
नई दिल्ली । न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला (Justice JB Pardiwala)की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय(Supreme Court) की पीठ ने एक दंपत्ति को अग्रिम जमानत(Anticipatory Bail) देते समय शांत व्यवहार दिखाया, जिन्होंने हाल ही में एक दीवानी मामले में आपराधिक कार्यवाही की अनुमति देने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश की आलोचना की थी। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति पारदीवाला ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि इस बार मैं संयम नहीं खोऊंगा।
एक मामले (जिसमें राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक दीवानी विवाद मामले में दंपति को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था) की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने 13 अगस्त को कहा था कि समस्या स्थापित कानून का पालन न करने से उत्पन्न हुई है। न्यायमूर्ति पारदीवाला ने एक मौखिक टिप्पणी में कहा कि इस बार मैं अपना आपा नहीं खोने वाला हूं।
भुगतान विफल होने पर विक्रेता ने शिकायत दर्ज कराई थी। इस मामले में एक दंपति के खिलाफ धोखाधड़ी, आपराधिक विश्वासघात और आपराधिक षड्यंत्र के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। शिकायतकर्ता के अनुसार दंपति ने प्लाईवुड की बिक्री के लिए 3,50,000 रुपये का भुगतान किया था। हालांकि दंपति शेष 12,59,393 रुपये का भुगतान करने में विफल रहे, जिसके बाद विक्रेता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि एक बार बिक्री लेन-देन हो जाने पर कोई आपराधिक विश्वासघात नहीं हो सकता।
हाईकोर्ट ने दंपति को अग्रिम जमानत से मना किया था
उच्चतम न्यायालय की पीठ ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि राजस्थान उच्च न्यायालय ने दंपति को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि यदि उन्हें सुरक्षा दी जाती है तो राशि की वसूली नहीं हो सकेगी। पीठ ने कहा कि उपरोक्त से हम यह समझ पाए हैं कि राज्य के अनुसार शेष राशि की वसूली के लिए पुलिस तंत्र की आवश्यकता है। उच्च न्यायालय ने राज्य की ओर से प्रस्तुत इस दलील को सहर्ष स्वीकार कर लिया। हमें इस मामले में और कुछ कहने की जरूरत नहीं है। आमतौर पर जमानत देते समय, हम जमानत देने से इनकार करने वाले उच्च न्यायालयों के आदेशों को रद्द नहीं करते, लेकिन यह एक ऐसा आदेश है, जिसे हम रद्द करना उचित समझते हैं।
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