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अविश्वास प्रस्ताव का गिरना तय, फिर भी इसके बहाने क्या साबित करना चाहता है INDIA?

नई दिल्ली: मणिपुर हिंसा को लेकर संसद से सड़क तक विपक्ष और मोदी सरकार के बीच राजनीतिक टकराव जारी है. पिछले चार दिनों से मॉनसून सत्र शोर-शराबे की भेंट चढ़ जा रहा है. ऐसे में विपक्षी दल अब मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर मोदी सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव (नो कॉन्फिडेंस मोशन) लाने का फैसला किया है. विपक्षी अविश्वास प्रस्ताव लाने के बाद सरकार को साबित करना होगा कि उनके पास बहुमत है. मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का औंधे मुंह गिरना लगभग तय है. इसके बावजूद पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर विपक्षी दल क्या सियासी संदेश देना चाहते हैं?

मणिपुर मुद्दे पर अविश्वास प्रस्ताव
लोकसभा में नेता विपक्ष अधीर रंजन चौधरी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि मणिपुर हिंसा मामले पर हमारे पास अविश्वास प्रस्ताव का सहारा लेने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होगा, क्योंकि मोदी सरकार मणिपुर के मुद्दे पर विपक्षी दलों की मांग स्वीकार नहीं कर रही है. विपक्ष यही मांग कर रहा है कि कम से कम पीएम मोदी को संसद में आकर बयान देना चाहिए, लेकिन इसके लिए वो तैयार नहीं है. ऐसे में विपक्षी दलों ने अविश्वास प्रस्ताव लाने का कदम उठा रही है. विपक्षी के अविश्वास प्रस्ताव को स्पीकर ने स्वीकार कर लिया है.

अविश्वास प्रस्ताव का भविष्य तय है
मणिपुर मामले में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का भविष्य और रिजल्ट पहले से तय है, क्योंकि लोकसभा में संख्याबल के दम पर बीजेपी का पल्ला भारी है. बीजेपी के 301 सांसद जबकि उसके सहयोगी दलों को मिलकर 333 लोकसभा सदस्य हो रहे हैं. वहीं, विपक्ष के सभी दलों के कुल सांसदों का आंकड़ा 202 हो रहा है, जिसमें 142 सांसद विपक्षी गठबंधन INIDA में शामिल दलों के हैं और 64 सदस्य उन दलों के हैं, जो न एनडीए में है और न ही INDIA में. ऐसे में विपक्ष के सभी दल भी एकजुट हो जाते हैं तो भी अविश्वास प्रस्ताव पर मोदी सरकार के खिलाफ सफल नहीं करा सकेंगे. ऐसे में विपक्ष क्यों अविश्वास प्रस्ताव लाया है?

विपक्षी एकता का लिट्मस टेस्ट
विपक्षी दलों के द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाने के बाद मोदी सरकार मणिपुर हिंसा मामले पर लोकसभा में चर्चा करने के लिए मजबूर हो जाएगी. राज्यसभा में विपक्ष मणिपुर मामले को लेकर लगातार सरकार को घेर रहा है और अब लोकसभा में घेरने के मकसद से अविश्वास प्रस्ताव लाने का दांव चला है. केंद्र की मोदी सरकार के पास पूर्ण बहुमत है, जिसके चलते विपक्षी दलों के द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव का फेल होना तय है.


अविश्वास प्रस्ताव के बहाने विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपनी एकजुटता का क्या लिट्मस टेस्ट कर लेना चाहता है? 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दल सियासी चक्रव्यूह रचने में जुटे हैं. 26 विपक्षी दलों ने मिलकर INDIA यानि इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस का गठन किया है और आगामी लोकसभा चुनाव में मिलकर लड़ने पर रजामंद हैं.

मणिपुर मुद्दे पर घेरने की तैयारी
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अविश्वास प्रस्ताव की नाव पर सवार होकर विपक्षी अपनी एकजुटता का अंदाजा लगाना चाहते हैं और साथ ही सदन में चर्चा के दौरान मणिपुर हिंसा मुद्दे पर मोदी सरकर को घेरकर अवधारणा बनाने की लड़ाई जीतने की रणनीति है. विपक्षी दलों की रणनीति है कि मणिपुर मामले पर पीएम मोदी को लोकसभा में बोलने के लिए विवश करने की रणनीति भी है.

मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव भले ही सफल न हो, लेकिन चुनाव से पहले विपक्ष अपने सहयोगी दलों को एकजुटता का टेस्ट कर लेगी. वहीं, बीजेपी भी अविश्वास प्रस्ताव के मुद्दे पर सभी सहयोगी दलों को सदन में मौजूद रहने का आग्रह कर सकती है. ऐसे में कोई दल अगर मौजूद नहीं रहते हैं तो विपक्ष के बड़ी जीत होगी. इसके अलावा विपक्ष की कोशिश उन विपक्षी दलों को भी साधने की है, जो अभी तक INDIA का हिस्सा नहीं हैं. बीजेडी से लेकर बसपा, वाईएसआर कांग्रेस, टीआरएस जैसे दलों को अविश्वास प्रस्ताव के मुद्दे पर विपक्ष अपने साथ ले लेता है तो भी मोदी सरकार के लिए बड़ा झटका होगा.

मणिपुर के बहाने 2024 का नैरेटिव मणिपुर हिंसा के बहाने विपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ नैरेटिव सेट करने की भी रणनीति पर काम कर रहा है. इसीलिए INDIA अलग-अलग राज्यों में बैठक करके माहौल को बनाए रखने की रणनीति पर काम कर रहा है. अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान विपक्षी नेता सदन में बोलते हुए मोदी सरकार को मणिपुर सहित तमाम मुद्दों पर घेर सकती है. 2018 में भी राहुल गांधी ने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राफेल डील, बैंक घोटाला और रोजगार के मुद्दे पर मोदी सरकार को निशाने पर लिया था. इतना ही नहीं मोदी सरकार पर अपने चहेते कारोबारियों को मदद करने का भी आरोप लगाया था. इसी तरह से इस बार भी विपक्षी नेता 2024 के लोकसभा चुनाव का एजेंडा संसद से सेट करते नजर आ सकते हैं?

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