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MP में गहरा सकता है बिजली संकट! 500 मेगावाट की यूनिट दो साल तक ठप रहने की आशंका

August 22, 2025

उमरिया। उमरिया जिले (Umaria district) के बिरसिंहपुर पाली स्थित संजय गांधी ताप विद्युत केंद्र (Sanjay Gandhi Thermal Power Station) एक बार फिर तकनीकी संकट में फंस गया है। केंद्र की सबसे बड़ी 500 मेगावाट क्षमता वाली यूनिट रोटर की गंभीर खराबी के कारण बंद पड़ी है। तकनीकी विशेषज्ञों का मानना है कि रोटर की मरम्मत में करीब दो साल का समय लग सकता है। इसका सीधा असर प्रदेश की बिजली आपूर्ति पर पड़ेगा।

सूत्र बताते हैं कि रोटर मरम्मत का काम जिस कंपनी को सौंपा गया है, उसने साफ कहा है कि मरम्मत के बाद रोटर कितने समय तक चलेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं दी जा सकती। यानी करोड़ों का खर्च और लंबा इंतजार करने के बाद भी यूनिट का भविष्य अनिश्चित ही रहेगा। इतना ही नहीं, री-मेंटेनेंस की अवधि में भी इस यूनिट को केवल आंशिक लोड पर चलाने की बात सामने आई है।

यह पहला मौका नहीं है, जब केंद्र की यूनिटें तकनीकी खामी के कारण लंबे समय तक ठप हुई हों। कुछ समय पहले यहां की 210 मेगावाट क्षमता वाली एक नंबर यूनिट करीब 11 महीने बंद रही। मरम्मत पर करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद वह बार-बार उत्पादन बंद करती रही। इससे केंद्र की रखरखाव व्यवस्था और तकनीकी प्रबंधन पर सवाल खड़े होते रहे हैं।


केंद्र के मुख्य अभियंता एच. के. त्रिपाठी पर आरोप लग रहे हैं कि वे ठेकेदारों के भरोसे यूनिटों के संचालन का काम कर रहे हैं और तकनीकी खामियों पर सख्त कार्रवाई नहीं कर पा रहे। यूनिटों का मेंटेनेंस अक्सर सिर्फ कागजों में दिखाया जाता है, जबकि वास्तविकता यह है कि करोड़ों खर्च करने के बावजूद उत्पादन स्थिर नहीं हो पाता। बताया जाता है कि क्वालिटी कंट्रोल और तकनीकी जांच में भी भारी लापरवाही बरती जा रही है।

प्रदेश की बिजली जरूरतों का बड़ा हिस्सा इस केंद्र से पूरा होता है। अगर 500 मेगावाट यूनिट लंबे समय तक बंद रही तो उत्पादन में भारी कमी आएगी। नतीजतन उपभोक्ताओं को बिजली कटौती का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही सरकार को निजी कंपनियों से महंगी दर पर बिजली खरीदनी पड़ेगी, जिसका अप्रत्यक्ष बोझ आम जनता पर पड़ेगा।

केंद्र का इतिहास बताता है कि यहां की यूनिटें बार-बार तकनीकी खामी और खराब प्रबंधन की वजह से ठप होती रही हैं। सवाल यह है कि जब करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद स्थायी समाधान नहीं मिल रहा, तो आखिर जिम्मेदारी तय क्यों नहीं होती। क्या यह केवल ठेकेदारों की गलती है या अभियंताओं की लापरवाही भी उतनी ही जिम्मेदार है?

विशेषज्ञ मानते हैं कि जब तक मरम्मत कार्यों की स्वतंत्र तकनीकी जांच और अभियंताओं से लेकर ठेकेदारों तक की जवाबदेही तय नहीं होगी तब तक यह केंद्र प्रदेश की बिजली व्यवस्था पर बोझ बना रहेगा। अब वक्त आ गया है कि जिम्मेदारों पर सख्त कार्रवाई हो, ताकि भविष्य में बार-बार उत्पादन बंद होने की समस्या न दोहराई जाए।

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