
(12 जनवरी युवा दिवस विशेष)
अनूप पौराणिक
स्वामी विवेकानंद कहते थे युवा वो होता है ”जो बिना अतीत की चिंता किए अपने लक्ष्यों की दिशा में काम करता है।भारत में हर साल 12 जनवरी को विवेकांनद जयंती पर ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ मनाया जाता है। विवेकानंद मानते थे की सिर्फ ऊर्जावान युवा ही किसी देश का भविष्य बदल सकते हैं।
उन्होंने कहा है”आप सभी युवा जो आज काम करते हैं, वही देश का भविष्य तय करता है। इसलिए आप जो आज संकल्प लेंगे वही सिद्ध होकर देश को सिद्ध करेगा।” वर्तमान में भारत की कुल आबादी में 18 प्रतिशत युवा हैं। जनसंख्या के लिहाज से देश में करीब 25 करोड़ युवा आबादी है। चीन की आबादी भारत से 6 करोड़ ज्यादा है, लेकिन भारत में युवा चीन से लगभग 8 करोड़ ज्यादा हैं।
अगर दुनिया की बात करें तो दुनिया की कुल आबादी का 16 प्रतिशत हिस्सा युवाओं का है।वर्ष 2020 तक भारत की आबादी का 64 प्रतिशत हिस्सा कार्यक्षम जनसंख्या की श्रेणी में आ गया है, जिसकी औसत आयु 29 वर्ष है। यह दुनिया की कुल कार्यक्षम आबादी का पांचवा हिस्सा है। आज भारत का हर तीसरा व्यक्ति युवा है। पिछले दस सालों के भीतर ही भारत की युवा आबादी 35.3 करोड़ से बढ़कर 43.0 करोड़ हो गई है। बहरहाल, अगर हमने जल्द ही अपनी युवा आबादी को कार्यकुशल बनाने के सही प्रयास किए तो 21 वी सदी का युवा भारत पूरी दुनिया के अग्रणी देशों में अपना स्थान बनाएगा।
*युवा दिवस मनाने का मतलब –
इसका सबसे पहला लाभ तो यही है कि संसार भर में एक वातावरण बन रहा है युवापीढ़ी को अधिक सक्षम और तेजस्वी बनाने के लिए। भारत में नरेन्द्र मोदी की इस दृष्टि से सोच एवं सक्रियता युवकों को नये आयाम दे रही है, जो समूची दुनिया के लिये भी प्रेरणादायी है। विशेषतः राजनीति में युवकों की सकारात्मक एवं सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करने की जरूरत को महसूस करते हुए कदम उठाये जायें।
युवकों के लिये भी जरूरी है कि वे जोश के साथ होश कायम रखे। वे अगर ऐसा कर सके तो भविष्य उनके हाथों संवर सकता है। इसीलिये सुकरात को भी नवयुवकों पर पूरा भरोसा था। वे जानते थे कि नवयुवकों का दिमाग उपजाऊ जमीन की तरह होता है। उन्नत विचारों का जो बीज बो दें तो वही उग आता है। एथेंस के शासकों को सुकरात का इसलिए भय था कि वह नवयुवकों के दिमाग में अच्छे विचारों के बीज बोने की क्षमता रखता था।
*उर्वर दिमागों की कमी नहीं है-
आज की युवा पीढ़ी में उर्वर दिमागों की कमी नहीं है मगर उनके दिलो दिमाग में विचारों के बीज पल्लवित कराने वाले स्वामी विवेकानन्द और सुकरात जैसे लोग दिनोंदिन घटते जा रहे हैं। सही शब्दों में कहें तो कार्यकुशलता और सही मार्गदर्शन की कमी है इसलिए बेरोज़गारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जहां सरकार बेरोज़गारी तो दूर करने के भरपूर प्रयासों में लगी है मगर सही कार्यकुशलता की कमी के कारण युवा बेरोज़गार ही रह जाते हैं।
उदाहरण बिहार में ऑफिस अटेंडेंट की कुछ पोस्ट निकलती है उसके लिए लाखों आवेदन पहुंच जाते हैं। उन आवेदन करने वालों में ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट भी शामिल है जबकि योग्यता सिर्फ मेट्रिक मांगी गयी थी। कारण वही है की सब सरकारी नौकरी चाहते हैं कोई प्रयोग नहीं करना चाहता। युवा नया नहीं चुनना चाहता, वो असफलता से डरा हुआ है रिस्क नहीं लेना चाहता। जबकि विवेकानंद के भारत का युवा ऐसा नहीं है उनके सपनों के भारत का युवा प्रयोगवादी है बिल्कुल विवेकानंद की तरह।
*जरुरी है संकल्पों की आत्मनिर्भरता –
विवेकानंद अपने प्रतिरूप के रूप में भारत के युवा को देखते थे। मगर असल में ये हो नहीं पा रहा। यहाँ भी हाल हमारे देश की खेती की तरह ही हैं जहां लोग आज भी पारंपरिक तरीके से ही खेती करना चाहते है और पारंपरिक फसले जैसे गेहूं, चावल ही बोना चाहते हैं नया नहीं करना चाहते नया नहीं सीखना चाहते। ठीक वैसा ही कुछ करियर के क्षेत्र में भी है, अधिकतर युवा पुराने रास्ते पर ही चलना चाहते हैं। हेनरी मिलर ने एक बार कहा था- ‘‘मैं जमीन से उगने वाले हर तिनके को नमन करता हूं। इसी प्रकार मुझे हर नवयुवक में वट वृक्ष बनने की क्षमता नजर आती है।’’
महादेवी वर्मा ने भी कहा है ‘‘बलवान राष्ट्र वही होता है जिसकी तरुणाई सबल होती है। यहां सबलता तो है मगर कुशलता और प्रयोगवादिता की कमी है। सरकारें अपने स्तर युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए काम करती है। लेकिन उसकी सफलता युवाओं की प्रयोगवादी सोच पर ही निर्भर करती है। सरकारें अधिक ध्यान दे और युवाओं की कार्यकुशलता और प्रयोगवादिता को प्रोत्साहित करे तो इस अभिनव क्रांति के बल पर युवापीढ़ी सोच के उस आसमान तक पहुंच पाएगीं, जो नए ख्वाबों की रचना करने और उन्हें पूरा करने के लिए सीढ़ी का काम करेगी। भावों एवं संकल्पों की यह आत्मनिर्भरता युवाओं के मन के जीवन का निर्माण करने में सक्षम है।
आज 21वीं सदी में जीवन में मौजूद सभी चुनौतियों का समाधान स्वामी विवेकानन्द के दर्शन में है ,बस जरुरत है उनके सिद्धांतों या उनकी विचारधारा को सुनियोजित तरीके से आत्मसात करने की। उनका समस्त दर्शन न सिर्फ इस सदी में बल्कि युग-युगान्तर तक प्रासंगिक और प्रेरणादायी साबित होता रहेगा।
(लेखक पत्रकार है) हिन्दुस्थान समाचार
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