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स्कूल की लापरवाही से गंभीर बीमारी की शिकार हुई छात्रा, सुप्रीम कोर्ट ने दिया 88.73 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश

July 22, 2021

 

नई दिल्ली। स्कूल टूर (school tour) में उत्तर भारत (North India) में भ्रमण के दौरान शिक्षकों की लापरवाही के कारण मेनिंगो एन्सेफलाइटिस (दिमागी बुखार) का शिकार हुई बंगलूरू (Bangalore) की एक छात्रा को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 88.73 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। वर्ष 2006 में हुई इस घटना ने समय लड़की नौवीं कक्षा में पढ़ती थी। शीर्ष अदालत ने पाया कि इस बीमारी से पीड़ित होने की वजह से लड़की सामान्य जीवन जीने से महरूम हो गई और उसकी शादी की संभावनाएं भी खत्म हो गई।

दरअस्ल, राज्य उपभोक्ता आयोग ने स्कूल प्रबंधन से छात्रा को 88.73 लाख रुपए मुआवजा देने के लिए कहा गया। लेकिन स्कूल प्रबंधन की अपील पर राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने मुआवजे की राशि घटाकर 50 लाख रुपए कर दी। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के फैसले को पीड़ित पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के आदेश के खिलाफ कुम अक्षता द्वारा दायर इस अपील को स्वीकार कर लिया और राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा तय की गई मुआवजे की राशि (88.73 लाख) को बहाल कर दिया।


शीर्ष अदालत ने पाया कि राष्ट्रीय आयोग ने यह नहीं माना कि मुआवजे की रकम बहुत अधिक है फिर भी उसने मुआवजे की राशि कम कर दी। शीर्ष अदालत ने कहा है कि बिना किसी तथ्य, चर्चा या तर्क के राष्ट्रीय आयोग द्वारा लिया गया निर्णय मनमाना और नहीं टिकने वाला है।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पाया कि उस समय शिकायतकर्ता 14 वर्ष की थी और बंगलूरू (Bangalore) के एक शैक्षणिक संस्थान में नौवीं कक्षा में पढ़ फ्ही थी। दिसंबर 2006 में वह स्कूल के अन्य छात्रों व शिक्षकों के साथ उत्तर भारत के कई स्थानों पर शैक्षिक दौरे पर गई थी। दौरे के दौरान वह वायरल बुखार से बीमार हो गई, उनकी पहचान मेनिंगो एन्सेफलाइटिस के रूप में हुई।

डॉक्टरों का कहना था कि अगर उसे समय पर ध्यान और चिकित्सा सहायता दी जाती तो वह आसानी से ठीक हो सकती थी। आखिरकार उसे एक एयर एंबुलेंस में बंगलूरू ले जाना पड़ा। उसके बाद से वह बिस्तर पर है। उसकी याददाश्त चली गई है। वह बोल भी नहीं सकती। और उसके ठीक होने की कोई संभावना नहीं है। वह सामान्य जीवन से वंचित है और विवाह योग्य उम्र होने के बावजूद शादी की संभावनाओं से वंचित है।

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