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एलवीबी-डीबीएस के विलय प्रस्‍ताव पर स्‍वदेशी जागरण मंच ने भी उठाए सवाल

नई दिल्‍ली। निजी क्षेत्र के लक्ष्मी विलास बैंक (एलवीबी) का सिंगापुर मूल के भारत स्थि‍त डीबीएस बैंक में विलय के प्रस्‍ताव पर स्‍वदेशी जागरण मंच ने भी सवाल उठाया है। इसको लेकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास को मंच ने एक पत्र भी लिखा है। मंच के राष्‍ट्रीय सह संयोजक डॉ अश्‍वनी महाजन ने रिजर्व बैंक गवर्नर से डीबीएस में एलवीबी के प्रस्‍तावित विलय के प्रस्‍ताव की फिर से विचार करने का अनुरोध किया है।

स्‍वदेशी जागरण मंच ने विभिन्‍न समाचार पत्रों में दोनों बैंकों के विलय के प्रस्‍ताव पर प्रकाशित खबरों का हवाला देते हुए कहा है कि आरबीआई का एलवीबी के जमाकर्ताओं की सुरक्षा के लिहाज से उठाया गया कदम सही है। लेकिन मंच का मानना है कि राष्‍ट्रीय हितों से समझौते किए बिना भी ये कदम उठाया सकता है। मंच का कहना है कि एलवीबी का डीबीएस में विलय का ये प्रस्ताव पारदर्शी नहीं है, जो आरबीआई की अब तक की अपनी प्रथाओं को दरकिनार करता हुआ दिख रहा है।

महाजन का कहना है कि डीबीएस बैंक एक विदेशी संस्‍था है, जिसके साथ एलवीबी का एकमुश्‍त विलय करने से 563 शाखाओं, 1000 एटीएम और 2 मिलियन ग्राहकों तक पहुंच रखने वाले इस बैंक का अस्तित्‍व ही समाप्‍त हो जाएगा। उन्‍होंने कहा कि आरबीआई के इस कदम से एक विदेशी बैंकिंग इकाई का पिछले दरवाजे से दाखिला हो जाएगा। क्‍योंकि, एलवीबी का जितना बड़ा नेटवर्क है, वो संयुक्‍त रूप से सभी विदेशी बैंकों के शाखा और नेटवर्क से बड़ा है।

स्‍वदेशी जागरण मंच का मानना है कि आरबीआई को डीबीएस बैंक में विलय से पहले एलवीबी के नेटवर्क और सभी हितधारकों के हित का मूल्‍यांकन करना चाहिए। मंच का कहना है कि एलवीबी को हासिल करने के लिए डीबीएस अपनी भारतीय सहायक कंपनी में 2,500 करोड़ रुपये की पूंजी लगा रहा है, जबकि अधिग्रहण के लिए कोई कीमत नहीं चुका रहा है। लेकिन, डीबीएस को एलवीबी के जमाकर्ताओं तक पहुंच होने से 20,000 करोड़ रुपये से ज्‍यदा का फायादा होगा।

महाजन ने कहा कि आरबीआई ने लक्ष्‍मी विलास बैंक के लिए टी.एन. मनोहरन को प्रशासक नियुक्‍त किया है, जो कि रिकॉर्ड में है कि बैंक सुरक्ष‍ि‍त है। लेकिन, किसी भी संकटग्रस्‍त वाणिज्यिक इकाई का एक व्‍यापक मूल्‍यांकन के साथ पारदर्शी और इच्‍छुक पक्षों से बोली लगवाने की प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।

स्‍वदेशी जागरण मंच का कहना है कि साल 1961 से भारत में 81 बैंकों का विलय हआ हैं। बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद 34 निजी क्षेत्र के बैंकों का विलय हुआ, जिसमें 26 पीएसबी के साथ 8 निजी क्षेत्र के बैंकों के साथ। लेकिन, 60 साल में एक भी भारतीय बैंक को विदेशी इकाई के साथ विलय करने का एक भी मामला सामने नहीं है। ऐसे में एलवीबी को अब विदेशी बैंक में क्यों मिलाया जा रहा है। मंच का कहना है कि ये प्रधानमंत्री के आत्‍मनिर्भर भारत अभियान के विपरीत है।

उन्‍होंने यस बैंक का हवाला देते हुए कहा कि जब आरबीआई ने एसबीआई, एलआईसी, एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, कोटक और अन्य से 12,000 करोड़ रुपये के योगदान के साथ पुनर्पूंजीकरण के मामले को हल किया तो ऐसे में एलवीबी के साथ ऐसा क्‍यों किया जा रहा है। साथ ही उन्‍होंने कहा कि लक्ष्‍मी विलास बैंक 1926 से लंबे समय तक चलने वाला संस्थान है। इसमें गहरे सामुदायिक संपर्क और एक अनूठी संस्कृति है। इसलिए हम हम आरबीआई को उच्च सम्मान में रखते हुए इस मामले में पारदर्शी होने और डीबीएस में प्रस्‍तावित विलय के प्रस्‍ताव की फिर से जांच करने का अनुरोध करते हैं।

उल्‍लेख्‍नीय है कि लक्ष्‍मी विलास बैंक का डीबीएस बैंक में विलय का बैंक के शेयरधारकों, आम नागरिकों और कई बैंकिंग यूनियन ने भी सवाल उठाए हैं। इन सभी का मानना है कि आरबीआई ने जिस तरह से डीबीएस इंडिया को एलवीबी मुफ्त में देने का फैसला किया है, उसमें कई झोल हो सकते हैं। ऑल इंडिया बैंक इंप्‍लाईज एसोसिएशन (एआइबीईए) के महासचिव सीएच वेंकटचलम ने भी कहा कि आरबीआई के नेतृत्व में एलवीबी के डीबीएस इंडिया में विलय की जो प्रक्रिया चल रही है, उसमें कुछ झोल नजर आ रहा है। (एजेंसी, हि.स.)

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