
स्वास्थ्य विभाग का निकम्मापन ढो रहे हैं कलेक्टर और उनके अधिनस्थ अधिकारी… 35 दिनों में किसी ने भी पूरी नींद नहीं ली
इंदौर। कोरोना मरीजों के इलाज की पूरी जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग की है… बेड, ऑक्सीजन, इंजेक्शन से लेकर अन्य दवाइयों की व्यवस्था इसी विभाग के अधीन आता है, लेकिन इसके निकम्मेपन को पिछले 14 महीने से कलेक्टर ढो रहे हैं। हालांकि ये स्थिति इंदौर सहित पूरे देश की ही है, लेकिन शहर की बात करें तो पिछले 35 दिनों से 16 से 18 घंटे पूरी प्रशासनिक मशीनरी काम कर रही है और किसी ने भी इस दौरान एक भी रात पूरी नींद नहीं ली और रात 3 से 4 बजे तक ऑक्सीजन (Oxygen) सहित आपातकालीन व्यवस्थाओं में जुटे रहे। यहां तक कि कई अफसरों के परिजन अस्पतालों में भर्ती हैं या उनका निधन भी हो गया, बावजूद इसके 24 घंटे की भी छुट्टी नहीं ली और अनवरत ड्यूटी पर डटे हैं। यही कारण है कि दिल्ली सहित देश के बड़े-बड़े शहरों में ऑक्सीजन की कमी के कारण बड़ी संख्या में लगातार मौतें हुई और हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक को कड़ी फटकार लगाना पड़ी। मगर इंदौर में कमी के बावजूद इस तरह के हालात नजर नहीं आए।
इंदौर को स्वच्छता में दो बार नम्बर वन बनवाने वाले कलेक्टर मनीष सिंह (Collector Manish Singh) ने जब कोरोना काल में ही इंदौर की जिम्मेदारी संभाली तब ना तो इलाज की कोई व्यवस्था थी और ना ही मास्क, सैनेटाइजेशन से लेकर अन्य साधन-संसाधन थे और शहर के अधिकांश निजी अस्पताल बंद पड़े थे। कमान संभालते ही बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को पटरी पर लाने के प्रयास किए गए और अभी जब कोरोना की दूसरी लहर ने अचानक कहर बरपाया तब भी मनीष सिंह और उनकी पूरी टीम ने मोर्चा संभाला। खासकर ऑक्सीजन (Oxygen) का जो संकट सामने आया उससे निपटने के लिए जहां बंद पड़े प्लांट चालू करवाए तो आधा दर्जन से अधिक अफसरों की टीम रात को 4-4 बजे तक जाकर ऑक्सीजन (Oxygen) सप्लाय में जुटी रही। खुद कलेेक्टर के अलावा अपर कलेक्टर डॉ. अभय बेडेकर, रोहन सक्सेना, विवेक श्रोत्रिय, अंशुल खरे से लेकर अन्य एसडीएम व अन्य ऑक्सीजन की व्यवस्था में ही जुटे हैं। जबकि कई बड़े शहरों में ऑक्सीजन सप्लाय प्रभावित होने से बड़ी संख्या में मरीजों की मौत तक हो गई। हालांकि इंदौर में भी ऑक्सीजन (Oxygen) की कमी रही और कई मरीजों को समय पर नहीं मिली। बावजूद इसके दिल्ली या अन्य शहरों की तरह हालाकार नहीं मचा, जहां सुप्रीम कोर्ट को फटकार लगाते हुए ऑक्सीजन दिलवाना पड़ रही है। वैसे तो यह सारी जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग के अधीन आती है, लेकिन यह जगजाहिर है कि सरकारी डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ काम नहीं करता। