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अमेरिकी सांसदों ने भारत की दिग्गज कंपनी TCS को लिखा पत्र, H-1B वीजा भर्ती और छंटनी पर उठाए सवाल

October 04, 2025

वाशिंगटन। अमेरिकी संसद (US Parliament) की न्याय न्यायपालिका समिति के अध्यक्ष चार्ल्स ई. ग्रास्ले (Charles E. Grassley) और रैंकिंग सदस्य रिचर्ड जे. डर्बिन (Richard J. Durbin) ने भारतीय आईटी कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) (Indian IT company Tata Consultancy Services – TCS) के सीईओ के. कृतिवासन को 24 सितंबर को एक खुला पत्र लिखा है। इसमें एच-1बी वीजा कार्यक्रम के दुरुपयोग और अमेरिकी कर्मचारियों की छंटनी के बीच विदेशी श्रमिकों की भर्ती पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। यह पत्र न केवल टीसीएस बल्कि अमेजॉन, ऐपल, गूगल, मेटा, माइक्रोसॉफ्ट, कॉग्निजेंट, डेलॉइट, जेपीमॉर्गन चेस और वॉलमार्ट जैसी नौ अन्य प्रमुख कंपनियों के सीईओ को भी भेजा गया है। सीनेटरों ने इन कंपनियों से 10 अक्टूबर तक विस्तृत जानकारी मांगी है, जिसमें वेतन समानता, भर्ती प्रक्रिया और अमेरिकी कर्मचारियों के रिप्लेसमेंट जैसे मुद्दे शामिल हैं।


पत्र में दोनों सीनेटरों ने TCS के सीईओ कृति कृथिवासन से स्पष्टीकरण मांगा है। पत्र में कहा गया है कि टेक इंडस्ट्री में “चिंताजनक रोजगार प्रवृत्तियां” देखने को मिल रही हैं। इसमें वॉल स्ट्रीट जर्नल की उस रिपोर्ट का भी ज़िक्र किया गया है जिसमें बताया गया था कि तकनीकी क्षेत्र में बेरोजगारी की दर अमेरिकी औसत बेरोजगारी दर से कहीं अधिक है।

12,000 कर्मचारियों की छंटनी और 5,505 H-1B मंजूरी
पत्र में कहा गया है कि TCS ने हाल ही में वैश्विक स्तर पर 12,000 कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा की है। सिर्फ अमेरिका में भी कर्मचारियों की छंटनी हुई है, जिनमें जैक्सनविले कार्यालय से दर्जनों लोगों को निकाला गया। इसके बावजूद, कंपनी ने वित्तीय वर्ष 2025 में 5,505 H-1B वीजा की मंजूरी हासिल की, जिससे वह अमेरिका में दूसरे नंबर की सबसे बड़ी H-1B वीजा उपयोगकर्ता कंपनी बन गई।

सीनेटरों ने कहा है कि “जब इतनी बड़ी संख्या में अमेरिकी तकनीकी कर्मचारी बेरोजगार हैं, तब यह मानना मुश्किल है कि TCS को योग्य अमेरिकी कर्मचारी नहीं मिल पा रहे।” उन्होंने यह भी याद दिलाया कि वर्तमान में TCS पर समान रोजगार अवसर आयोग (EEOC) की जांच चल रही है, जिसमें आरोप है कि कंपनी ने उम्रदराज़ अमेरिकी कर्मचारियों को हटाकर दक्षिण एशियाई H-1B कर्मचारियों को नौकरी दी।

पूछे गए कई सवाल
सीनेटर ग्रासले और डर्बिन ने TCS से कई विस्तृत सवालों के जवाब मांगे हैं और कंपनी से कहा है कि वह 10 अक्टूबर 2025 तक इसका उत्तर दे। इनमें शामिल कुछ प्रमुख प्रश्न हैं:
– TCS विदेशी कर्मचारियों को क्यों भर्ती कर रही है, जबकि अमेरिकी टेक कर्मचारी बेरोजगार हैं?
– क्या कंपनी पहले अमेरिकी उम्मीदवारों को मौका देती है और उसके बाद ही H-1B वीजा आवेदन करती है?
– क्या H-1B कर्मचारियों को अमेरिकी कर्मचारियों के समान वेतन और लाभ दिए जाते हैं?
– कितने H-1B कर्मचारियों को लेवल-1 वेतन पर भर्ती किया गया है और वे अभी तक उसी स्तर पर काम कर रहे हैं?
– क्या TCS अपने H-1B कर्मचारियों को सीधे रोजगार देती है या उन्हें किसी ठेकेदार/स्टाफिंग फर्म के ज़रिए नियुक्त करती है?
– 2025 में मिली H-1B मंजूरी में से कितने कर्मचारी अन्य कंपनियों में आउटसोर्स किए गए और कितनों का वेतन किसी तीसरी फर्म ने दिया?

अमेरिकी राजनीति में बढ़ा दबाव
इस पत्र से स्पष्ट है कि अमेरिकी राजनीति में H-1B वीजा का मुद्दा एक बार फिर गरम हो गया है। अमेरिकी सीनेटरों का कहना है कि कंपनियों को पहले देश के भीतर मौजूद प्रतिभा का उपयोग करना चाहिए और विदेशी कर्मचारियों को प्राथमिकता नहीं देनी चाहिए। फिलहाल TCS की ओर से इस पत्र पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।

एच-1बी वीजा कार्यक्रम उच्च कुशल विदेशी श्रमिकों को अमेरिका में तीन से छह वर्ष तक काम करने की अनुमति देता है। यह लंबे समय से विवादों में रहा है। सीनेटर ग्रास्ले और डर्बिन जैसे सांसद इसे अमेरिकी श्रमिकों के हितों के खिलाफ मानते हैं, जबकि आईटी कंपनियां इसे वैश्विक प्रतिभा पूल तक पहुंच का माध्यम बताती हैं। हाल ही में अमेरिकी प्रशासन द्वारा एच-1बी के लिए नई फीस (प्रति नई याचिका 1,00,000 डॉलर) लागू करने के बाद यह बहस और तेज हो गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, 5,000 नई फाइलिंग के मामले में यह फीस 500 मिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है, जो कंपनियों को ऑफशोर डिलीवरी बढ़ाने या स्थानीय भर्ती पर जोर देने के लिए मजबूर कर सकती है।

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