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नए जम्मू -कश्मीर में ऐतिहासिक फैसलों से स्थानीय नेताओं में असुरक्षा की भावना


नयी दिल्ली/श्रीनगर । जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) प्रशासन (Administration) ने हाल ही में जो ऐतिहासिक फैसले (Historic Decisions) लिए हैं उनसे पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) और नेशनल कांफ्रेंस (NC) के नेताओं (Leaders) में एक तरह से असुरक्षा की भावना (The feeling of Insecurity) देखी जा रही है और इनके नेता प्रशासन के हर काम में कमी निकाल रहे हैं।


पीपुल्स डेमोक्रे टिक पार्टी प्रमुख महबूबा मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेंस उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला लोगों को कह रहे हैं कि उनके अधिकार छीने जा रहे हैं और आने वाले भविष्य में उनके पास कुछ भी नहीं रहेगा। इनकी इस तरह की बातें बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि वे खुलेआम झूठ फैलाकर अपने आपको फिर से प्रासंगिक बनाने की कोशिश में हैं।
केन्द्र सरकार ने जब पांच अगस्त 2019 को जम्मू- कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने की घोषणा कर राज्य को दो केन्द्रशासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था तो उस समय काफी चीजों में बदलाव आया था। पिछले ढाई वर्षों में केन्द्र सरकार ने जो नियम लागू किए हैं उनसे स्थानीय नेताओं में एक तरह की व्याकुलता है, लेकिन अब जम्मू-कश्मीर विकास तथा समृद्धि की राह पर चल पड़ा है।
स्थानीय लोगों को अब समझ में आने लगा है कि उनके नेता सिर्फ नारेबाजी करते हैं और धरातल पर उन्होंने जनता के विकास के लिए कोई ठोस काम नहीं किया है। अब नए दौर में जब चीजें नई दिशा की तरफ जा रही हैं और नए जम्मू-कश्मीर की ठोस बुनियाद रखी जा रही है तो ये नेता समय की घड़ी को वापिस ले जाकर हर चीज को पुराने दौर में ले जाना चाहते हैं ताकि उन्हें राजनीति करने का मौका मिलता रहे और वे सत्ता में बरकरार रहें।

हाल ही में राजौरी जिले में एक युवा सम्मेलन को संबोधित करते हुए सुश्री मुफ्ती ने कहा था कि लोगों के जो अधिकार छीने गए हैं उन्हें उनके लिए संघर्ष करना चाहिए और अगर वे ऐसा करने का साहस नहीं दिखाएंगो तो आने वाली पीढ़ियां उनसे सवाल करेंगी क्योंकि उनकी जमीन, रोजगार और राज्य के खनिज संसाधनों को छीनकर बाहरी लोगों को दिया जा रहा है।
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने जब भूमि इस्तेमाल कानूनों में बदलाव की घोषणा की और कृषि भूमि को गैर कृषि कार्यों में परिवर्तित करने की राजस्व बोर्र्ड की अनुसंशाओं को मंजूरी दी तो सुश्री महबूबा ने यह कहा था कि यह जम्मू-कश्मीर की की जनसांख्यिकी को बदलने की कोशिश की जा रही है। उमर अब्दुल्ला ने भी उनके सुर में सुर मिलाते हुए कहा था कि भूमि इस्तेमाल कानूनों में बदलाव से तत्कालीन सरकार के समय में जो प्रगति हुई थी वह रूक जाएगी। ये नेता जिस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं लोग सिर्फ उसे सुन रहे हैं क्योंकि यह किसी भी तरह से उन्हें प्रभावित नहीं कर पा रही है।

राज्य सभा में पिछले सप्ताह केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने जानकारी दी थी कि पिछले ढाई वर्षों में बाहरी लोगों ने इस केन्द्र शासित प्रदेश में मात्र सात प्लॉट ही खरीदे हैं और ये सिर्फ जम्मू क्षेत्र में ही खरीदे गए हैं। राज्य को विशेष दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 इसकी औद्योगिक क्षेत्र की प्रगति में बाधक था क्योंकि उसके चलते यहां बाहर का कोई आदमी जमीन नहीं खरीद सकता था। लेकिन अक्टूबर 2020 में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने भूमि राजस्व अधिनियम में बदलाव करने संबंधी अधिसूचना जारी की थी जिसके बाद बाहर का कोई भी व्यक्ति यहां आकर कृषि तथा अन्य प्रकार के इस्तेमाल के लिए जमीन खरीद सकता है। अब सरकार ने जिला अधिकारियों को कृषि भूमि के गैर कृषि कार्यों में इस्तेमाल करने को मंजूरी दे दी है और यह राजस्व बोर्ड की अधिसूचना के अनुरूप ही किया गया है।
केन्द्र सरकार के ये सभी कदम मरणासन्न औद्योगिक क्षेत्र में नई जान फूंक रहे हैं और इनका मकसद जम्मू-कश्मीर में नए औद्योगिक आधारभूत ढांचे को निर्मित करना है क्योंकि यह क्षेत्र 1947 से मरनासन्न हालत में था । इस पर किसी भी सरकार ने कभी भी ध्यान नहीं दिया था और अगर केन्द्र की सरकारें इस पर पहले से ध्यान केन्द्रित करती तो यहां भी औद्योगिक केन्द्रों तथा कंपनियों की भरमार होती।

