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पति की नौकरी मिलते ही पत्नी ने सास-ससुर को मारी लात, अब देना होगा 20,000 रुपये महीना

November 12, 2025

डेस्क: राजस्थान (Rajasthan) उच्च न्यायालय (High Court) ने एक बेहद मार्मिक और महत्वपूर्ण मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने एक विधवा बहू (Widowed Daughter-in-law’s) को मिली सरकारी नौकरी (Goverment Job) के वेतन (Salary) से हर महीने 20,000 रुपये काटकर उसके ससुर (Father-in-law) को देने का आदेश दिया है. यह कड़ा कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि महिला ने अपने ससुर की बदौलत ही यह नौकरी पाई थी, लेकिन नौकरी मिलते ही उसने न सिर्फ अपने बुजुर्ग ससुर-सास को बेसहारा छोड़ दिया, बल्कि खुद दूसरी शादी भी कर ली. यह पूरा मामला 2015 का है. याचिकाकर्ता श्री भगवान के बेटे, स्वर्गीय राजेश कुमार, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में तकनीकी सहायक (Technical Assistant) की नौकरी करते थे. 15 सितंबर 2015 को सेवा के दौरान ही उनका निधन हो गया. परिवार पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा.

विभाग ने 1996 के नियमों के तहत मृतक कर्मचारी के पिता श्री भगवान को अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन करने को कहा. रिकॉर्ड्स से यह साफ है कि नौकरी का पहला हक और प्रस्ताव श्री भगवान को ही मिला था. लेकिन उन्होंने दरियादिली दिखाते हुए और शायद यह सोचकर कि बहू परिवार की देखभाल करेगी, खुद नियुक्ति न लेकर अपनी विधवा बहू, श्रीमती शशि कुमारी के नाम की सिफारिश कर दी. अधिकारियों की जांच रिपोर्ट में यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई कि श्री भगवान और उनकी पत्नी की आजीविका का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं था और वे पूरी तरह से अपने बेटे पर ही निर्भर थे. बेटे की मौत के बाद दो टाइम की रोटी भी सही से नसीब नहीं हो पा रही थी.


रिपोर्ट के मुताबिक, पति की मौत के महज 18 दिनों के भीतर ही बहू शशि कुमारी ने अपना ससुराल छोड़ दिया और अपने माता-पिता के साथ रहने चली गई. उसने अपने ससुर-सास से सारे रिश्ते तोड़ लिए. इतना ही नहीं, उसे पति के प्रोविडेंट फंड और मुआवजे की लगभग 70% राशि भी मिली. नौकरी और पैसा हाथ आने के बाद, उसने अपने ससुर-सास को पूरी तरह से त्याग दिया और बाद में किसी और से शादी कर ली. जब बुजुर्ग ससुर के पास जीवनयापन का कोई सहारा नहीं बचा, तब उन्होंने न्याय के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. बहू ने कोर्ट में तर्क दिया कि उसने शुरू में उनका समर्थन किया था, लेकिन बाद में उसे उत्पीड़न (harassment) का सामना करना पड़ा, जिसने उसे घर छोड़ने के लिए मजबूर किया. उसने यह भी कहा कि पुनर्विवाह करने के बाद उसकी अपने पूर्व ससुर-सास के प्रति कोई कानूनी बाध्यता नहीं बची है.

राजस्थान हाई कोर्ट ने इस मामले को इंसानी दर्द और पीड़ा का एक बेहद मार्मिक उदाहरण बताया. अदालत ने कहा कि इस केस में बहू के व्यवहार ने अनुकंपा नियुक्ति जैसी व्यवस्था के असली और नेक उद्देश्य को ही बेकार कर दिया है. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि परिवार का मतलब सिर्फ मृतक की पत्नी नहीं होता, बल्कि इसमें वे सब लोग आते हैं जो उस व्यक्ति पर निर्भर थे, जैसे माता-पिता, पत्नी और बच्चे. अदालत ने यह भी कहा कि बहू ने इस नौकरी का लाभ एक शपथ पत्र के आधार पर लिया था, इसलिए अब वह उस वादे से मुकर नहीं सकती. अगर उसे ऐसा करने दिया जाए तो यह खुद अनुकंपा योजना के साथ धोखा माना जाएगा.

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