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जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, आयोग के गठन को बताया असंवैधानिक


नई दिल्ली । जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) के निर्वाचन क्षेत्रों (Constituencies) को फिर निर्धारित करने के लिए परिसीमन (Delimitation) आयोग (Commission) के गठन (Formation) के केंद्र सरकार (Central Govt.) के मार्च 2020 के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक याचिका दायर की गई है (A Petition has been Filed) । कश्मीर निवासी हाजी अब्दुल गनी खान और डॉ. मोहम्मद अयूब मट्टू द्वारा दायर याचिका में यह घोषणा करने का निर्देश देने की मांग की गई है कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 करना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है।


याचिका में कहा गया है कि जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश में सीटों की संख्या में 107 से 114 की वृद्धि संवैधानिक प्रावधानों जैसे कि अनुच्छेद 81, 82, 170, 330 और 332 और विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 63 के तहत वैधानिक प्रावधानों के विपरीत है।
याचिका में शीर्ष अदालत से 6 मार्च, 2020 को जारी अधिसूचना घोषित करने के बारे में निर्देश जारी करने का भी आग्रह किया गया, जिसमें जम्मू-कश्मीर और असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड राज्यों के परिसीमन को संविधान के अनुच्छेद 14 के उल्लंघन के रूप में परिसीमन करने के लिए परिसीमन आयोग का गठन किया गया था।

याचिका में कहा गया है, “वास्तव में, जम्मू और कश्मीर राज्य में, 2001 में जनगणना कार्य पूरा हो गया था, लेकिन परिसीमन 1995 में किया गया था। इस हिसाब से भी, अपनाई गई पूरी प्रक्रिया असंवैधानिक है क्योंकि 2011 के दौरान जम्मू और कश्मीर के लिए कोई जनसंख्या जनगणना अभियान नहीं चलाया गया था।”
दलील में तर्क दिया गया है कि अगर 5 अगस्त, 2019 को भारत के साथ जम्मू और कश्मीर राज्य को एकजुट करना था, तो परिसीमन प्रक्रिया देश में एक राष्ट्र और एक संविधान के ‘नए आदेश’ को नकार देती है। इसमें कहा गया है, “जबकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 170 में यह प्रावधान है कि देश में अगला परिसीमन 2026 के बाद किया जाएगा, फिर इसके लिए जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश को क्यों चुना गया है?”

याचिका में कहा गया है कि 2001 की जनगणना के बाद, जम्मू और कश्मीर विधानसभा ने जम्मू और कश्मीर (29वें संशोधन) अधिनियम, 2002 के तहत जम्मू और कश्मीर संविधान की ‘धारा 47’ में संशोधन किया, ताकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 170 के अनुरूप और उसके अनुरूप, 2026 के बाद तक परिसीमन अभ्यास पर रोक लगाई जा सके। याचिका में आगे कहा गया है, “कानून और विधायी विभाग द्वारा परिसीमन आयोग की नियुक्ति की अधिसूचना जारी करना जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के अलावा चुनाव कानूनों के क्षेत्राधिकार, असंवैधानिक और अल्ट्रा वायर्स (अधिकातीत) के बिना है।” याचिका में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर में सीटों की संख्या बढ़ाने के किसी भी कदम से पहले एक संवैधानिक संशोधन होना चाहिए।

इसमें कहा गया है कि परिसीमन आयोग ने संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों के साथ 5 जुलाई 2004 को विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों के परिसीमन के लिए दिशानिर्देश और कार्यप्रणाली जारी की थी। याचिका के अनुसार, “यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और पांडिचेरी के केंद्र शासित प्रदेशों सहित सभी राज्यों की विधानसभाओं में मौजूदा सीटों की कुल संख्या, जैसा कि 1971 की जनगणना के आधार पर तय की गई है, वर्ष 2026 के बाद होने वाली पहली जनगणना तक अपरिवर्तित रहेगी।”

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