वट सावित्री व्रत या फिर वट पूर्णिमा (Vat Purnima ) का व्रत हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत खास माना जाता है। मान्यता है कि ये व्रत रखने से पति की आयु लंबी होती है और संकट दूर होते हैं। वहीं यह भी माना जाता है कि दांपत्य जीवन में चल रही परेशानियां भी इस व्रत को रखने से दूर हो जाती हैं । साल में दो बार वट सावित्री व्रत किया जाता है। एक बार ज्येष्ठ मास की अमावस्या(new moon) को, तो कुछ जगहों पर ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। जहां उत्तर भारत की कुछ जगहों जैसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उड़ीसा में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को रखा जाता है। वहीं महाराष्ट, गुजरात (Gujarat) और दक्षिण भारत में यह व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को रखा जाता है। इस साल ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा 24 जून, दिन गुरुवार को है।
वट पूर्णिमा शुभ मुहूर्त-
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि 24 जून 2021, दिन गुरुवार को सुबह 03 बजकर 32 मिनट से शुरू होगी। जबकि 25 जून 2021, दिन शुक्रवार को रात 12 बजकर 09 मिनट पर समाप्त होगी।
वट पूर्णिमा व्रत महत्व-
धार्मिक कथाओं के अनुसार, सावित्री अपने पति के प्राण यमराज (Yamraj) से बचाए थे। उसे पुत्र प्राप्ति और सास-ससुर का राज-काज वापस मिलने का आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ था। इसलिए सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु की कामना और संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।
वट पूर्णिमा व्रत पूजा विधि–
वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखे जाते हैं जिसे कपड़े के दो टुकड़ों से ढक दिया जाता है। एक दूसरी बांस की टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है। वट वृक्ष (Banyan Tree) पर महिलायें जल चढ़ा कर कुमकुम, अक्षत चढ़ाती हैं। फिर सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर उसके सात चक्कर लगाए जाते हैं और चने गुड़ का प्रसाद बांटा जाता है। इसके बाद महिलाएं कथा सुनती हैं।
नोट- उपरोक्त दी गई जानकारी व सूचना सामान्य उद्देश्य के लिए दी गई है। हम इसकी सत्यता की जांच का दावा नही करतें हैं यह जानकारी विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, धर्मग्रंथों, पंचाग आदि से ली गई है । इस उपयोग करने वाले की स्वयं की जिम्मेंदारी होगी ।
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