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बिहार चुनाव 2025 : पटना के बाहर तेजस्वी के लिए चुनौती, महिलाओं में नीतीश की पकड़ मजबूत

October 30, 2025

पटना । बिहार (Bihar) की राजधानी पटना (Patna) में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार (NDA government) की जिस तेज रफ्तार वाली विकास गाथा की झलक मिलती है, वह पटना की सीमा से बाहर निकलते ही धीमी और अधूरी नजर आने लगती है। भले ही नई चौड़ी सड़कें और पुल-पुलिया लंबी दूरी की यात्रा को आसान बना रहे हैं, लेकिन यही चमक ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के बीच एक गहरा विच्छेद भी पैदा कर रही है। पटना से दूर, बिहार के दूसरे सबसे शहर मुजफ्फरपुर को ‘स्मार्ट सिटी’ का दर्जा मिलने के बावजूद, लोग आज भी निराशाजनक ट्रैफिक जाम और जल जमाव से जूझ रहे हैं। वहीं, सीतामढ़ी में लोग मेहसौल ओवरब्रिज के अधूरे पड़े काम पर गुस्सा जाहिर करते हैं। एक रिपोर्ट में स्थानीय लोगों के हवाले से कहा है कि यह ओवरब्रिज शहर की जीवनरेखा है, जिसका काम लगभग दो दशक पहले यानी कि कई चुनावों से पहले शुरू हुआ था, लेकिन आज भी अधूरा है।


पटना से बाहर चुनावी रणभूमि विपक्ष के लिए अधिक अनुकूल दिख रही है। जमीन पर मौजूद कारकों की एक लंबी श्रृंखला सत्ताधारी गठबंधन के खिलाफ काम कर रही है। पटना की तुलना में अन्य शहरों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव। सरकारी योजनाओं की धीमी और असंगत डिलीवरी। बढ़ती कीमतें, अफसरशाही के खिलाफ रोष और योजनाओं में बढ़ता भ्रष्टाचार एक बड़ा चुनावी मुद्दा है। पिछड़ी जातियों के पुरुषों में शराबबंदी नीति के खिलाफ भारी गुस्सा है। उनका मानना ​​है कि इसने शराब की खपत खत्म नहीं की, बल्कि इसे महंगा कर दिया और खतरनाक नशीले पदार्थों को बढ़ावा दिया। साथ ही पुलिस को अनावश्यक शक्तियां दे दी हैं, जो माफिया के साथ मिलकर काम करती दिखती है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, जाति या वर्ग से परे मतदाताओं के बीच सबसे बड़ा मुद्दा राज्य में फैक्ट्री और रोजगार का नहीं होना है। नौकरी की तलाश में बिहार के युवाओं को आज भी दूर-दराज के राज्यों में पलायन करना पड़ता है। हालांकि, इस चुनाव का नतीजा अंततः इस बात पर निर्भर करेगा कि राजद नेता तेजस्वी यादव अपनी पारंपरिक मुस्लिम-यादव समीकरण की जातीय सीमा को कितना तोड़ पाते हैं। क्या वह नीतीश कुमार के 20 साल के शासन के खिलाफ गैर-यादव असंतोष को अपने पक्ष में एकजुट कर पाएंगे?

तेजस्वी की चुनौती
यादवों और मुसलमानों में राजद का आधार आज भी मजबूत है, लेकिन जीत हासिल करने के लिए उन्हें इस सीमा को पार करना होगा। गैर-यादव पिछड़े वर्ग और अति-पिछड़े वर्गों के बीच आज भी लालू प्रसाद यादव के पुराने शासन जंगलराज की नकारात्मक विरासत का डर बना हुआ है, जिसे तेजस्वी की ‘A to Z’ पार्टी की छवि अभी पूरी तरह से मिटा नहीं पाई है।

NDA का बहुस्तरीय दांव
दूसरी तरफ, नीतीश-मोदी गठबंधन सत्ता विरोधी लहर को काटने के लिए कई परतों वाला दांव चल रहा है। इसमें भाजपा का हिंदुत्व, मोदी का मुफ्त राशन और राष्ट्रीयता का व्यापक आकर्षण, नीतीश की कानून-व्यवस्था में सफलता और उनकी महिला-केंद्रित योजनाएं (जैसे महिला रोजगार योजना में 10,000 का ट्रांसफर) शामिल हैं।

महिलाओं के बीच नीतीश कुमार की योजनाओं का असर दिख रहा है। खरुणा डीह गांव में एक महिला वोटर रंगीला देवी के पति शराबबंदी के कारण जेल गए थे। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए वह कहती हैं, “जिसका खाएंगे, उसी को देंगे”। उन्हें मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 10,000 मिले हैं, इसलिए वह नीतीश को वोट देंगी।

तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन की शुरुआत एक मजबूत मुस्लिम-यादव आधार से होती है, लेकिन चुनाव जीतने के लिए उन्हें व्यापक आधार पर गैर-यादव ओबीसी, दलितों और अति-पिछड़ों के असंतोष को अपने पक्ष में करना होगा। सड़क पर मिल रही आवाजों से यह स्पष्ट है कि राजद के लिए यह एक कठिन परीक्षा है। लालू प्रसाद ने पार्टी बनाई, उसे एक पहचान दी और अब पार्टी को उनकी छाया से हटकर इस नए राजनीतिक मोड़ की मांगों को पूरा करना होगा।

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