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‘वंदे मातरम’ केवल गीत नहीं, बल्कि राष्ट्रवादी चेतना की नींव है – भाजपा सांसद कंगना रनौत

December 08, 2025


नई दिल्ली । भाजपा सांसद कंगना रनौत (BJP MP Kangana Ranaut) ने कहा कि ‘वंदे मातरम’ केवल गीत नहीं (‘Vande Mataram’ is not just Song), बल्कि राष्ट्रवादी चेतना की नींव है (But the foundation of Nationalist Consciousness) ।


भाजपा सांसद कंगना रनौत ने संसद में ‘वंदे मातरम’ पर चल रही चर्चा को लेकर अपनी भावनाएं साझा कीं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस गीत के पूरे इतिहास और उसकी महत्ता को संक्षेप में बताया कि कैसे आजादी की लड़ाई के दौरान, इसने विरोध की बुझती हुई लौ को फिर से जलाया और एक ऐसी चिंगारी जलाई, जिसने पूरे ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी।

कंगना ने कहा, ”एक कलाकार के तौर पर मुझे गर्व है कि संसद में इस तरह के एक गीत, एक कविता, एक कलाकृति पर दस घंटे तक चर्चा हो रही है। यह गीत आज राष्ट्रवादी चेतना की नींव के रूप में खड़ा है और इसकी यात्रा सदियों तक फैली हुई है।” कंगना ने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने हमेशा कला और सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा दिया है।

कंगना ने अपने बयान में कांग्रेस पर भी तीखा हमला किया। उन्होंने कहा कि 2014 में जब भारत ने अमृत काल की शुरुआत की, उस समय अर्थव्यवस्था प्रधानमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। कांग्रेस ने महिलाओं के आत्मसम्मान को क्षति पहुंचाई और देश के विकास को पीछे धकेल दिया था।” उन्होंने कहा, ”मेरा खुद का व्यक्तिगत अनुभव है, कांग्रेस ने मेरे काम और मेरे पहनावे तक पर सवाल उठाए। जहां-जहां भाजपा की सरकार होती है, उस क्षेत्र की महिलाओं पर भी उंगली उठाई गई। कांग्रेस की सोच हमेशा से महिला विरोधी रही है। उन्होंने मध्य प्रदेश की महिलाओं को लेकर भी अपमानजनक टिप्पणी की थी।” कंगना ने कहा कि ‘वंदे मातरम’ में मां दुर्गा का वर्णन है, लेकिन कांग्रेस ने इस पर भी आपत्ति जताई। यह साफ दिखाता है कि महिला विरोधी सोच कांग्रेस के डीएनए में है। इसके विपरीत, प्रधानमंत्री मोदी ने देश की महिलाओं के गौरव और अस्तित्व को ऊपर उठाया है।

‘वंदे मातरम’ को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1870 के दशक में लिखा था और यह उनके उपन्यास ‘आनंदमठ’ में प्रकाशित हुआ। इसके पहले दो छंद संस्कृत में देवी दुर्गा की शक्ति और मातृभूमि की महिमा का वर्णन करते हैं, जबकि बाकी पंक्तियों में मातृभूमि की सुंदरता और भावनाओं को व्यक्त किया गया है। रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे संगीतबद्ध किया और 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र में पहली बार सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत किया। इसके बाद यह गीत स्वतंत्रता संग्राम और स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक बन गया।

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