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इन्दौर: हाथ, किडनी, लिवर, आंख और त्वचा दान करने वाले का सम्मान

December 31, 2024

  • अंगदानी के शव को रेड कारपेट बिछाकर दी विदाई
  • शैल्बी हास्पिटल में मानव शृंखला बनाई… 300 से ज्यादा समाजजन मेडिकल स्टाफ, मुस्कान संस्था के सेवादार जुड़े

इन्दौर। जिंदगी और मौत से संघर्ष करने वाले कई गम्भीर मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए अपनी किडनियां (kidneys), लिवर ( liver) दोनों हाथ (hands), आंख (eyes) त्वचा (skin) का दान देने वाले 68 वर्षीय स्वर्गीय सुरेंद्र पोरवाल जैन के शव को आज सुबह 8 बजकर 40 मिनट पर शैल्बी हॉस्पिटल (Shelby Hospital) से रेड कारपेट बिछाकर पुष्पवर्षा करते हुए उनके निवास स्थान मनोरमागंज रवाना किया।

इस दौरान जैन परिवार के लगभग सभी रिश्तेदार, वरिष्ठ समाजजन, सहित शैल्बी हॉस्पिटल की सीनियर ट्रांसप्लांट को-ऑर्डिनेटर हेमलता सिंह, मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ विवेक जोशी और मुस्कान संस्था के सेवादार संदीपन आर्य सहित 300 से ज्यादा लोग मानव शृृंखला में मौजूद थे। सेवादार आर्य ने बताया कि अंगदानी स्व. सुरेन्द के शव को हॉस्पिटल से उनके निवास स्थान ले जाया गया है। वहां से उनकी शवयात्रा तिलक नगर मुक्ति धाम जाएगी, जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।


शैल्बी हॉस्पिटल में स्व सुरेंद्र को ब्रेनडेड घोषित करने के बाद अंगदान के लिए परिजनों की सहमति होने के बावजूद ग्रीन कॉरिडोर बनने में कल सुबह से दोपहर और फिर शाम हो गई। पहले तो प्रतीक्षा सूची के हिसाब से कौन-कौन से ऑर्गन यानी अंग ट्रांसप्लान्ट के लिए कहां-कहां और कितने जाना है, इसको लेकर कुछ घण्टों तक यही असमंजस बना रहा। जीतू बगानी के अनुसार जब सब कुछ फायनल हो गया तो लिवर और लंग्स ट्रांसप्लांट के लिए उपयोगी है या नहीं इसके लिए लिवर के एक टुकड़े को जांच के लिए इंदौर के जुपिटर हॉस्पिटल भेजा गया। वहां से लिवर उपयोगी है कि रिपोर्ट मिलने के बाद तय हुआ कि लिवर मुम्बई जाएगा। इसके अलावा लंग्स के लिए 2 अलग-अलग महानगरों के निजी हॉस्पिटल में काउंसलिंग और को-आर्डिनेशन चलता रहा, मगर दोनों जगह से फेफड़ों को ट्रांसप्लांट के लिए तकनीकी कारणों से रद्द कर दिया गया। इसी तरह हाथों के दान को लेकर कुछ समय के लिए गफलत रही कि एक हाथ या दोनों हाथ डोनेट यानी दान किए जाने हैं। इस वजह से ग्रीन कॉरिडोर का समय बढ़ता गया। आखिरकार सभी कॉरिडोर कल शाम तक ही बन पाए।

मृत्यु के बाद भी 3 को नई जिंदगी दी और एक को अपाहिज होने से बचा लिया
काल की क्रूर नियति ने उनको उनके परिजनों से छीन लिया, इसलिए अपने किसी प्रियजन से बिछडऩे का दुख उन सबसे ज्यादा भला कौन जान या महसूस कर सकता है। इस तरह कोई दूसरा अपनों से जुदा न हो, इसलिए पोरवाल परिवार ने ब्रेनडेड सुरेंद्र के अंग दान की सहमति देकर 3 गम्भीर मरीजों को जहां अकाल मृत्यु से तो वहीं एक दिव्यांग को आजीवन एक अपाहिज की जिंदगी जीने से बचा लिया। इसके अलावा दान की गई उनकी आंखों से भी किसी की दुनिया रोशन होती हो गई।

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