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​आनंद महिंद्रा ने किया सलाम, आंखों की रोशनी नहीं फिर भी खड़ी कर दी 350 करोड़ की कंपनी

नई दिल्‍ली (New Dehli) । आनंद महिंद्रा (​Anand Mahindra) ने हाल ही में एक वीडियो (Video) शेयर किया। इस वीडियो नें भावेश भाटिया भावेश भाटिया के बारे में बात हो रही है। सनराइज कैंडल (Sunrise Candle) के मालिक भावेश भाटिया देख नहीं सकते, लेकिन आज वो 350 करोड़ की कंपनी (company) के मालिक हैं।
“तो क्या हुआ तुम देख दुनिया नहीं देख सकते, कुछ ऐसा करो कि दुनिया तुम्हें देखें।” मां के इन शब्दों ने भावेश की जिंदगी बदल दी। 23 साल के थे, जब धीरे-धीरे कर आंखों की पूरी रोशनी चली गई। सबकुछ अंधेरे में खो गया। मदद के लिए कोई नहीं था। आंखों के सामने अंधेरा क्या छाया, सारे सपने टूट गए। जो भावेश पढ़-लिखकर नौकरी करना चाहते थे, उन्हें ठेले पर मोमबत्तियां बेचनी पड़ी। आंखों से भले कुछ न दिखे, लेकिन जिदंगी उन्हें काफी कुछ दिखा रही थी। जो मां अंधेरी दुनिया में उनकी सबसे बड़ी ताकत थी, उसका भी साथ छूट गया, लेकिन भावेश ने हिम्मत नहीं हारी। जो कुछ नहीं देख सकता, आज सैकड़ों लोगों की जिंदगियों को रोशन कर रहा है।
​आनंद महिंद्रा ने भी किया सलाम​

महिंद्रा एंड महिंद्रा के चेयरमैन आनंद महिंद्रा भी भावेश की कला के मुरीद हो गए। उन्होंने अपने सोशल मीडिया पेज पर भावेश कुमार से जुड़ा एक वीडियो शेयर किया। उन्होंने उस वीडियो को ट्वीट कर भावेश की तारीफों के पुल बांधे, उनकी हिम्मत की तारीफ की और उनके हौंसले को सलाम किया।
​1994 में शुरू की कंपनी​

साल 1994 में उन्होंने सनराइज कैंडल कंपनी की शुरुआत की। यहां से उनके जीवन में नया मोड़ आया। कंपनी तो खोल ली, लेकिन कोई ऑर्डर नहीं मिल पा रहा था। एक दोस्त की मदद ने उन्होंने प्रदर्शनी लगाई। उन्होंने इस प्रदर्शनी में 12000 से अधिक डिजाइन के कैंडल पेश कर दिए। इसके बाद क्या था, उन्हें बड़ी-बड़ी कंपनियों से ऑर्डर मिलने लगा। जिस परेशानी से वो गुजर रहे थे, वो उसका दर्द समझते थे। इसलिए उन्होंने अपनी कंपनी में 9000 दिव्यांगजनों को रोजगार दिया। 52 साल के भाटिया की कंपनी सनराइज कैंडल 12,000 से ज्यादा मोमबत्ती के डिजाइन बनाती है। भारत के अलावा दुनिया की 1000 मल्टीनेशनल कंपनियों को वो अपना प्रोडक्ट बेचती है। आज उनकी कंपनी 350 करोड़ की हो चुकी है।
ठेले पर बेचते थे मोमबत्ती​

भावेश ने मोमबत्ती बनाना शुरू किया। बेचने की बारी आई तो उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि कहीं दुकान ले सकें। आंखें नहीं थी कि घर-घर जाकर बेच सकें। भावेश भाटिया के एक दोस्त के पास ठेला था। उन्होंने 50 रुपये में उससे वो किराए पर लिया और उसी पर मोमबत्ती बेचना शुरू किया। कैंडल बेचकर वो जो भी कमाते उसमें से 25 रुपये बचाकर रख लेते थे। इसे ठेले पर उनकी मुलाकात नीता से हुई। दोनों में प्यार हुआ और फिर दोनों ने शादी कर ली। नीता के आने के बाद काफी कुछ बदल गया। उन्हें मानो अपनी नई रोशनी मिल गई हो। भावेश कैंडल बनाते और नीता उसे बेचती। धीरे-धीरे उन्होंने स्कूटर और फिर वैन ले लिया। इसी तरह से काम बढ़ने लगा।
​23 की उम्र आंखों की रोशनी चली गई​

भावेश चंदूभाई भाटिया जब 23 साल के थे, बीमारी के कारण उनके आंखों की रोशनी चली गई। भावेश ने एमए तक की पढ़ाई की है। जब नौकरी करने की बारी आई तो आंखों ने धोखा दे दिया। भावेश बुरी तरह से टूट गए, लेकिन मां ने उन्हें फिर से खड़ा होने का भरोसा दिया। भावेश को हिम्मत दी और कहा कि क्या हुआ कि ‘तुम दुनिया नहीं देख सकते, कुछ ऐसा करो कि दुनिया तुम्हें देखें’। मां की यह बात भावेश ने गांठ बांध ली। मां जो सबसे बड़ी ताकत थी, उन्हें कैंसर हो गया। पिता की सारी सेविंग उनके इलाज में चली गई। मां बच नहीं पाई। मां के जाने के बाद भावेश टूट गए। न नौकरी थी और न कमाई का कोई साधन। मां की कही बात को खुद साबित करना था, इसलिए उन्होंने नेशनल एसोसिएसन फॉर द ब्लाइंड स्कूल से कैंडल मेकिंग सीखा।

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