
नई दिल्ली । चुनाव आयोग (election Commission) ने सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) को दिए जवाब में यह स्पष्ट कर दिया है कि उसे किसी भी तय अंतराल पर विशेष गहन संशोधन (SIR) कराने के लिए अदालत (court)बाध्य नहीं कर सकती है। आयोग का कहना है कि संविधान और कानून के अनुसार मतदाता सूची तैयार करने और संशोधित करने का अधिकार विशेष रूप से उसी के पास निहित है। आयोग ने शुक्रवार को दाखिल हलफनामे में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 324, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1950 और मतदाता पंजीकरण नियम- 1960 के तहत मतदाता सूची तैयार करने व संशोधित करने का अधिकार केवल चुनाव आयोग को है।
अदालत द्वारा तय अंतराल पर संशोधन का आदेश देना आयोग की पूर्ण संवैधानिक शक्तियों में हस्तक्षेप होगा। कानून में किसी निश्चित समयावधि का प्रावधान नहीं है, आयोग परिस्थितियों के अनुसार सारांश, गहन या विशेष संशोधन करने के लिए स्वतंत्र है।
यह हलफनामा अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका के जवाब में दायर किया गया है। उपाध्याय ने मांग की है कि देशभर में विशेष संशोधन नियमित अंतराल पर हों, ताकि गैरकानूनी विदेशी घुसपैठिये चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित न कर सकें।
उनका आरोप है कि बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और म्यांमार से आए अवैध प्रवासियों और जनसंख्या असंतुलन ने कई राज्यों की मतदाता सूचियों को विकृत किया है। उन्होंने दावा किया कि बिहार की हर विधानसभा सीट में 8,000–10,000 तक फर्जी या दोहराए गए नाम हो सकते हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चल रही विशेष संशोधन प्रक्रिया पर विपक्षी INDIA गठबंधन ने आरोप लगाया है कि यह मतदाता सूची को पक्षपातपूर्ण बनाने की कोशिश है। चुनाव आयोग ने पलटवार करते हुए कहा कि राजनीतिक दलों को प्रदर्शन करने के बजाय सही मतदाताओं की मदद करनी चाहिए।
8 सितंबर को न्यायमूर्ति सूर्या कांत की पीठ ने आदेश दिया कि आधार कार्ड को मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए 12वें वैध दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाए। आयोग इस पर आरक्षण जता रहा था, लेकिन अदालत ने कहा कि भले ही आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है यह पहचान और निवास का वैध साक्ष्य है।
आयोग ने अदालत को बताया कि 1 जनवरी 2026 को पात्रता तिथि मानते हुए विशेष गहन संशोधन पहले ही तय कर लिया गया है। सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को पूर्व-तैयारी गतिविधियां शुरू करने के निर्देश दिए जा चुके हैं। 10 सितंबर को दिल्ली में सीईओ सम्मेलन आयोजित कर तैयारी की समीक्षा की गई।
अंत में आयोग ने कहा कि वह मतदाता सूची की पवित्रता और शुद्धता बनाए रखने के लिए पूरी तरह जिम्मेदार है, लेकिन संशोधन के समय और तरीका तय करना उसका विशेषाधिकार है। आयोग ने हलफनामे में कहा है कि उपरोक्त तथ्यों के मद्देनजर यह याचिका खारिज की जानी चाहिए।
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