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इंदौर: महीने में 1213 महिलाएं ऑपरेट, 6 के ऑपरेशन फेल हुए, नसबंदी के लिए सिर्फ 7 पुरुष ही आगे आए

October 27, 2025

मर्द को दर्द होता है…इंदौर में नसबंदी का दर्द सिर्फ महिलाएं ही सह रहीं

सांवेर, देपालपुर, हातोद, मानपुर में एक भी पुरुष आगे नहीं आया, विभाग के जागरूकता अभियान पर उठे सवाल

इंदौर। जिले में परिवार नियोजन (Family planning) का पूरा बोझ आज भी महिलाओं (women) पर ही डाला जा रहा है, जबकि पुरुषों (men) की भागीदारी बेहद कम है। अप्रैल से सितंबर 2025 के बीच जारी हुई आधिकारिक स्वास्थ्य रिपोर्ट ने विभाग की तैयारी और जागरूकता कार्यों पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। महिलाओं की जागरूकता के चलते विभाग को ये आंकड़े मिले हैं, वहीं पुरुषों के मामले में फिसड्डी साबित हुआ है। आश्चर्य की बात यह है कि इन मामलों में भी विभाग के डॉक्टर ने गफलत की है। 6 मामलों में असफल नसबंदी के प्रकरण भी सामने आए हैं, जिन्हें अब क्षतिपूर्ति की राशि हजारों में दी जाएगी।


इंदौर जिले में फैमिली प्लानिंग अभियान की धज्जियां उड़ रही हैं। विभाग जागरूकता के नाम पर जहां पुरुषों को जागरूक करने में तो फेल साबित हुआ है, वहीं जिन महिलाओं ने दर्द सहकर नसबंदी कराई है, उनके मामलों में भी लापरवाही सामने आई है। विभाग के जारी आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र के डॉक्टरों ने छह ऑपरेशन में लापरवाही बरती और नसबंदी के ऑपरेशन फेल साबित हुए। अब विभाग जहां प्रोत्साहन के लिए चंद रुपए देता है, वहीं अपनी गलती का खामियाजा हजारों में भुगतेगा। यहां लापरवाह और अयोग्य डॉक्टरों के हाथों महिलाओं की जिंदगी छोड़ दी गई और अब इन फेल हो चुके नसबंदी प्रकरण में 30-30 हजार की क्षतिपूर्ति राशि देनी होगी। मानपुर के 2, देपालपुर 2, हातोद व सांवेर के 1-1 प्रकरण में यह राशि दी जाएगी।

रिपोर्ट में भी झोल
हाल ही में कलेक्टर को बताए आकड़ों के अनुसार इंदौर जिले में अब तक 6 महीने में 1783 नसबंदियां की गई हैं, जिनमें मात्र 7 पुरुष ही शामिल हैं। इनमें शहरी इंदौर में मल्हारगंज और संयोगितागंज में क्रमश: 5 और 2 मामले सामने आए हैं। महू, देपालपुर, सांवेर, हातोद में तो एक भी पुरुष नसबंदी कराने नहीं पहुंचा। विभाग के रिझाने वाले आंकड़ों के अनुसार रिपोर्ट के मुताबिक पूरे जिले में 6 महीनों में केवल 26 पुरुषों ने नसबंदी करवाई, जिनमें शहरी इंदौर में 21, महू में 2 और देपालपुर से 3 मामले सामने आए हैं। सांवेर में तो एक भी पुरुष नसबंदी कराने नहीं पहुंचा।

दो रिपोर्ट, आंकड़े गफलत में
विभाग द्वारा बताए गए आंकड़ों के अनुसार 1213 महिलाओं की डिलेवरी के तुरंत बाद नसबंदी, 941 महिला लैप्रोस्कोपिक नसबंदी, 705 इंटरवल नसबंदी हुईं। इसके अलावा कॉपर-टी लगाने के मामले भी बड़े स्तर पर दर्ज हुए। डिलेवरी के तुरंत बाद 3370 महिलाओं में आईयूसीडी लगाया गया, जबकि कलेक्टर से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार सिर्फ 1776 नसबंदियां हुई हैं, जिसमें एलटीटी के 24, टीटी ऑपरेशन के 1392, पोस्टपार्टम ऑपरेशन के 360 मामले दर्ज किए गए हैं।
पुरुषों से सीधी बातचीत नहीं होती

स्वास्थ्य विभाग हर साल पुरुष नसबंदी को लेकर जागरूकता अभियान चलाने का दावा करता है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिलकुल उलट है।

जबकि पुरुष नसबंदी तकनीक सर्जरी रहित, सुरक्षित और आसान है, फिर भी पुरुष आगे आने से बच रहे हैं। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि महिलाओं को तो गांव-गांव आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ता जाकर समझाती हैं, लेकिन पुरुषों तक कोई सीधी बातचीत नहीं होती। इसलिए फैसला हमेशा महिला के हिस्से में आता है। उच्च अधिकारियों को विभाग से सवाल करना चाहिए कि पुरुष नसबंदी पर जागरूकता अभियान जमीन पर कहां चला? सांवेर और अन्य ग्रामीण ब्लॉक में एक भी पुरुष नसबंदी न होना-क्या स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारी सिर्फ फाइलें चला रहे हैं? जबकि महिलाओं के लिए यह ऑपरेशन कई बार जानलेवा और दर्दनाक होता है।

फेलियर के मामलों की जांच की जा रही है, वहीं जागरूकता को लेकर भी रिपोर्ट मांगी गई है । जिम्मेदारों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
शिवम वर्मा, कलेक्टर, इंदौर
कुछ ब्लॉक में फेलियर के केस सामने आए हैं। इन पर जांच की जा रही है। संबंधित डॉक्टर को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं। यदि योग्यता में कमी पाई जाती है तो ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य डॉक्टर को लगाया जाएगा।
डॉ. माधवप्रसाद हसानी, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी

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