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फर्जीवाड़ा कर दो भाई पुलिस अफसर बने, आगरा में दोनों ने की नौकरी… 27 साल बाद खुली पोल

September 20, 2025

आगरा: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के आगरा पुलिस (Agra Police) महकमे में मृतक आश्रित कोटे (Deceased Dependent Quota) से भर्ती हुए दो सगे भाइयों (Brothers) के मामले ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है. इस मामले में एसीपी नागमेंद्र लांबा, जो अब रिटायर हो चुके हैं. उनके छोटे भाई इंस्पेक्टर योगेंद्र लांबा पर फर्जी तरीके से नौकरी पाने का आरोप है. पुलिस आयुक्त ने इस पूरे मामले की विभागीय जांच एडीसीपी क्राइम हिमांशु गौरव को सौंपी है.

डीसीपी ट्रैफिक अभिषेक अग्रवाल की शुरुआती जांच में यह सामने आया है कि इंस्पेक्टर योगेंद्र लांबा ने फर्जी कागजात के आधार पर नौकरी पाई थी. जांच के बाद दोनों भाइयों को आरोप पत्र दिए गए हैं और उनसे जवाब मांगा गया है. इस केस के सामने आने के बाद रिटायर एसीपी नागमेंद्र लांबा की पेंशन और अन्य लाभ रोक दिए गए हैं, जबकि इंस्पेक्टर योगेंद्र लांबा का वेतन भी रोक दिया गया है. फिलहाल, योगेंद्र लांबा पुलिस लाइन में तैनात हैं.

यह पूरा मामला तब सामने आया, जब डीजी मुख्यालय को एक गुप्त शिकायत मिली, जिसमें आरोप लगाया गया था कि नागमेंद्र लांबा और योगेंद्र लांबा दोनों ने मृतक आश्रित कोटे में नौकरी ली है. यह जांच डीसीपी ट्रैफिक अभिषेक अग्रवाल को दी गई. दिलचस्प बात यह है कि दोनों भाई पिछले तीन साल से आगरा में एक साथ तैनात थे. नागमेंद्र लांबा अकाउंट सेक्शन में थे और वह अपने भाई योगेंद्र का भी वेतन तैयार करते थे.


जांच में पता चला कि नागमेंद्र लांबा 1986 में हल्द्वानी (तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा) से पुलिस में भर्ती हुए थे, जबकि उनके भाई योगेंद्र लांबा 1997 में मेरठ से भर्ती हुए. वर्तमान नियमों के अनुसार, मृतक आश्रित कोटे में आवेदन की समय सीमा पांच साल है. 1997 में डिजिटल रिकॉर्ड नहीं थे. इसलिए जांच अधिकारी उस समय के मैनुअल रिकॉर्ड्स की पड़ताल करेंगे. इसके साथ ही, यह भी देखा जाएगा कि योगेंद्र की भर्ती के समय किसने यह शपथ पत्र दिया था कि यह परिवार की पहली और एकमात्र मृतक आश्रित भर्ती है.

पुलिस आयुक्त दीपक कुमार ने इस मामले को लेकर विभागीय जांच के आदेश दिए हैं. यह एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें प्रारंभिक जांच करने वाले अधिकारियों के भी बयान दर्ज किए जाएंगे. पुलिस महकमे में चर्चा है कि यह गोपनीय शिकायत किसी ऐसे पुलिसकर्मी ने की है, जिसे दोनों भाइयों के बारे में पूरी जानकारी थी. माना जा रहा है कि यह शिकायत किसी ऐसे व्यक्ति ने की होगी, जो नागमेंद्र लांबा से बिलों के भुगतान को लेकर परेशान था.

अब तक दोनों भाई करीब 27 साल की नौकरी कर चुके हैं. इस दौरान उन्होंने जितना भी वेतन और भत्ता लिया, उसकी भी जांच की जा रही है. आगे की जांच और कानूनी कार्रवाई के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि दोनों भाइयों ने फर्जी तरीके से नौकरी पाई थी या नहीं. इस तरह एक ही परिवार के दो भाइयों ने अपने पिता की मौत के बाद मृतक आश्रित कोटे से पुलिस में नौकरी हासिल कर ली. जबकि नियमों के अनुसार, मृतक आश्रित कोटे में परिवार के सिर्फ एक सदस्य को नौकरी मिल सकती है. नौकरी पाने वाले सदस्य के पक्ष में परिवार के अन्य सदस्यों की नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट भी जरूरी होती है.

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