
नई दिल्ली। एयर इंडिया (Air India) को अपने हाथों में लेने के बाद अब टाटा (Tata) ने इसके कायाकल्प की तैयारी कर ली है। नई एग्जिक्युटिव टीम हर वो कोशिश कर रही है, जिससे एयर इंडिया को बेहतर बनाया जा सके। लागत को घटाने और प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने के मकसद से रीट्रेनिंग प्रोग्राम भी शुरू किए जा रहे हैं। यहां तक कि कंपनी ने वीआरएस (स्वैच्छिक रिटायरमेंट) स्कीम (Air India VRS) भी शुरू कर दी है, जो केबिन क्रू के लिए भी है। बड़ी बात यह है कि महज 40 साल के लोगों के लिए भी यह स्कीम है। यानी टाटा हर कीमत पर कंपनी को बेहतर करना चाहती है और अधिक से अधिक पुराने कर्मचारियों से छुटकारा पाना चाहती है, जो पुराने सिस्टम में काम करते-करते उसमें इतना अधिक ढल चुके हैं कि शायद ही नए बदलावों को अपना सकें।
कंपनी लाई वीआरएस स्कीम
वीआरएस स्कीम बुधवार को शुरू की गई है, जिसके तहत अगर कोई जुलाई अंत तक रिटायरमेंट लेता है तो उसे स्पेशल इंसेंटिव मिलेंगे। एयर इंडिया में अभी तक घरेलू और अंतरराष्ट्रीय विमानों को उड़ाने के लिए पायलट और केबिन क्रू अलग-अलग हैं। ऐसे में कंपनी ने ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किया है, जिसके तहत सभी क्रू मेंबर्स को ऐसी ट्रेनिंग दी जाएगी, जिससे वह घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह के विमानों में आसानी से काम कर सकेंगे।
विमानों को बनाया जा रहा बेहतर
नए बोइंग विमानों के लिए नेगोशिएशन हो रहा है, जबकि पुराने विमानों को बेहतर किया जा रहा है, ताकि लागत और क्वालिटी दोनों का ध्यान रखा जा सके। एक अधिकारी के अनुसार उन विमानों को हटाया जा रहा है, जो क्वालिटी स्टैंडर्ड पर खरे नहीं उतरते हैं। इतना ही नहीं, पायलट और क्रू मेंबर्स की मैनुअल रोस्टरिंग को भी बंद कर दिया है। इसकी जगह इलेक्ट्रिक रोस्टरिंग शुरू की गई है, ताकि किसी तरह की गड़बड़ी किए जाने की आशंका ना बचे।
क्रू मेंबर्स और पायलट की मनमानी पर लगाम
नए सिस्टम में पायलट और क्रू मेंबर्स के वर्किंग आवर यानी काम करने के घंटों को भी तय किया जा रहा है। मौजूदा सिस्टम में देखा गया है कि कुछ क्रू मेंबर 90 घंटों की फ्लाइंग कर रहे हैं, जबकि कई सिर्फ 20 घंटे की फ्लाइंग ही कर रहे हैं। ऐसे में अब दोनों के बीच के अंतर को खत्म करते हुए इसे बैलेंस करने की कोशिश हो रही है। इतना ही नहीं, पायलट को अब अपने आधिकारिक बेस से ड्यूटी पर रिपोर्ट करना होगा। अभी तक की व्यवस्था में वह अपनी पसंद की किसी जगह से फ्लाइट लेते थे और वहां जाने में होने वाला ट्रैवल पर खर्च और होटल में रुकने के खर्च का बिल कंपनी के नाम पर फाड़ दिया जाता था।
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