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सभी दूखों का नाश करती है मां कुष्मांडा, जानें पूजा महत्‍व

February 06, 2021

आप यह तो जानतें ही हैं कि नवरात्रीं में माता दुर्गा के नो रूपों की पूजा की जाती है गुप्त नवरात्रि (gupt navratri) की चतुर्थी तिथि को मां कूष्मांडा (Kushmanda) की विधि विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं, जो भी व्‍यक्ति माता की पूजा अर्चन सच्‍ची श्रद्वा और भक्ति भाव से करतें हैं माता उस व्यक्ति के समस्त कष्टों, दुखों और विपदाओं का नाश कर देती है । और उसके जीवन में खुशहाली प्रदान करती है । आपको बता दें कि मां कूष्मांडा को गुड़हल का फूल या लाल फूल बहुत प्रिय है, इसलिए उनकी पूजा में गुड़हल का फूल अर्पित करें। इससे मां कूष्मांडा (Kushmanda) जल्द प्रसन्न होती हैं।

धार्मिक मान्यता है कि माता दुर्गा ने असुरों का नाश करने के लिए कूष्मांडा (Kushmanda) स्वरूप धारण किया था। आइए जानते हैं नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा (Kushmanda) की पूजा विधि, मंत्र, पूजा मुहूर्त, महत्व आदि के बारे में।

माता कूष्मांडा (Mata Kushmanda)
संस्कृति (culture) में कुम्हड़े को कूष्मांडा (Kushmanda) कहा जाता है, ऐसे देवा का नाम कूष्मांडा पड़ा। देवी को कुम्हड़े की बली दी जाती है। इनकी 8 भुजाएं हैं, इसलिए इनको अष्टभुजा भी कहा जाता है। ये अपनी भुजाओं में कमल, कमंडल, अमृत कलश, धनुष, बाण, चक्र और गदा धारण करती हैं। वहीं, एक भुजा में माला धारण करती हैं और सिंह की सवारी (Ride) करती हैं। मां कूष्मांडा (Kushmanda) की आरती और इन मंत्रों के जाप से मनोकामनाएं (Wishes) पूर्ण होंगी ।


मां कूष्मांडा की पूजा का महत्व (Importance of worshiping mother Kushmanda)
जो व्यक्ति अनेक दुखों, विपदाओं और कष्टों से गिरा रहता है, उसे मां कूष्मांडा की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। उनके आशीर्वाद से सभी कष्ट और दुख मिट जाते हैं।

पूजा विधि ( Method of worship)
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि ( Fourth date)को सुबह स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। इसके बाद मां कूष्मांडा का स्मरण (Remembrance) करके उनको धूप, गंध, अक्षत्, लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा, फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें। अब मां कूष्मांडा को हलवा और दही का भोग लगाएं। फिर उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण कर सकते हैं। पूजा के अंत में मां कूष्मांडा (Kushmanda) की आरती करें और अपनी मनोकामना उनसे व्यक्त कर दें।

प्रार्थना (Prayer)

सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

इस मंत्र का जाप होगा शुभ ( mantra)
सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्य्स्त्राहि नो देवि कूष्माण्डेति मनोस्तुते।।

ओम देवी कूष्माण्डायै नमः॥
मां कूष्मांडा बीज मंत्र

ऐं ह्री देव्यै नम:।

नोट- उपरोक्‍त दी गई जानकारी व सूचना सामान्‍य उद्देश्‍य के लिए दी गई है। हम इसकी सत्‍यता की जांच का दावा नही करतें हैं यह जानकारी विभिन्‍न माध्‍यमों जैसे ज्‍योतिषियों, धर्मग्रंथों, पंचाग आदि से ली गई है । इस उपयोग करने वाले की स्‍वयं की जिम्‍मेंदारी होगी ।

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