
नई दिल्ली । इलाहाबाद हाईकोर्ट(Allahabad High Court) ने 2005 के एक मामले में नाबालिग(minor) के कथित अपहरण(Alleged kidnapping) और बलात्कार के आरोप(Rape allegations) में दोषी ठहराए गए इस्लाम उर्फ पलटू को सभी आरोपों से बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि पीड़िता की शादी लगभग 16 वर्ष की उम्र में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत की गई थी, जो अमान्य नहीं है। उस समय लागू कानून के तहत पति-पत्नी के बीच संबंध अपराध नहीं माना जा सकता था।
एकल पीठ न्यायमूर्ति अनिल कुमार ने निचली अदालत के 2007 के फैसले को रद्द करते हुए यह निर्णय सुनाया। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363, 366 और 376 के तहत सात वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी थी।
स्वेच्छा से घर छोड़ने की बात स्वीकार की
हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान पीड़िता की गवाही का विश्लेषण करते हुए पाया कि अपहरण का आरोप साबित नहीं होता। जहां एक ओर पिता ने बेटी को बहला-फुसलाकर ले जाने का आरोप लगाया था वहीं पीड़िता ने जिरह में स्वीकार किया कि वह खुद अपनी मर्जी से इस्लाम के साथ गई थी।
उसने बताया कि दोनों ने कालपी में निकाह किया और उसके बाद भोपाल में एक महीने तक पति-पत्नी की तरह साथ रहे। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के 1973 के फैसले “ठाकोरलाल डी वडगामा बनाम गुजरात राज्य” का हवाला देते हुए कहा कि “ले जाने” और “साथ जाने देने” में कानूनी अंतर होता है। न्यायालय ने कहा, “प्रसंगवश यह कहा जा सकता है कि अभियोजन यह साबित करने में विफल रहा कि पीड़िता को अभियुक्त ने बहकाया या उसे जबरन ले गया।” इस आधार पर अदालत ने आरोपी को धारा 363 (अपहरण) और धारा 366 (अभिकर्षण) के आरोपों से बरी कर दिया।
शादी और संबंध मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत वैध
धारा 376 (बलात्कार) से संबंधित आरोप पर अदालत ने पाया कि पीड़िता की आयु ऑसिफिकेशन टेस्ट के अनुसार 16 वर्ष से अधिक थी। मुस्लिम पर्सनल लॉ में 15 वर्ष की आयु को विवाह योग्य मानकर बालिग माना जाता है, इसलिए यह विवाह वैध था।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि 2017 के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय “इंडिपेंडेंट थॉट बनाम यूनियन ऑफ इंडिया” में अपवाद 2 को हटाकर यह कहा गया था कि 18 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ शारीरिक संबंध को भी बलात्कार माना जाएगा, परंतु यह फैसला भावी प्रभाव से लागू हुआ था। इसलिए 2005 में घटित घटना पर यह नया कानून लागू नहीं हो सकता था। उस समय की कानूनी स्थिति के अनुसार, यदि पत्नी की उम्र 15 वर्ष से अधिक थी तो पति पर बलात्कार का आरोप नहीं लगाया जा सकता था।
न्यायालय ने निष्कर्ष में कहा, “अतः अभियुक्त को बलात्कार के अपराध का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि घटना के समय पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से अधिक थी और दोनों के बीच शारीरिक संबंध विवाह के बाद बने थे।”
अदालत ने आरोपी को सभी आरोपों से बरी करते हुए कहा कि वह पहले से ही जमानत पर था, इसलिए अब उसे औपचारिक रूप से मुक्त किया जाता है। साथ ही ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड को वापस भेजने का निर्देश दिया गया।
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