
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने वकीलों के लिए अहम फैसला लिया है. कोर्ट ने उसमें कहा है कि अब से आपराधिक मामलों में कानूनी सलाह देने के चलते जांच एजेंसियां (Investigation agencies) वकीलों को समन नहीं भेज सकेंगी. जब तक कि वह धारा 132 के तहत किसी अपवाद के अंतर्गत न आ जाए. भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) के तहत सिर्फ अपवाद की स्थिति में वकील को समन किया जा सकता है.
कोर्ट ने साथ ही कहा है कि जब किसी मामले को अपवाद मानकर वकील को समन जारी किया जाए तो उसमें विशेष रूप से उन तथ्यों का ब्योरा होना चाहिए जिनके आधार पर मामले को अपवाद माना गया है. ऐसे समन के लिए कम से कम SP रैंक के अधिकारी की मंजूरी होना जरूरी है. अधिकारी को भी मंजूरी देते समय लिखित में यह दर्ज करना होगा कि वह मामले को अपवाद की श्रेणी में रखे जाने पर सहमत हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि वकीलों से बरामद कोई भी डिजिटल सबूत सिर्फ ट्रायल कोर्ट में वकील और दूसरे पक्षकारो की मौजूदगी में पेश किया जा सकता है. कोर्ट ने ED और CBI को वकीलों को समन जारी करने के लिए सख्त जारी किए है जिनका पालन करना होगा. कोर्ट ने कहा बीएनएस के अंतर्गत डिजिटल उपकरणों की प्रस्तुति सिर्फ क्षेत्राधिकार वाली अदालत के पास ही होगा.
हाल ही में वरिष्ठ वकील अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को ED की ओर से जारी किए गए समन के बारे में मीडिया में आई खबरों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए यह मामला शुरू किया था. हालांकि, देशभर के बार एसोसिएशनों की आलोचना के बाद ED ने बाद में दोनों वकीलों को जारी हुए अपने समन को वापस ले लिया था.
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