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‘घर में एक हफ्ते से राशन नहीं, परिवार को कैसे खिलाऊं खाना’, 20 मिनट के लिए अरबपति बने मजदूर का दर्द

December 09, 2025

बक्सर: तारीख थी 7 दिसंबर… जगह बिहार का बक्सर जिला. बड़का राजपुर गांव का 36 वर्षीय मजदूर जितेंद्र साह के लिए ये दिन भी किसी आम दिन की तरह ही था. वो सुबह उठा. पत्नी ने कहा कि सुनो जी, घर में राशन-पानी बिल्कुल खत्म है. आप राशन ले आइए. जितेंद्र ने कहा तुम तो जानती ही हो कि पिछले एक हफ्ते से मेरे पास कोई काम नहीं है. जेब में फूटी कोड़ी तक नहीं है. पत्नी बोली- आप एक काम करो. सीएसपी सेंटर जाकर अपना खाता चेक करवाओ. क्या पता उसमें थोड़े बहुत पैसे हों. उन्हें निकलवाकर राशन ले आओ.

जितेंद्र ने पत्नी की बात मान ली. वो सीएसपी सेंटर गया. वहां कर्मचारी को अपना खाता नंबर देकर बोला- सर मेरे खाते में चेक कीजिए कितने रुपये हैं. 500 हैं तो उसमें से 300 रुपये निकालकर मुझे दे दीजिए. 400 हैं तो 200 रुपये निकाल कर दे देना. सीएसपी सेंटर के कर्मचारी ने जैसे ही उसका खाता चेक किया उसके मुंह से एक ही शब्द निकला- 600 करोड़. ये एक जवाब और सवाल दोनों ही थे. क्योंकि कर्मचारी खुद इतनी बड़ी रकम देखकर सन्न था.

वहीं, जितेंद्र ने जब ये सुना तो थरथराती आवाज में बोला- क्या? 600 करोड़? उसके पैरों तले जमीन सी खिसक गई. उसे लगा ये कोई सपना है शायद. तब जितेंद्र ने कहा उस वक्त मुझे एक दम से अपना टूटा घर, बच्चों की भूख और रोना याद आ गया. पहले लगा कि शायद इनकी मशीन ही खराब है. फिर मैंने कहा- ठीक है आप 10000 रुपये दे दीजिए मुझे. सीएसपी सेंटर कर्मी ने कहा कि नहीं मैं तुम्हें रुपये नहीं दे सकता.


जितेंद्र ने कहा- साहब कम से कम 200 रुपये तो दे दो. घर पर परिवार भूख से तड़प रहा है. मगर सीएसपी सेंटर के कर्मचारी का कहना था- भाई तुमको एक रुपया भी निकालकर दिया तो मेरी नौकरी चली जाएगी. तुम पर भी एक्शन हो सकता है. इसके बारे में हमें पुलिस को बताना होगा. फिर तुरंत जितेंद्र का अकाउंट 20 मिनट के अंदर फ्रीज कर दिया गया. बैंक मैनेजर और पुलिस ने इसे तकनीकी गड़बड़ी बताया है और जांच जारी है. पुलिस ने परिवार को भरोसा दिलाया है कि जब तक कोई अपराध सामने नहीं आता, उन्हें परेशान नहीं किया जाएगा.

मगर जितेंद्र के लिए ये एक बुरे सपने जैसा ही है. एक न्यूज पेपर से बातचीत में जितेंद्र ने बताया- हम दो कमरों के टूटे-फूटे घर में रहते हैं. 11 लोगों का परिवार है. किचन भी टिन की है. मैं हलवाईयों के साथ हेल्पर का काम करता हूं. कभी काम मिलता है तो कभी नहीं भी मिलता. पत्नी छोटी सी टपरी में सिगरेट-बीड़ी और तंबाकु बेचती है. अगर 100 से 150 रुपये की कमाई उसकी होती है तो हम शुक्रगुजार रहते हैं. हमारे लिए 500 रुपये ही सबसे बड़ी रकम है. मैं भी मजदूरी से बामुश्किल 200 से 300 रुपये दिहाड़ी कमाता हूं. वो भी तब जब काम मिलता है.

जितेंद्र ने कहा- पिछले एक सप्ताह से मेरे पास कोई काम नहीं है. ना मैं पैसे निकाल पा रहा हूं. पैसों की दिक्कत तो है ही. मगर अब ये नई टेंशन हो गई है कि कहीं मुझपर ही कोई एक्शन ना हो जाए. पुलिस मुझे ही ना पकड़ ले. मैं तो जानता ही नहीं कि ये रकम आई कहां से. वहीं, थानाध्यक्ष पूजा कुमारी ने बताया- हमें भी सूचना मिली कि एक मजदूर के खाते में भारी भरकम राशि आई है. यह तकनीकी मामला है, बैंक इसकी जांच कर रहा है.

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