
अग्रिबाण एक्सपोज (पार्ट-2)… योजना 171 पर प्राधिकरण में काबिज रहे राजनीतिक बोर्ड ने जो निर्णय कभी नहीं किया वो अफसरों के बोर्ड ने अब कर डाला, जबकि प्रशासन और सहकारिता की तमाम जांचों में ढेरों भू-घोटाले होते रहे हैं उजागर
इंदौर। प्राधिकरण (IDA) में काबिज रहे राजनीतिक बोर्ड (Political boards) ने भी योजना 171 की दागी गृह निर्माण संस्थाओं (tainted housing societies) की जमीनें छोडऩे की हिम्मत नहीं दिखाई, तो आश्चर्यजनक रूप से अफसरों के बोर्ड ने ये फैसला ले लिया। भूखंड पीडि़तों की आड़ में भूमाफियाओं (land mafias) के चंगुल में फंसी घोटालेबाज और कागजी संस्थाओं की जमीनें भी छूटेंगी, जबकि अविवादित और सरकारी जमीनों को योजना में शामिल रखने का अजीबोगरीब फैसला किया जा रहा है। विगत वर्षों में योजना में शामिल 13 गृह निर्माण संस्थाओं की जो जांच पुलिस, प्रशासन, सहकारिता के साथ प्राधिकरण ने खुद भी की और उसमें तमाम अनियमितताएं मिलीं, जो रिकॉर्ड पर मौजूद भी है। इतना ही नहीं, पूर्व में इसी योजना को लेकर प्राधिकरण बोर्ड ने जो संकल्प पारित किए उनका भी अध्ययन अभी 8 अगस्त को आयोजित हुई बोर्ड बैठक में नहीं किया और संस्थाओं की लगभग 185 एकड़ विवादित जमीनों को छोडऩे का निर्णय कर डाला, जिस पर भूखंड पीडि़तों ने खुद असहमति जताई है, क्योंकि शासन से मोडिफिकेशन की मंजूरी नहीं मिलेगी।
अग्निबाण की हमेशा यह मंशा रही कि वास्तविक भूखंड पीडि़तों को न्याय मिले और इसी के चलते चार साल पहले शासन ने जो ऑपरेशन भूमाफिया शुरू किया था उसमें प्रशासन ने शिविर लगाकर पीडि़तों को कब्जे भी दिलवाए और यह मांग भी की जाती रही कि इन भूखंड पीडि़तों को व्यक्तिगत स्तर पर एनओसी मिले, ताकि ये अपने आशियाने निर्मित कर सकें। वहीं उन कागजी और बोगस संस्थाओं के चंगुल में फंसी जमीनों को सरकारी भी घोषित किया जाए जिसकी शुरुआत प्रशासन ने त्रिशला गृह निर्माण के साथ शुरू की और इसकी जमीन को सरकारी घोषित किया गया और अभी इसीलिए प्राधिकरण ने इस संस्था की जमीन को बाहर रखा और उससे राशि भी जमा नहीं करवाई, लेकिन जो 12 अन्य संस्थाएं हैं उनमें भी आधा दर्जन से अधिक ऐसी हैं जिनमें देवी अहिल्या, न्याय नगर, मजदूर पंचायत की जमीनों को हस्तांतरित कर नई संस्थाएं बनाई गई, जिन पर भूमाफियाओं के कब्जे रहे और ये जमीनें रसूखदारों को बेच भी दी गई। अभी प्राधिकरण बोर्ड ने 6 हजार भूखंड पीडि़तों को राहत देने के लिए संस्थाओं की जमीनें छोडऩे का निर्णय लिया। मगर ये आश्चर्यजनक बात है कि आज तक प्रशासन यही तय करवा नहीं पाया कि ये 6 हजार भूखंड पीडि़त आखिर हैं कौन? इन तमाम संस्थाओं ने आज तक ना तो वरीयता प्राथमिकता सूची तैयार की और ना ही ऑडिट करवाए। मगर पीडि़तों की आड़ में हजारों करोड़ की जमीनें भूमाफियाओं के हवाले की जा रही है। अब देखना यह है कि बोर्ड बैठक के बाद प्राधिकरण किस तरह का संकल्प पारित करता है। यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले कई वर्षों से योजना में शामिल संस्थाओं की जमीनों को मुक्त करने की कवायदें चलती रही और इस दौरान राजनीतिक बोर्ड भी प्राधिकरण में काबिज रहा। मगर किसी भी राजनीतिक अध्यक्ष या बोर्ड में शामिल पदाधिकारियों और अफसरों की हिम्मत नहीं हुई कि इन जमीनों को मुक्त कर दिया जाए, क्योंकि ऐसा करने पर तुरंत ही ईओडब्ल्यू या लोकायुक्त जांच भी शुरू हो जाती, क्योंकि दस्तावेजों में ही इन संस्थाओं की जमीनों पर कई घोटाले साबित हो चुके हैं, जिनके आधार पर खुद प्रशासन ने भूमाफियाओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई और इन संस्थाओं की जमीनों की जो अवैध बिक्रियां हुईं उनकी रजिस्ट्रियां निरस्त करवाने के साथ-साथ उन्हें सरकारी घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की गई। देवी अहिल्या, न्याय नगर, मजदूर पंचायत जैसी बड़ी संस्थाओं की जमीनों की तो अफरा-तफरी भूमाफियाओं ने की ही, वहीं सूर्या गृह निर्माण, सन्नी को-ऑपरेटिव, त्रिशला, लक्ष्मण गृह निर्माण, श्रीकृपा सहित अन्य संस्थाओं की जमीनें भी इसी तरह हड़प ली गई और पूर्व में भी प्राधिकरण ने अपने संकल्पों में यह स्पष्ट कहा कि इन विवादित जमीनों को छोड़ा नहीं जा सकता और यहां तक कि कलेक्टर ने इन सभी 13 संस्थाओं के सदस्यों की जांच कराने और ऑडिट सहित अन्य प्रक्रियाओं को भी पूरी करने के निर्देश सहकारिता विभाग को दिए। यहां तक कि प्राधिकरण ने पचासों बार पत्र लिखकर सहकारिता विभाग से इन संस्थाओं की जानकारी मांगी, जो कभी भी उपलब्ध नहीं करवाई गई। अब अचानक प्राधिकरण बोर्ड ने इन संस्थाओं की जमीनों को मुक्त करने का अजीबोगरीब फैसला ले लिया और दूसरी तरफ जो अविवादित निजी जमीनें हैं उनके साथ सरकारी जमीन को शामिल कर नई योजना घोषित करने की शासन से अनुमति मांगी है। प्राधिकरण एक तरफ 78 हेक्टेयर संस्थाओं की जमीनें छोड़ रहा है तो दूसरी तरफ इससे कम लगभग 75 हेक्टेयर पर मोडिफाइड योजना लागू करेगा। हालांकि शासन से अनुमति मिलना संभव नहीं है और भूखंड पीडि़तों की ओर से भी जो नया पत्र प्राधिकरण को लिखा गया है उसमें भी इस बात पर आपत्ति ली गई है कि नियम विरुद्ध बोर्ड ने निर्णय लिया, उससे पीडि़तों को कोई लाभ नहीं मिलेगा।
185 एकड़ जमीन इन 12 संस्थाओं की छोड़ेंगे
योजना 171, जो कि पहले 132 के नाम से जाती थी उसमें कुल 152 हेक्टेयर जमीन शामिल है, जिसमें से 32 हेक्टेयर सरकारी और 46 हेक्टेयर जमीन निजी बताई गई है। दूसरी तरफ लगभग 78 हेक्टेयर संस्थाओं की जमीनें हैं, जिन्हें छोडऩे का निर्णय बोर्ड बैठक में लिया गया। लगभग 185 एकड़ जमीनें इन 12 गृह निर्माण संस्थाओं की हैं। उनमें देवी अहिल्या श्रमिक कामगार, न्याय विभाग कर्मचारी गृह निर्माण, इंदौर विकास गृह निर्माण, मजदूर पंचायत गृह निर्माण, लक्ष्मण गृह निर्माण, सूर्या गृह निर्माण, मारुति गृह निर्माण, सन्नी को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी, रजत गृह निर्माण, संजना गृह निर्माण, श्रीकृपा गृह निर्माण और अप्सरा गृह निर्माण शामिल है। जबकि 13वीं गृह निर्माण संस्था त्रिशला को फिलहाल इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया है।
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