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कृषि कानूनों का विरोध: दिल्ली की सीमाओं पर नौ माह से डटे किसान, आज से दो दिवसीय अधिवेशन

सोनीपत। दिल्ली की सीमाओं पर अपनी मांगों के समर्थन में किसानों के आंदोलन के आज नौ महीने पूरे होने के बाद यह दुनिया का सबसे अदिक दिन चलने वाला विरोध प्रदर्शन बन जाएगा। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को नौ महीने हो गए हैं। किसानों व केंद्र सरकार के बीच 22 जनवरी को अंतिम वार्ता के बाद से गतिरोध बना हुआ है।

26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड के दौरान बवाल होने पर टूटता आंदोलन किसान नेताओं की भावुक अपील के बाद दोबारा खड़ा हो गया था लेकिन अब इतना समय बीतने के बावजूद सरकार से बातचीत का रास्ता न खुलने पर आंदोलन लंबा होता जा रहा है। सरकार ने बातचीत की कोई पहल नहीं की। अब संयुक्त किसान मोर्चा 26 और 27 अगस्त को कुंडली बॉर्डर पर अखिल भारतीय अधिवेशन का आयोजन करेगा, जिसमें आंदोलन को नई दिशा व दशा देने का खाका तैयार किया जाएगा।

तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में हजारों किसानों ने पंजाब से दिल्ली कूच किया था। 26 नवंबर-2020 को हजारों की संख्या में तैनात सुरक्षा बलों ने कुंडली बॉर्डर पर बैरिकेडिंग कर किसानों को दिल्ली में घुसने से रोका था। आगे रास्ता न मिलने पर हजारों किसानों ने तभी से कुंडली क्षेत्र में नेशनल हाईवे-44 के बीचोंबीच पड़ाव डाल रखा है। उस समय किसी को अनुमान नहीं था कि कुंडली बॉर्डर पर किसान आंदोलन का मुख्य धरनास्थल बन जाएगा। पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और आसपास से हजारों की संख्या में किसान कुंडली बॉर्डर पहुंचना शुरू हो गए, जिसके बाद यहां से धरना चल रहा है।


केंद्र सरकार ने शुरू की वार्ता, मगर अब सात माह से बंद
किसानों को लगातार समर्थन मिलने से केंद्र सरकार ने दबाव के चलते दिल्ली के विज्ञान भवन में 1 दिसंबर, 2020 को किसान संगठनों को बातचीत के लिए बुलाया था। मगर कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर और किसानों के बीच घंटों चली बातचीत बेनतीजा रही। उसके बाद एक-एक कर 11 दौर की वार्ता हुई, मगर दोनों पक्षों के बीच सहमति नहीं बन पाई। 22 जनवरी के बाद से दोनों पक्षों के बीच गतिरोध बना हुआ है।

26 जनवरी को लालकिला हिंसा ने आंदोलन को किया प्रभावित 
26 जनवरी को किसानों ने काफी संख्या में ट्रैक्टर पर सवार होकर दिल्ली के लिए कूच किया था। मगर इस बीच कुछ कथित किसान लालकिले पर पहुंच गए। बाद में वहां पर जो कुछ हुआ, वह पूरे देश ने देखा। हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा ने लालकिले की हिंसा से अपना पल्ला झाड़ लिया और बयान जारी किया कि उनका इससे कोई लेना-देना नहीं।

गाजीपुर बॉर्डर पर भाकियू नेता राकेश टिकैत के आंसुओं ने पलटी बाजी
लालकिला प्रकरण के दो दिन बाद ही चर्चा चली कि भाकियू नेता राकेश टिकैत गिरफ्तारी दे सकते हैं मगर रात को वे मीडिया के सामने आए और सत्तापक्ष से जुड़े लोगों पर किसानों पर हमला करने का आरोप लगाते हुए भावुक हो गए। उनकी आंखों से निकले आंसुओं ने काम किया और रातों-रात गाजीपुर, कुंडली और टीकरी बॉर्डर पर किसानों की संख्या बढ़ने लगी। सुबह होते-होते सभी धरनास्थल पर किसानों का जमावड़ा लग गया।  


कई बार किया हाईवे जाम, टोल कराए फ्री
आंदोलन शुरू होने के बाद कई बार किसान सड़कों पर उतरकर रोष जता चुके हैं। इतना ही नहीं टोल फ्री कराकर करोड़ों रुपये का नुकसान पहुंचा चुके हैं। उसके बावजूद आंदोलन लगातार चल ही रहा है। टोल फ्री कराने को लेकर कई बार गहमागहमी भी हो चुकी है। भीड़ कम होने के बाद टोल दोबारा शुरू कराए गए हैं।

समानांतर किसान संसद से बनाया दबाव
सरकार द्वारा कोई ठोस पहल न किए जाने पर किसानों ने 22 जुलाई से जंतर-मंतर पहुंचकर समानांतर किसान संसद लगाई। रोजाना 200 किसान कुंडली बॉर्डर से बसों में सवार होकर जंतर मंतर पहुंचे और वहां किसान संसद लगाकर नए कृषि कानूनों पर चर्चा करते हुए मीडिया के अलावा देशवासियों का ध्यान अपनी ओर खींचा। यह सिलसिला सभी कार्य दिवसों में नौ अगस्त तक चला। खासतौर पर 26 जुलाई और 9 अगस्त को महिला किसान संसद का आयोजन किया गया।

पहले से भीड़ हुई कम, दोबारा आंदोलन को तेज करने की रणनीति बना रहे 
किसान आंदोलन में उतार-चढ़ाव लगातार जारी रहे। सरकार से बातचीत बंद होने से आंदोलन को लंबा होता देखकर दिल्ली की सीमाओं पर भीड़ कम होने लगी है। कुंडली बॉर्डर से किसान वापस चले गए और वहां टेंट खाली दिखाई देने लगे हैं। किसान नेता अब फिर से आंदोलन को सक्रिय बनाने में लगे हैं। फिलहाल कुंडली बॉर्डर पर करीब नौ-दस हजार किसान हैं, जिसमें महिलाओं की संख्या 300-350 के आसपास है। हरियाणा के किसानों की संख्या दिन में 800 तक पहुंच जाती है लेकिन इनमें से ज्यादातर शाम को लौट जाते हैं।

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