अब केन्द्र सरकार यहां नए निवेशकों को लाकर लोगों के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में प्रयासरत है तो यहां पिछले सात दशकों से शासन कर नेताओं को असहज महसूस हो रहा है ।वे इस तरह की झूठी बातों को प्रचारित कर रहे है कि सभी कुछ बाहरी लोगों को बेचा जा रहा है तथा स्थानीय लोगों के अधिकार छीने जा रहे हैं। ये नेता अभी भी इस बात को नहीं समझ पा रहे है कि जम्मू -कश्मीर प्रशासन की ओर से की जा रही पहल के बावजूद अधिकतर निवेशक यहां आने से कतरा रहे हैं क्योंकि कोई भी कारोबारी ऐसी जगह में आकर नहीं फंसना चाहेगा जहां अनिश्वितता तथा अराजकता का माहौल हो।
पिछले दो वर्षों में केन्द्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने निवेशकों का भरोसा जीतने और उनमें आत्मविश्वास पैदा करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं लेकिन कश्मीरी नेता स्थानीय लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे उनके मसीहा हैं। मगर इन नेताओं को यह बात समझनी होगी कि जब तक यहां बाहर से निवेश नहीं होगा , औद्योगिक क्षेत्र में कोई प्रगति नहीं होगी तब तक स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा नहीं होंगे । अगर ऐसा होता है तो लोगों के जीवन स्तर में खुद ही सुधार आ जाएगा।

जहां तक रोजगार की बात है तो यह भी समझना होगा कि इस क्षेत्र में सरकार की भी अपनी सीमाएं हैं और वह हर किसी को रोजगार नहीं दे सकती है। पिछले दो वर्षों में केन्द्रशासित प्रदेश में 20 हजार से अधिक खाली पदों की घोषणा की जा चुकी है और विभिन्न विभागों में इन्हें भरने की प्रकिया जारी है लेकिन मात्र 30 से लेकर 30 हजार लोगों को रोजगार दिए जाने से बेरोजगारी की समस्या का अंत नहीं होगा । इस क्षेत्र में अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है और मौजूदा प्रशासन यही कर रहा है। अगस्त 2019 के बाद अनेक बड़ी कंपनियों ने यहां निवेश करने में रूचि दिखाई थी, मगर इसके लिए उन्हें सुरक्षित और बेहतर माहौल की आवयश्कता है तथा इस बात की सुरक्षा भी दी जानी चाहिए कि उनका निवेश सुरक्षित रहेगा।
कश्मीर आधारित स्थानीय नेताओं को यह बताए जाने की आवश्यकता है कि बड़े निवेशक विश्व के किसी भी हिस्से में जाकर निवेश कर सकते हैं और मौजूदा प्रशासन भी उन्हें यही आश्वस्त करने का प्रयास कर रहा है कि वे यहां आकर निवेश करें ताकि यहां के स्थानीय लोगों को रोजगार की तलाश में कहीं बाहर नहीं जाना पड़े।

जम्मू-कश्मीर में कुशल और गैर कुशल श्रमिकों की भरमार है, लेकिन इस समस्या को बाहर से निवेश लाए बगैर हल नहीं किया जा सकता है और इस बात को कश्मीर के नेताओं को बैठकर अच्छी तरह समझना होगा। उन्हें इस बात पर भी आत्म अवलोकन करना चाहिए कि आखिर बाहरी लोगों को यहां नहीं आने देने से किस तरह फायदा होगा, लेकिन अनुच्छेद 370 को समाप्त किए जाने के बाद से स्थितियों में काफी बदलाव आया है और लोग अब यहां निवेश करने के बारे में सोचने लगे हैं।
इसे देखते हुए कश्मीरी नेताओं को भी यह बात समझनी होगी कि आखिर वे कब तक पुरानी शराब को नई बोतल में बेचने की कोशिश करते रहेंगें। उन्हें यहां हो रहे परिवर्तन की प्रकिया में रोड़े अटकाने के बजाय इसमें सक्रिय रूप से हिस्सा लेना चाहिए, क्योंकि लोगों को भड़काने के उनके मंसूबे काम नहीं कर रहे हैं और आम लोग भी अब उन्हें गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। केन्द्र सरकार ने उनके लिए संभावनाओं के नए अवसर प्रदान किए हैं और आम कश्मीरी नागरिक अब अपने स्थानीय नेताओं की बातों में अधिक रूचि नहीं दिखा रहे हैं।

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