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उपराज्यपाल ने केजरीवाल के बयानों को बताया झूठा, दिल्ली में शिक्षा के स्तर पर किए सवाल खड़े

नई दिल्‍ली (New Delhi) । दिल्ली विधानसभा सत्र (delhi assembly session) खत्म होने के बाद उपराज्यपाल वीके सक्सेना (Lieutenant Governor VK Saxena) ने मुख्यमंत्री (Chief Minister) द्वारा दिए गए बयानों को झूठा और गुमराह करने वाला बताया है। उन्होंने साफ किया है कि राजनिवास पर प्रदर्शन के दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री को मिलने के लिए बुलाया था। लेकिन वह अपने सभी विधायकों (MLA) के साथ आना चाहते थे जो उस समय संभव नहीं था। इसलिए उन्होंने राजनीति से प्रेरित झूठा बयान दिया कि उपराज्यपाल उनसे नहीं मिलना चाहते। उन्होंने इस पत्र में दिल्ली के भीतर शिक्षा के स्तर पर भी सवाल खड़े किए हैं।

मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र में उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने विधानसभा में उनके द्वारा दिए गए बयानों पर आपत्ति जताई है। मुख्यमंत्री ने विधानसभा में कहा था कि एलजी कौन है और वह कहां से आते हैं। उन्होंने पत्र में लिखा है कि भारत के संविधान में इसका जवाब है। उन्होंने पत्र में लिखा है कि बीते कुछ समय से मुख्यमंत्री और उनके साथी शिक्षा, शिक्षक और उनके प्रशिक्षण के मुद्दे को उठा रहे हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी इसे उछाला जा रहा है। उन्होंने पत्र में लिखा है कि 2012-13 में जहां दिल्ली के स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति 70.73 फीसदी थी तो वहीं वर्ष 2019-20 में घटकर 60.65 फीसदी रह गई। कोरोना के समय ऑनलाइन क्लास होने के चलते मार्च 2020 से लेकर जून 2022 तक यह 73.4 फीसदी रही है।


पत्र में उन्होंने लिखा है कि 2009-10 में छात्रों की कक्षा में उपस्थिति 78 फीसदी से ज्यादा थी। इससे साफ पता चलता है कि छात्र स्कूल में कम आ रहे हैं। 2013-14 में जहां 16.1 लाख छात्र दिल्ली सरकार के स्कूल में पढ़ते थे तो वहीं 2019-20 में यह घटकर 15.1 लाख रह गए। वह भी तब जब शहर की आबादी बढ़ रही है और छात्रों की संख्या बढ़नी चाहिए थी। उपराज्यपाल ने लिखा है कि हाल ही में हुई बैठक में उन्होंने बीते 8 सालों के अंदर एक भी स्कूल नहीं बनाए जाने का मुद्दा उठाया था। डीडीए द्वारा शिक्षा विभाग को बीते 7 वर्षों में 13 जगह जमीनें दी गई हैं। इनमें से अगस्त 2022 में ही 6 जमीने दी गई हैं। पहले से बने स्कूलों में नए कमरे और शौचालय बनाना नए स्कूल का विकल्प नहीं हो सकता।

अधिकांश छात्रों को नहीं बेसिक जानकारी
पत्र में उपराज्यपाल ने लिखा है कि दिल्ली सरकार भले ही शिक्षा में बड़े बदलाव का दावा कर रही है, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और है। नेशनल अचीवमेंट सर्वे 2021 बताता है कि दिल्ली सरकार के स्कूल में आठवीं कक्षा तक पढ़ने वाले 30 फीसदी छात्रों का ज्ञान सामान्य स्तर से कम है जबकि 44 फीसदी का ज्ञान लगभग सामान्य स्तर का है। इसी तरह दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले 33 फीसदी छात्रों का ज्ञान सामान्य से कम है जबकि 30 फीसदी सामान्य ज्ञान रखते हैं। गणित और विज्ञान की पढ़ाई में छात्रों की कोई रुचि नहीं दिखती है। 12वीं कक्षा में कुल 2,31,448 छात्र पढ़ते हैं जिनमें से केवल 21,340 ही विज्ञान की पढ़ाई कर रहे हैं।

सरकारी स्कूलों में घटी छात्रों की संख्या
उपराज्यपाल ने पत्र में लिखा है कि 2013-14 में जहां 35 फीसदी छात्र निजी स्कूलों में पढ़ते थे तो वहीं 2019 में यह संख्या 46 फीसदी तक पहुंच गई थी। कोरोना के समय में फीस नहीं भर पाने के चलते काफी परिजनों ने अपने बच्चों को निजी स्कूलों से निकालकर सरकारी स्कूलों में डाला। लेकिन अभी भी 40 फीसदी बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। बीते 1 साल में 15,636 शिक्षकों की भर्ती सरकार नहीं कर पाई है। शिक्षा विभाग ने हजारों गेस्ट टीचर रखे हैं जिनमें बड़ी संख्या में घोषट टीचर हैं।

शिक्षकों को विदेश भेजने से नहीं किया इनकार
उपराज्यपाल ने पत्र में लिखा है कि दिल्ली सरकार शिक्षकों को फिनलैंड भेजना चाहती है। इस प्रस्ताव को उन्होंने नकारा नहीं है। केवल इस पर होने वाले खर्च एवं उससे होने वाले लाभ का आंकलन करने के निर्देश दिये हैं। वह जानना चाहते है्ं कि इस यात्रा का उनके शिक्षा स्तर पर कोई लाभ होका या यह केवल अपना प्रचार करने के लिए किया जा रहा है। इसके साथ ही उन्होंने यह सुझाव दिया है कि इस तरह का प्रशिक्षण भारत के संस्थानों में भी दिलवाया जा सकता है। उन्होंने लिखा है कि इससे पहले 55 प्रधानाचार्य और उप-प्रधानाचार्य को कैंब्रिज भेजने के लिए उन्होंने अनुमति दी थी।

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