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ग्वालियर हाईकोर्ट ने क्यों कहा- सभी दिव्यांगता प्रमाणपत्रों की जांच जरूरी, जानें पूरा मामला

ग्वालियर: मध्य प्रदेश में दिव्यांग का प्रमाण पत्र के जरिए नौकरी हासिल करने के मामले हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. ग्वालियर हाईकोर्ट ने दिव्यांगता प्रमाण पत्रों की जांच के आदेश को चुनौती देने की याचिका को खारिज कर दिया है. दिव्यांग कोटे से विदिशा में चयनित ग्वालियर के शिक्षक धर्मेंद्र रावत ने याचिका दायर की थी, जिसमें तर्क दिया था कि उनको ग्वालियर में मेडिकल अथॉरिटी ने दिव्यांग का प्रमाण पत्र जारी किया है.

लिहाजा उनके प्रमाणपत्र की दोबारा जांच का नियम नहीं है. हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि वास्तविक दिव्यांगों की पहचान करने के लिए MP के सभी चयनित दिव्यांग अभ्यर्तियों के प्रमाण पत्रों की जांच कराना जरूरी है. साथ ही हाईकोर्ट ने लोक शिक्षण आयुक्त से कहा कि अगर जांच जरूरत पड़े तो जांच में पुलिस का भी सहयोग ले.

ग्वालियर हाईकोर्ट ने दिव्यांगता प्रमाण पत्र की जांच के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. लोक शिक्षण संचालनालय के आयुक्त अनुभव श्रीवास्तव ने 13 जून 2023 को एक आदेश जारी किया था. दरअसल ये आदेश में दिव्यांग कोटे से नोकरी हासिल करने वाले अभ्यर्तियों के प्रमाण पत्रों की दोबारा जांच कराने का आदेश था. इस आदेश के खिलाफ ग्वालियर निवासी शिक्षक धर्मेंद्र रावत ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.


हाईकोर्ट ने कहा- जांच में जरूरत पड़े तो पुलिस का सहयोग लें
धर्मेंद्र ने कोर्ट को बताया कि उनका दिव्यांग का प्रमाण पत्र के आधार पर चयन विदिशा जिले के लिए हुआ है, जबकि दिव्यांगता प्रमाण पत्र में फर्जीवाड़ा मुरैना जिले में पाया गया है. शिक्षक ने दलील दी थी कि उनका दिव्यांगता प्रमाण पत्र 16 दिसंबर 2019 को ग्वालियर की मेडिकल अथॉरिटी ने जारी किया था. ऐसे में एक बार नियुक्ति मिलने के बाद कानून में दिव्यांग का प्रमाण पत्र को दोबारा जांच में या फिर से मोदी मेडिकल बोर्ड के सामने टेस्ट देने का प्रावधान ही नहीं है.

लिहाजा लोक शिक्षण संचालनालय के आयुक्त का दिव्यांगता प्रमाणपत्र की जांच का आदेश नियम विरुद्ध है. शिक्षक धर्मेंद्र रावत की याचिका के खिलाफ अतिरिक्त महाधिवक्ता विवेक खेड़कर ने कोर्ट को बताया कि मुरैना जिले में 75 लोगों के खिलाफ फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र मामले में एफआईआर दर्ज कराई गई है. ग्वालियर अंचल से जारी अन्य दिव्यांगता प्रमाण पत्र भी संदेह के दायरे में है.

लिहाजा लोक शिक्षण संचालनालय का प्रमाणपत्रों की जांच कराने का आदेश जायज है. सभी दलीलों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि लोक शिक्षण संचनालय आयुक्त का आदेश न्यायहित में है. वास्तविक रूप से दिव्यांग की पहचान के लिए प्रमाणपत्रों की जांच कराना जरूरी. पूरे MP में दिव्यांग का प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी पाने वाले सभी अभ्यर्थियों की जांच जरूरी है. साथी हाईकोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि इसकी जांच निष्पक्षता के साथ होना चाहिए .अगर लोक शिक्षण विभाग को जरूरत पड़े तो पुलिस की भी मदद लें.

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