नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (SC) की जज जस्टिस बी.वी. नागरत्ना (Justice B.V. Nagarathna) ने शनिवार को एक गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत के फैसलों पर केवल इसलिए दोबारा विचार नहीं करना चाहिए कि उन फैसलों को लिखने वाले जज बदल गए हैं। यह टिप्पणी उन्होंने उन मामलों के संदर्भ में की जहां बाद की बेंचों द्वारा पुराने फैसलों को पलटने की प्रथा बढ़ रही है। हरियाणा के सोनीपत में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन में बोलते हुए, जस्टिस नागरत्ना ने न्यायिक स्वतंत्रता की विकसित समझ पर जोर दिया।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता की विकसित समझ के लिए यह हमारे कानूनों की प्रणाली द्वारा आश्वासन जरूरी है कि एक बार दिया गया फैसला समय के साथ टिका रहेगा, क्योंकि यह “स्याही से लिखा गया है, रेत से नहीं।” उन्होंने कहा कि कानूनी बिरादरी और शासन ढांचे में शामिल सभी प्रतिभागियों का यह कर्तव्य है कि वे एक फैसले का उसके मूल रूप में सम्मान करें, आपत्ति केवल कानून में निहित परंपराओं के अनुसार उठाएं और केवल इसलिए उसे बाहर फेंकने का प्रयास न करें क्योंकि चेहरे बदल गए हैं।
न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए उन्होंने जजों के निजी आचरण की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि एक जज का व्यवहार संदेह से परे माना जाना चाहिए और राजनीतिक अलगाव एक निष्पक्ष न्यायिक प्रणाली के लिए आवश्यक है। न्यायिक स्वतंत्रता न केवल जजों द्वारा लिखे गए फैसलों से बल्कि उनके व्यक्तिगत आचरण से भी सुरक्षित होती है।
जस्टिस नागरत्ना की यह टिप्पणी उस घटनाक्रम के बाद आई है जब सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में 26 नवंबर को एक बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की थी, जहां पिछले फैसलों से व्यथित पक्षों के इशारे पर बाद की बेंचों या विशेष रूप से गठित बेंचों द्वारा फैसलों को पलटा जा रहा है।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि फैसलों की अंतिम वैधता को बनाए रखने से न केवल अंतहीन मुकदमेबाजी को रोका जाता है, बल्कि न्यायपालिका में जनता का विश्वास भी बना रहता है।
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved