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कंगाल पाकिस्‍तान को भारत देने वाला है 54 दिन बाद बड़ा झटका

ईरान के दक्षिणी-पश्चिमी हिस्‍से में भारत जिस चाबहार बंदरगाह को डेवलप कर रहा था, उसका काम लगभग पूरा हो चुका है। केंद्र सरकार की तरफ से उम्‍मीद जताई गई है कि मई माह तक यह बंदरगाह पूरी तरह से ऑपरेट होने लगेगा और यहां पर पूरी तरह से ऑपरेशंस शुरू हो जाएंगे। इस बंदरगाह को क्षेत्रीय व्‍यापार के लिए अहम करार दिया जा रहा है। इससे अलग यह बंदरगाह भारत के लिए वह एक हथियार है जिससे न सिर्फ पाकिस्‍तान बल्कि चीन की भी टेंशन बढ़ जाएगी।

चाबहार बंदरगाह न सिर्फ ईरान बल्कि अफगानिस्‍तान और सेंट्रल एशिया के दूसरे देशों के सामान भेजने का आसान रास्‍ता है। भारत अब सेंट्रल एशिया तक व्‍यापार कर सकेगा और उसके लिए पाकिस्‍तान की तरफ देखने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। हालांकि ईरान पर लगे अमेरिकी प्रतिबंध भारत की चिंता बढ़ाने वाले जरूर हैं।

माना जा रहा है कि जल्‍द ही कोई नतीजा निकलेगा और 500 मिलियन डॉलर के निवेश पर कोई असर नहीं आएगा। जहाजरानी और बंदरगाह मंत्रालय का जिम्‍मा संभालने वाले मनसुख मनडाविया ने न्‍यूज एजेंसी रॉयटर्स से कहा है कि अप्रैल या फिर मई तक फुल स्‍केल ऑपरेशंस के लिए चाबहार का उद्घाटन हो सकता है और इसके लिए वह ईरान जाएंगे।

भारत, चाबहार पर दो टर्मिनल तैयार कर रहा है जिसमें शाहिद बेहश्‍ती काम्‍प्‍लेक्‍स भी शामिल है। इसके अलावा ईरान के साथ एक समझौता साइन हुआ है जिसके तहत 10 सालों तक इस टर्मिनल को भारत ही ऑपरेट करेगा। मनडाविया ने बताया कि चाबहार बंदरगाह पर फरवरी 2019 से जनवरी 2021 तक 123 जहाजों का संचालन हुआ है और साथ ही 1।8 मिलियन टन कार्गो भेजा गया है।

पिछले वर्ष कोरोना वायरस महामारी की वजह से भारत ने चाबहार बंदरगाह का प्रयोग किया और 75,000 टन गेहूं अफगानिस्‍तान के लिए भेजा था। इसके अलावा 25 टन कीटनाशक भी भेजा गया था। चाबहार पोर्ट प्रोजेक्‍ट भारत के लिए बहुत अहम है। इस बंदरगाह के शुरू होते ही चाबहार इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर से जुड़ जाएगा।

सबसे खास यह है कि चाबहार बंदरगाह, पाकिस्तान में चीन की तरफ से संचालित हो रहे ग्वादर पोर्ट से करीब 100 किमी ही दूर है। चीन 46 अरब डॉलर खर्च कर ग्वादर पोर्ट बनवा रहा है और इस पोर्ट के जरिए एशिया में नए व्यापार और ट्रांसपोट्र रूट को खोलना चाहता है।
वहीं चाबहार पोर्ट की मदद से अफगानिस्तान की सीमा तक सड़क और रेल यातायात का विकास होगा और अफगान के साथ-साथ पूरे मध्य एशिया में भारत की पहुंच सुनिश्चित होगी। यह कॉरिडोर ईरान के बंदर अब्बास से लेकर रूस, यूरोप और यूरेशिया तक जाता है।

चाबहार न सिर्फ भारत के लिए सेंट्रल एशिया में पानी के रास्‍ते व्‍यापार की रणनीति है बल्कि आने वाले समय में दूसरे देशों तक संबंध मजबूत करने की पहल भी है। यह रास्‍ता रूस और यूरोप के देशों को भी फायदा पहुंचाएगा। ऐसे में रणनीति के हिसाब से चाबहार बहुत खास है, जहां न सिर्फ अफगानिस्तान के लिए व्यापार पर फोकस होगा, बल्कि एक तरफ भारत और दूसरी तरफ ईरान और रूस जैसे सहयोगी देश इसका इस्तेमाल कर सकेंगे। कांडला और चाबहार बंदरगाह के बीच दूरी अब दिल्ली से मुंबई के बीच की दूरी से भी कम होगी। यानी भारत और ईरान के बीच अब सामान आसानी और तेजी से पहुंचाया जा सकेगा। इस नए रास्‍ते से भारत और ईरान, अफगानिस्तान के बीच व्यापार में लागत और समय दोनों कम लगेगा।

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