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में तो कोई भी ड्यूटी नहीं देता है। अभी भी कलेक्टर पिछले पांच दिनों से ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमण बढऩे के कारण दौरा कर रहे हैं और उसी दौरान फीवर क्लीनिक से लेकर इलाज, दवाइयों की शिकायत ग्रामीणों ने ही की, जिस पर उन्होंने स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. पूर्णिमा गडरिया से पूछा और फटकार भी लगाई। अपनी जिम्मेदारी का अहसास करने की बजाय महिला अधिकारी ने रोना-धोना कर सहानुभूति बटोरने के प्रयास किए और सोशल मीडिया पर इस तरह के फोटो-वीडियो प्रचारित भी हो गए और स्वास्थ्य विभाग की यूनियन ने इसे भुनाते हुए आज से हड़ताल पर जाने का निर्णय ले लिया और यह चेतावनी भी दे दी कि कलेक्टर को हटाए बिना वे ड्यूटी पर नहीं लौटेंगे। इसके पीछे के असल तथ्य यह भी है कि पिछले एक साल से कलेक्टर ने स्वास्थ्य विभाग में चल रही कई अनियमितताओं को पकड़ा और रोका, वही कसावट के साथ सबसे काम लेना भी शुरू कर दिया, जिसके चलते पूर्व में एक अधिकारी छुट्टी पर भी चले गए और अब हड़ताल की धमकी देना शुरू कर दी।
निगमायुक्त ने पेश की कत्र्तव्य की मिसाल
एक तरफ स्वास्थ्य विभाग की महिला अफसर रो-धोकर इस्तीफा देने और हड़ताल पर जाने के लिए सबको एकजुट करती है तो दूसरी तरफ निगमायुक्त प्रतिभा पाल (Pratibha Pal) जैसी महिला अधिकारी भी शहर में है, जिन्होंने गर्भावस्था के दौरान भी पूरे समय मैदान में डटे रहकर स्वच्छता सर्वेक्षण सहित अन्य जिम्मेदारियां निभाई और प्रसव के बाद भी तुरंत काम पर लौट आई। अभी कोरोना संक्रमण की भीषण परिस्थितियों में भी वे सुबह से रात तक मैदान में डटी रहती है और स्वास्थ्य विभाग का काम निगम के माध्यम से करवा भी रही हैं।
कलेक्टर बोले – जनता के काम के लिए ही डांटा
कलेक्टर मनीष सिंह (Collector Manish Singh) का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग के भी अधिकारी और कर्मचारी लगातार मेहनत कर रहे हैं और डॉ. पूर्णिमा गडरिया ने भी इस दौरान काम किया है। मेरी कोई व्यक्तिगत किसी से नाराजगी नहीं है, लेकिन प्रशासनिक मुखिया होने के नाते अगर कहीं लापरवाही नजर आती है और मरीजों के परिजन या जनता द्वारा शिकायत मिलती है तो संबंधित को डांटना-फटकारना भी पड़ता है। हम सब अभी इस कोरोना के भीषण संक्रमण वाले काल में एकजुट होकर ही काम कर रहे हैं और स्वास्थ्य विभाग भी उसी में जुटा है। कहीं कमी आने पर ही समझाना पड़ता है।
संवाद जारी, शीघ्र होगा निराकरण – सिलावट
कल देर रात जहां संभागायुक्त पवन कुमार शर्मा (Dr. Pawan Kumar Sharma) भी हड़ताल पर जाने वाले स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से चर्चा करते रहे और आज सुबह भी उन्होंने कहा कि जल्द ही मामला सुलझ जाएगा। वहीं इंदौर के प्रभारी मंत्री तुलसीराम सिलावट ने कहा कि डॉक्टरों के सम्मान की पूरी जिम्मेदारी मैंने ली है। संवाद लगातार जारी है और अतिशीघ्र निराकरण होगा। आपदा का यह समय सेवा का है और परिवार में वाद-विवाद होते हैं। मगर अभी लडऩे का समय नहीं है। संकट के इस समय में जहां डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की आवश्यकता है, वहीं प्रशासनिक अमले की भी उसी तरह जरूरत है।
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