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50 साल बाद दुनिया को फिर डरा रही महंगाई, नए साल में आम लोगों की जेब कटनी तय

नई दिल्ली। कोरोना महामारी के बाद जिस तेजी से महंगाई बढ़ी है। उसका एक बुरा असर लोगों की जेबों पर पड़ रहा है। वहीं दूसरी तरफ कई लोग ये आस लगाए बैठे हैं कि आने वाला साल शायद उनको महंगाई से राहत दिलाएगा। हालांकि, अर्थव्यवस्था जिस तरह से गति कर रही है, उसे देखते हुए ऐसा नहीं लगता है कि साल 2022 में भी लोगों को महंगाई से राहत मिलने वाली है।

साल 2020 के बाद से दुनिया के कई देशों में मुद्रास्फीति काफी तेजी से बढ़ी है। इस कारण दुनिया के कई देशों में गुजर बसर करने वाला आम जन जीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। ऐसे में 50 साल बाद दुनिया को फिर से महंगाई का डर सता रहा है। 1974 के बाद अमेरिका में जो महंगाई बढ़ी थी, उसका बुरा असर विश्व के कई देशों में देखने को मिला था।

अमेरिका में बढ़ी इस महंगाई का सबसे बड़ा कारण वियतनाम युद्ध और मिडल ईस्ट से हो रही तेल आपूर्ति में दिक्कतें थीं। इससे दुनिया के कई देश नकारात्मक तौर पर प्रभावित हुए। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भी इन्फ्लेशन काफी तेजी से बढ़ा था। इसका सबसे बड़ा कारण वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का ठप पड़ा जाना था क्योंकि कई मजदूरों को युद्ध के लिए सेना में भर्ती किया जाता था। वहीं जब युद्ध समाप्त हुआ, तो जरूरी वस्तुओं को लेकर मांग बढ़ने लगी और चीजों की आपूर्ति कम थी।


कोरोना महामारी के बाद आज स्थिति कुछ ऐसी ही है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर महंगाई इतनी तेजी से क्यों बढ़ रही है? और आम जन जीवन को इससे कब राहत मिलने की उम्मीद होगी? इसी कड़ी में आज हम उन कारकों के बारे में जानेंगे, जो महंगाई को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं? और कब लोगों को इससे राहत मिलने की उम्मीद होगी?

कोरोना महामारी में नकारात्मक ढंग से प्रभावित हुई आपूर्ति श्रृंखला
कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को नकारात्मक ढंग से प्रभावित किया है। इसका सबसे बुरा असर वैश्विक उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला पर पड़ा है। इसके चलते विश्व भर में उत्पादन श्रृंखला पूरी तरह से ठप पड़ गई थी। हालांकि, कोरोना महामारी के अंत के बाद अर्थव्यवस्था ने दोबारा गति करनी शुरू की। ऐसे में उत्पादों को लेकर लोगों की मांग काफी तेजी से बढ़ने लगी। 

वहीं महामारी के चलते बाधित हुई उत्पादन श्रृंखला उतनी मात्रा में चीजों का उत्पादन नहीं कर पा रही है, जितनी उसकी मांग है। इस कारण मांग बढ़ने और आपूर्ति कम होने से कई क्षेत्रों में चीजों के दाम काफी तेजी से बढ़ने लगे हैं। ये एक सबसे बड़ी वजह है, जिसके चलते बीते सालों में महंगाई बढ़ी है। 

पेट्रोल और डीजल के दामों में वृद्धि
अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के बढ़ने और सरकार द्वारा अधिक मात्रा में उस पर टैक्सेशन चार्ज भी मुद्रास्फीति के बढ़ने की एक बड़ी वजह है। बीते कुछ महीनों में जिस तेजी से भारत में पेट्रोल और डीजल के दामों में वृद्धि हुई है। उसका एक बुरा असर ट्रांसपोर्टेशन के क्षेत्र पर पड़ रहा है। ऐसे में चीजों को लाने ले जाने का जो अतिरिक्त खर्च आ रहा है, उसका दबाव भी ग्राहकों को झेलना पड़ रहा है। 


अमेरिका की बढ़ती मुद्रास्फीति का भारत पर असर
इस साल अमेरिका के रिटेल सेक्टर में 6.2 फीसदी की मुद्रास्फीति बढ़ी है। पिछले 3 दशकों में ये अब तक का सबसे बड़ा उछाल है। अमेरिका की बढ़ती मुद्रास्फीति भारत के लिए भी एक चिंता का विषय है। आइए समझते हैं कैसे? फोरन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर (FPI’s) स्टॉक मार्केट में कैरी ट्रेड की रणनीती अपनाते हैं। इसमें वो बड़ी मात्रा में उस देश से लोन लेते हैं जहां पर कम दरों पर इंटरेस्ट रेट है। 

उसके बाद वो इस राशि को उस देश में इन्वेस्ट करते हैं, जहां पर ज्यादा इंटरेस्ट रेट है। ऐसे में फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स द्वारा कैरी ट्रेड करने से करेंसी में अस्थिरता देखने को मिलती है। एफपीआई इसी रणनीति के तहत भारतीय स्टॉक में पैसों को निवेश करके लाभ को अपने देश में लाने का काम कर रहे हैं। कैरी ट्रेड का बुरा असर करेंसी एक्सचेंज रेट पर पड़ता है, जिसके चलते देश में इन्फ्लेशन तेजी से बढ़ने लगता है।   

संभावना जताई जा रही है कि ग्लोबल सप्लाई चैन स्थिर होने के बाद भारत में महंगाई कम हो सकती है। इसके अलावा आपको महंगाई से बचने के लिए ऐसे क्षेत्रों में निवेश करना चाहिए, जहां से अधिक मात्रा में रिटर्न मिलने की उम्मीद है। इसके लिए आप इंडेक्स फंड या किसी अच्छे म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं।

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