
इंदौर। पहले मुख्यमंत्री और उसके बाद हाईकोर्ट आदेश के चलते साढ़े 11 किलोमीटर लम्बे बीआरटीएस को तोडऩे का निर्णय लिया गया। मगर नगर निगम तुड़ाई का ठेका देने के मामले में नौसीखिया साबित हुआ। पहले तो तीन बार टेंडर निरस्त किए गए और चौथी बार में एक बाहरी ठेकेदार फर्म को जैसे-तेसे राजी किया गया। मगर बाद में उसने भी काम करने से इनकार कर दिया, तो यह ठेका एक इंदौरी को मिला और अब पता चला कि उसने भी किसी तीसरे कबाड़ी को अपना ठेका ट्रांसफर कर दिया। नतीजतन तुड़ाई की रफ्तार बेहद सुस्त है।
बीआरटीएस कॉरिडोर को नगर निगम ने मजाक बना दिया और कल भी कलेक्टर, निगमायुक्त को जमकर फटाकर लगाई और यहां तक कह दिया कि किसी का मकान-दुकान तोडऩा हो तो नगर निगम को पूरा अमला पहुंच जाता है और तब कोई तकनीकी समस्या नहीं आती। मगर बीआरटीएस की रैलिंग तोडऩे और अन्य निर्माण हटाने में लगातार तकनीकी बहाने बनाए जा रहे हैं। पिछली सुनवाई में भी हाईकोर्ट की डबल बैंच ने नाराजगी जाहिर करते हुए कलेक्टर शिवम वर्मा और निगमायुक्त दिलीप कुमार यादव को तलब किया था और कल दोनों अधिकारी हाईकोर्ट में मौजूद भी रहे। हाईकोर्ट ने धीमी गति पर नाराजगी जाहिर की, जिस पर निगमायुक्त ने 15 दिन का समय मांगा और कहा कि एक हिस्से से बीआरटीएस को हटा दिया जाएगा। हालांकि हाईकोर्ट ने इसकी स्टेटस रिपोर्ट भी मांगते हुए अब अगली सुनवाई की तारीख 16 दिसम्बर तय कर दी है।
दूसरी तरफ निगम के जनकार्य समिति प्रभारी राजेन्द्र राठौर से जब पूछा गया कि बीआरटीएस तुड़ाई का काम इतनी धीमी गति से क्यों चल रहा है? इस पर उन्होंने जवाब दिया कि पहले बीआरटीएस को हटाने का ठेका बाहर के ठेकेदार दिनेश यादव ने लिया था। इसके बाद उन्होंने फिर इंदौर के किसी धाकड़ को यह ठेका सबलेट कर दिया और उसके बाद फिर धाकड़ ने भी अनुबंध कर एक कबाड़ी को इसकी जिम्मेदारी सौंप दी। दरअसल, मूल ठेकेदार ने तो काम करने से ही इनकार कर दिया था। मगर महापौर और समिति प्रभारी के समझाने के बाद वह जैसे-तेसे तैयार हुआ और उसने अपने इंदौरी सहयोगी को यह जिम्मेदारी सौंपी।
मगर वह भी काम नहीं कर सका, तो उसने अब कबाड़ी को इसका ठेका सौंप दिया। यहां तक कि नगर निगम में सिर्फ 7 लाख रुपए की राशि ही जमा की गई और पहली किश्त की राशि भी जमा नहीं हुई है और जीपीओ चौराहा से एमवाय के आगे तक की ही रैलिंग निकाली गई है और स्टेडियम के सामने का बस स्टॉप भी अभी तक पूरी तरह से नहीं हट सका है। जबकि पूरे बीआरटीएस पर 19 बस स्टॉप हटाए जाना है और अभी तक एक बस स्टॉप भी पूरी तरह से नहीं हट पाया है। रैलिंग उखाडऩे और उसके लिए बने बीम को तोडऩे का काम तो जल्द हो जाएगा, मगर सबसे अधिक समय बस स्टॉप को हटाने में लगेगा, क्योंकि उसके बाद ही सेंटर डिवाइडर बनाने का काम शुरू हो पाएगा, जिसके लिए निगम ने तीन ठेकेदार एजेंसियों के टेंडर अलग-अलग पैकेज में मंजूर कर रखे हैं। जानकारों का कहना है कि नगर निगम जब शहरभर में मकानों से लेकर अन्य निर्माणों को तोड़ता है तो उसे ही बीआरटीएस तुड़ाई का काम शुरू करना था। जिस तरह भोपाल में चंद दिनों में ही बीआरटीएस हट गया। मगर इंदौर में बीते 6 माह से टेंडर-टेंडर और ठेकेदार से काम करवाने में ही समय निकल गया और अभी भी तुड़ाई की रफ्तार अत्यंत सुस्त है। ऐसे में देखना यह है कि 15 दिन में एक हिस्सा भी कैसे तुड़वा पाता है निगम।
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