
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) हाईकोर्ट (High Court) के एक फैसले पर नाराजगी जताई है जिसमें हाईकोर्ट ने एक दोषी (Guilty) को जमानत (Bail) देने से यह कहकर मना कर दिया कि जमानत तभी दी जा सकती है जब दोषी अपनी आधी सजा काट चुका हो। सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुयान शामिल थे, ने इस फैसले को ‘नए कानून की खोज’ बताते हुए कहा कि हाईकोर्ट का यह निर्णय कानून में कहीं नहीं लिखा है और यह पूरी तरह गलत है।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ऐसे व्यक्ति की जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसकी जेब से रिश्वत के पैसे (बरामद हुए थे। हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक आरोपी अपनी आधी सजा नहीं काट लेता, तब तक जमानत नहीं दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम हैरान हैं कि हाईकोर्ट ने कानून का ऐसा नया सिद्धांत बना दिया, जिसका कोई आधार नहीं है।’ सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि जब ऊपरी अदालतों में अपीलों की संख्या बहुत ज्यादा हो और जल्दी सुनवाई की कोई उम्मीद न हो, तो ऐसे मामलों में दोषियों को जमानत मिलनी चाहिए। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को मौजूदा कानूनों के आधार पर फैसला करना चाहिए था। किसी को मजबूर नहीं किया जाना चाहिए कि वह सुप्रीम कोर्ट तक आए सिर्फ इसलिए कि निचली अदालत या हाईकोर्ट ने कानून का सही इस्तेमाल नहीं किया।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा था, आरोपी की जेब से रिश्वत के नोट मिले हैं और उसकी ओर से इसका कोई सही जवाब नहीं आया है। यह आरोपी की दूसरी जमानत याचिका थी, जो पहली याचिका खारिज होने के सिर्फ दो महीने बाद दायर की गई थी। इसलिए, आरोपी को जमानत की मांग दोबारा तभी करनी चाहिए जब वह अपनी आधी सजा काट चुका हो।
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा, जमानत से जुड़े कानून पहले से तय हैं और अदालतों को उन्हीं का पालन करना चाहिए। छोटे-मोटे मामलों में जमानत न देना, खासकर जब ट्रायल लंबा चलने वाला हो, न्याय के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई बार कह चुका है कि अगर अपील पर जल्दी सुनवाई संभव नहीं है, तो दोषियों को जमानत मिलनी चाहिए।
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