
सनातन धर्म (Sanatan Dharma) में पितृपक्ष (Paternal side) का अंतिम दिन यानी अश्विन माह की अमावस्या तिथि (Amavasya Date) बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसे सर्वपितृ अमावस्या (Sarvapitra Amavasya) भी कहते हैं। इस दिन उन सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है, जिनका श्राद्ध किसी कारणवश नहीं हो पाया हो। इस वर्ष सर्वपितृ अमावस्या 21 सितंबर को पड़ रही है। लोगों के मन में दुविधा है कि क्या इस दिन सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है?
सूर्य ग्रहण का नहीं होगा असर
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य राधे गोविंद गुरुजी ने बताया कि इस साल सर्वपितृ अमावस्या के दिन कोई सूर्य ग्रहण नहीं लगने जा रहा है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अगर कोई सूर्य ग्रहण लगता भी है, तो उसका भारत में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
श्री राधे गोविंद गुरुजी ने कहा कि जिन लोगों के पितरों का निधन अकाल मृत्यु से हुआ हो या किसी कारणवश जो तर्पण नहीं कर पाए हों, वे इस दिन पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर सकते हैं। ऐसा करने से पितर बहुत प्रसन्न होते हैं और पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है।
सर्वपितृ अमावस्या का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य के अनुसार ऋषिकेश पंचांग के मुताबिक पितृ अमावस्या की शुरुआत 21 सितंबर की रात 12 बजकर 15 मिनट से हो रही है, और इसका समापन 22 सितंबर की रात 1 बजकर 22 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार 21 सितंबर को ही अमावस्या मनाई जाएगी।
श्राद्ध करने का सबसे शुभ मुहूर्त दोपहर के समय होता है।
श्राद्ध का शुभ मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 27 मिनट से 3 बजकर 33 मिनट तक।
रोहिणी मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से 1 बजकर 44 मिनट तक।
पितृ अमावस्या का महत्व
पितृ अमावस्या का दिन पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए सबसे शुभ माना जाता है। इस दिन पितरों के नाम से तर्पण और पिंडदान करने से साल भर उन पर पितरों की कृपा बनी रहती है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा करना भी बहुत शुभ माना जाता है. क्योंकि ऐसी मान्यता है कि पीपल पर पितरों का वास होता है।
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