
मुंबई । एक लेखक, संगीतकार, वादक, एक्टर, डायरेक्टर और सामाजिक कार्यों के लिए हमेशा तत्पर रहने वाले (Purushottam Laxman Deshpande) गूगग डूडल (Google Doodle) की इस तस्वीर में हारमोनियम बजाते नजर आ रहे हैं। महाराष्ट्र के लाडले व्यक्तित्व में से एक पीएल देशपांडे का साहित्य अंग्रेजी और कन्नड़ समेत कई भाषाओं में मौजूद है।
पीएल देशपांडे पर गूगल डूडल बनाने वाले कुलावुर के अनुसार, उनका महाराष्ट्र के ‘मुंबई में जन्म और पालन-पोषण हुआ था । खासकर संगीत, लेखन, फ़िल्में, थिएटर, साहित्य आदि के क्षेत्र में वे अक्सर चर्ता में आते हैं। उनमें जीवन की हर छोटी-बड़ी बात को गहराई से देखने की क्षमता थी, और कोई भी अपने साहित्यिक कार्यों में इसे देख सकता है। एक बहुत लोकप्रिय मराठी गीत है जिसे हमने स्कूल में सुना था- ‘नाच रे मोरा’- मुझे बहुत बाद में पता चला कि कि गीत की रचना उन्होंने की थी।’
पीएल देशपांडे का जन्म 8 नवंबर 1919 को मुंबई में हुआ था। उनके परिवार का साहित्य से लगाव पुराना था। दूसरे शब्दों में कहें तो पीएल देशपांडे को साहित्य विरासत में मिला था। उनके दादा ने रवींद्रनाथ टैगोर की ‘गीतांजलि’ का मराठी में अनुवाद किया था। शुरुआत में पीएल देशपांडे का परिवार पहले मुंबई में ग्रांट रोड पर रहता था। फिर वे मुंबई के सारस्वत बाग कॉलोनी में आकर बस गए। यहां जीवन के शुरुआती आठ साल पीएल देशपांडे ने बिताए। इसके बाद उनका परिवार विले पार्ले में जाकर रहने लगा।
पीएल देशपांडे के लेखन ने विभिन्न प्रारूपों में- उपन्यासों और निबंधों से लेकर नाटकों और वन-मैन स्टेज शो तक थे। उन्होंने कई फिल्मों में अभिनय और निर्देशन भी किया। साल 2018 में नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया (NFAI) ने उनकी जयंती के 100 वर्ष के मौके पर उनके हिंदी और मराठी फिल्म के पोस्टरों की प्रदर्शनी का आयोजन किया।
प्रदर्शनी में उनके क्लासिक फिल्म ‘गुलाचा गणपति’ के लिए हाथ से लिखी गई स्क्रिप्ट की मूल प्रति भी शामिल थी, जो उस फिल्म के निर्माता रहे राजगुरु के परिवार के सदस्यों द्वारा 2015 में NFAI को सौपीं गई थी। पुरुषोत्तम देशपांडे बहुत हंसी-मजाक और व्यंग्य करने वाले शख्स थे। उनकी लेखन में भी यही प्रवाह नजर आता था। देशपांडे ने दूरदर्शन में भी काम किया और वह पहले शख्स थे जिन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू का इंटरव्यू लिया था। बाद में इंदिरा गांधी के दौर में इमरजेंसी लगाए जाने के वे मुखर आलोचक बने और जयप्रकाश नारायण की ‘मेरी जेल डायरी’ का मराठी में अनुवाद भी किया।
उन्हें 1966 में पद्मश्री, 1967 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1987 में कालिदास सम्मान, 1990 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा 1993 में पुण्य भूषण, 1996 में महाराष्ट्र भूषण अवॉर्ड से भी नवाजा गया। उनका निधन 12 जून 2000 को पुणे में हुआ।
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