
इंदौर। आजादी के आंदोलन (Freedom movement) में इंदौर (Indore) के युवा भी बड़ी संख्या में सम्मिलित हुए थे। युवाओं को जोड़ने के लिए ‘इंदौर राज्य प्रजा परिषद’ नामक संगठन बनाया गया। 1920-21 में इसका गठन हो चुका था। इस परिषद् में इंदौर के नामचीन लोग, जिनमें वीसी सरवटे, भालेराव वकील साहब, प्रो. भानुदास शाह, कृष्णकांत व्यास, सूरजमल जैन आदि शामिल थे। इन्होंने तय किया था कि होल्कर राज्य में स्वतंत्रता आंदोलन की रूपरेखा समझाने और लोगों को आंदोलन में शामिल करने के लिए गांव-गांव जाना होगा, लोगों को आजादी और लोकतंत्र का महत्व समझाना होगा। उनका यह प्रयास रंग लाया और आजादी के बाद इंदौर की होल्कर रियासत में भी उत्तरदायी शासन की स्थापना हुई थी।
प्रजा परिषद् के इन दौरों को तत्कालीन इंदौर रियासत की सरकार ने ठीक नहीं माना, भानुदास शाह और कृष्णकांत व्यास को राज्य से निर्वासित कर दिया। 1935 में इंदौर राज्य प्रजा परिषद का नाम बदल कर राज्य प्रजा मंडल कर दिया गया था। प्रजा मंडल के राज्य भर में सदस्य बनाए गए। 21 मई 1939 को रानी सराय के मैदान में पहला अधिवेशन हुआ, जिसकी अध्यक्षता बैजनाथ महोदय ने की थी। इस अधिवेशन में राज्य से करीब 30 हजार लोग शामिल हुए थे। इसी बीच सिरेमल बापना को होल्कर रियासत के प्रधानमंत्री पद से हटा कर कर्नल दीनानाथ को राज्य का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया, जो राज्य प्रजा मंडल के खिलाफ थे।
सामान्य जनता तक अपनी बात पहुंचाने के लिए 1940 से प्रजा मंडल पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। इसके संपादक बैजनाथ महोदय थे। मालवा और निमाड़ की जनता तक आजादी से जुड़ी जानकारी पहुंचाने में यह पत्रिका प्रमुख भूमिका निभा रही थी। लेकिन, आजादी के आंदोलन को कुचलने के इरादे से 1942 से 1944 तक पत्रिका पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
इसी दौरान इंदौर रियासत में अनाज का संकट पैदा हो गया था। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अनाज की कमी और अधिक अनाज उत्पादन के प्रोत्साहन के लिए, राज्य अनाज परिषद् के साप्ताहिक पत्र ‘अनाज’ का प्रकाशन शुरू हुआ। इसके संपादक बैजनाथ महोदय और प्रबंध संपादक कृष्णकांत व्यास थे। इसके प्रकाशन का दायित्व भी प्रजा मंडल ने निभाया था।
होल्कर रियासत के प्रधानमंत्री कर्नल दीनानाथ राज्य प्रजा मंडल और उसकी गतिविधियों से काफी नाराज थे। भारत छोड़ो आंदोलन के बाद इंदौर में प्रजा मंडल कार्यकर्ताओं द्वारा प्रदर्शन और विरोध तेज कर दिया गया था। इसके चलते प्रजा मंडल के कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेलों में बंद कर दिया गया था, लेकिन प्रजा मंडल के कुछ कैदी महेश्वर जेल तोड़ कर भाग निकले थे।
प्रजा मंडल के दो अधिवेशन रामपुरा और खातेगांव में हो चुके थे। इन दोनों अधिवेशनों में होल्कर राज्य में उत्तरदायी शासन की मांग की गई। इसके लिए राज्य भर में गांव-गांव से 3600 से अधिक प्रस्ताव पारित किए गए। इनमें देश के आजाद होने के साथ ही होल्कर राज्य प्रमुख भी उत्तरदायी शासन को बागडौर सौप दें, यह मांग की गई। ये प्रस्ताव प्रजा मंडल के ऑफिस में एकत्रित किए गए थे। 23 मई 1947 को प्रजा मंडल ने उत्तरदायी राज्य की मांग को लेकर एक विशाल जुलूस इंदौर के तत्कालीन महाराजा यशवंत राव होल्कर के माणिकबाग स्थित निवास पर प्रदर्शन के लिए निकला था, लेकिन उसे महल के काफी पहले ही नगर के पुलिस अधिकारी मिस्टर हार्टन द्वारा रुकवा दिया गया। इसे रोकने के लिए पुलिस ने लाठी चार्ज किया और भीड़ को भगाने के लिए गोलियां चलवाईं, जिससे कई कार्यकर्ता घायल हो गए थे। इस घटना के विरोध में इंदौर नगर बंद रहा था।
आखिरकार उग्र आंदोलन के दबाव में महाराजा यशवंत राव होल्कर द्वारा प्रजा मंडल की मांग स्वीकार कर ली गई। देश आजाद होने के साथ ही 15 अगस्त 1947 को देशी राजाओं के समान इंदौर नरेश ने भी भारतीय संघ में शामिल होने के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए। प्रजा मंडल से उनके प्रमुख नेताओ के नाम मांगे गए ताकि उन्हें होल्कर राज्य के मंत्रिमडल में शामिल किया जा सके।
20 सितंबर 1947 को राज्य प्रजा मंडल से बैजनाथ महोदय और मिश्रीलाल गंगवाल को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया, 16 नवंबर 1947 को वी.सी. सरवटे और वी.वी. द्रविड़ को भी मंत्रिमडल में लिया गया। प्रजा मंडल के नेता विश्वनाथ सखाराम खोड़े को प्रधामंत्री नियुक्त किया गया। इस तरह दिसंबर 1947 में इंदौर की होल्कर रियासत में पूर्णतः उत्तरदायी राज्य स्थापित हो गया।
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