे और बाकी के HAL नासिक में लोकल प्रोडक्शन के तहत बनाए जाएंगे जैसे कि Su-30MKI विमान बनाए जा रहे हैं। नवंबर 2025 में Rostec CEO ने फुल टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, सोर्स कोड एक्सेस और 2-सीटर वेरिएंट का वादा किया।
रूस ने फिर दोहराया ऑफर
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आगामी भारत यात्रा से पहले, रूस ने भारत को अपने अत्याधुनिक पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ लड़ाकू विमान Su-57 के पूर्ण लाइसेंस प्राप्त उत्पादन की पेशकश दोहराई। इस प्रस्ताव में बिना किसी प्रतिबंध के फुल टेक्नोलॉजी ट्रांसफर भी शामिल है, जो भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने और रणनीतिक साझेदारी को गहरा करने का प्रयास है। दुबई एयर शो के दौरान रूसी रक्षा निर्यातक रोसोबोरोनएक्सपोर्ट के एक वरिष्ठ प्रतिनिधि ने यह प्रस्ताव बेहद स्पष्ट शब्दों में सामने रखा। उन्होंने कहा- हम रूस में निर्मित Su-57 की सप्लाई करने और भारत में विमान के प्रोडक्शन को संगठित करने के लिए तैयार हैं, जिसमें टेक्नोलॉजी ट्रांसफर शामिल है। अधिकारी के अनुसार पैकेज में फिफ्थ-जनरेशन टेक्नोलॉजी, इंजन और अन्य महत्वपूर्ण सिस्टम की ट्रेनिंग व ट्रांसफर शामिल है।
भारत के लिए क्या फिट?
भारत के लिए Su-57 ज्यादा फिट लगता है- रूसी फ्लीट (Su-30) से मैच, कम लागत, और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर। हालांकि भारतीय वायुसेना प्रमुख पहले ही कह चुके हैं कि- यह वॉशिंग मशीन नहीं, प्रोसेस फॉलो करेंगे। यानी भारत पहले अपनी जरूरतों को देखेगा फिर विमान खरीद पर आगे बढ़ेगा।
कौन सबसे ताकतवर? और भारत का रास्ता
2025 में F-35 दुनिया का सबसे ताकतवर माना जाता है- मैच्योर, कॉम्बैट-प्रूवन, और ग्लोबल नेटवर्क से। लेकिन Su-57 की स्पीड, रेंज और किफायत इसे ‘वायबल राइवल’ बनाती है- खासकर बड़े क्षेत्रों (जैसे भारत-चीन बॉर्डर) के लिए। यानी कोई ‘बेस्ट’ नहीं; यह मिशन पर निर्भर करता है।
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