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वन भूमि पट्टों को लेकर शासन ने जारी किया नया आदेश

October 20, 2025

  • 48 साल पुराने कानून के कुछ प्रावधान बदले, तीन पीढिय़ों का प्रमाण-पत्र ना दे सकने वालों को भी जांच के बाद मिल सकेंगे वन भूमि के पट्टे

इंदौर। वन भूमि पट्टों को लेकर शासन ने नया आदेश जारी किया है, जिसमें तीन पीढिय़ों का प्रमाण-पत्र ना दे सकने वालों को भी जांच के बाद वन भूमि के पट्टे दिए जा सकेंगे। वन अधिकार अधिनियम के तहत वन ग्रामों में नए सिरे से सर्वे भी कराया जाएगा। इससे उन आदिवासियों को राहत मिलेगी जिनके दावे पहले खारिज कर दिए हैं। अवैध आबंटनों की जांच के बाद वन भूमि का कब्जा भी वन विभाग वापस ले सकेगा। यह भी उल्लेखनीय है कि पूर्व में हुए सर्वे के चलते 3 लाख से अधिक दावे निरस्त किए गए थे।

हर चुनाव में आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाने के प्रयास राजनीतिक दलों द्वारा किए जाते हैं। वहीं मध्यप्रदेश में जयस का गठन भी इसी के चलते हुआ। कुछ समय पूर्व शासन ने वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत छूटे हुए पात्र आदिवासियों को पट्टे देने का निर्णय लिया था, क्योंकि पूर्व में सर्वे के बाद बड़ी संख्या में दावे निरस्त कर दिए थे।


भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस भी जंगल, जल और जमीन की रक्षा के आंदोलन चलाती रही है। अभी अपर मुख्य सचिव वन के साथ-साथ पंचायत, ग्रामीण विकास और राजस्व के संयुक्त हस्ताक्षर से सभी जिला कलेक्टरों को एक परिपत्र जारी किया है, जिससे उन गैर आदिवासी वर्गों को भी राहत मिलेगी, जो तीन पीढिय़ों का प्रमाण-पत्र नहीं दे पा रहे हैं। अब उन्हें भी वन भूमि के पट्टे वनाधिकार कानून के तहत जांच के बाद मिल सकेंगे। ऐसे प्रकरणों में वन ग्राम की सीमा के अंदर 13 दिसम्बर 2005 की स्थिति में पट्टाधारी या उनके पात्र वारिसों द्वारा कहीं भी पट्टे के रकबे की सीमा तक कब्जे को मान्य करते हुए आरक्षित एवं संरक्षित वनों में वन ग्रामों की स्थापना नियम 1977 के अंतर्गत पुनरीक्षित पट्टे वनाधिकार कानून के तहत दिए जाएंगे।

ये पट्टे ढाई हेक्टेयर से अधिक जमीनों पर भी हो सकेंगे, अगर 1977 पूर्व के वन ग्राम नियमों के तहत दिए गए हों। कलेक्टरों को भेजे गए इस परिपत्रों में यह भी कहा गया है कि कुछ ग्रामों में पट्टेधारी 13 दिसम्बर 2005 के पूर्व ग्राम छोडक़र चले गए अथवा उनकी मृत्यु हो गई और उनके किसी वारिस का भी पता नहीं चल पा रहा है और वर्तमान में उनकी भूमि वनाच्छाधित होकर वन के रूप में परिवर्तित हो गई है, तो ऐसी स्थिति में उनके पट्टे शून्य माने जाएंगे और अगर भविष्य में कोई वारिस के होने का संज्ञान मिलता है या दावा किया जाता है तो पात्रता निर्धारित कर नियमानुसार उसका भी निराकरण किया जाएगा। दूसरी तरफ मध्यप्रदेश में आदिवासी समुदाय राज्य की आबादी का लगभग 21 फीसदी हिस्सा है और वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत उनके अधिकार भी सुनिश्चित किए गए हैं। भाजपा हालांकि लगातार आदिवासियों के हितों से जुड़े निर्णय वोट बैंक के चक्कर में लेती रही है।

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