बिलावल का गोवा दौरा और मायूसी

– डॉ. सुदीप शुक्ल

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों की विदेशमंत्री स्तरीय बैठक का गोवा में शुक्रवार को समापन हो गया। भारत की अध्यक्षता और आतिथ्य में चार मई से प्रांरभ हुई इस दो दिवसीय बैठक में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी भी शामिल हुए। बिलावल का यह दौरा भारत और पाकिस्तान के बीच जारी गतिरोध के बीच हुआ। यहां यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि इससे पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने दिसंबर में ही संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर अपने पूर्वाग्रह के साथ भारत विरोधी एजेंडा के तहत जहर उगला था।

दरअसल, पाकिस्तान अपनी भ्रमित विदेश नीति के कारण परेशान है। इसी के कारण वह निर्णय नहीं कर पा रहा है कि उसे बेहद शक्तिशाली, वैश्विकनेता की भूमिका वाले अपने परिपक्व पड़ोसी के साथ किस प्रकार के संबंध रखने चाहिए। किसी पाकिस्तानी विदेश मंत्री के रूप में बिलावल का भारत आना 12 वर्ष बाद हुआ। इससे पहले 2011 में तत्कालीन विदेशमंत्री हिना रब्बानी खार शांति वार्ता के लिए भारत आई थीं।

सीमापार से पाकिस्तान का राज्य प्रायोजित आतंकवाद, भारत विरोधी रवैया और कश्मीर को लेकर उसकी ‘नीति’ किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में राजनयिक स्तर पर पिछले 12 वर्ष से रुका सिलसिला शुरू अवश्य हुआ लेकिन दोनों पड़ोसी देशों के संदर्भ में इससे कुछ विशेष हासिल होता नहीं दिख रहा। बल्कि माना जा रहा है कि पहले से बिगड़े संबंधों में इससे तल्खी कुछ और बढ़ेगी। बैठक के दौरान औपचारिक फोटो सेशन के दौरान ऐसी स्थिति बन गई जब भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्री आमने-सामने थे।

इस दौरान भारतीय विदेशमंत्री ने केवल दूर से ही नमस्कार किया। पाकिस्तान के विदेश मंत्री को भी दूर से ही नमस्कार करना पड़ा। अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक संबंधों में देह भाषा का अपना अलग और बड़ा महत्व होता है। मेजबान भारत ने इससे विश्व समुदाय और विशेषकर पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दे दिया है। इस प्रकार भारत में इस मंच पर भी संवाद या रिश्तों में सुधार की कोई संभावना नहीं बनी।

एससीओ आठ सदस्यों वाला अंतर सरकारी बहुपक्षीय संगठन है। इस संगठन की स्थापना 15 जून 2001 को संस्थापक सदस्य देश चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के नेताओं द्वारा शंघाई, चीन में की गई थी। उज्बेकिस्तान को छोड़कर ये देश पूर्व से शंघाई फाइव समूह के सदस्य थे, जिसका गठन 26 अप्रैल 1996 को सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य ट्रस्ट को गहरा करने की संधि पर हस्ताक्षर के साथ किया गया था।

2001 में शंघाई में वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान, पांच सदस्य देशों ने पहली बार उज्बेकिस्तान को शामिल किया और इसे शंघाई सिक्स में बदल दिया। 15 जून, 2001 को शंघाई सहयोग संगठन की घोषणा पर हस्ताक्षर किए गए। जुलाई 2005 में भारत और पाकिस्तान पर्यवेक्षक देशों के रूप में इस समूह में आमंत्रित किए गए बाद में 2017 में अस्ताना शिखर सम्मेलन में दोनों देश एक साथ एससीओ के स्थायी सदस्य बनाए गए। पाकिस्तान के विदेश नीति और कूटनीतिक मामलों से जुड़े राजनयिक आज भी इसे गर्व का विषय मानते हैं कि कैसे उन्होंने भारी संघर्ष के बाद इस संगठन का सदस्य बनने में सफलता प्राप्त की। अब एससीओ में भारत, पाकिस्तान सहित आठ सदस्य देश हैं।

एससीओ को नाटो के विकल्प के रूप में देखा जाता है। एससीओ की अध्यक्षता सदस्य देशों द्वारा एक वर्ष के रोटेशन में सौंपी जाती है। वर्तमान में संगठन की अध्यक्षता का दायित्व भारत के पास है। अध्यक्षता कर रहा देश अपने यहां संगठन की बैठकें आदि आयोजित करता है, इसका औपचारिक आमंत्रण सभी देशों को भेजा जाता है। पाकिस्तान को भी इसी दृष्टि से आमंत्रित किया गया था। इसे स्वीकार कर बिलावल गोवा पहुंचे। उल्लेखनीय है कि इससे पहले रक्षामंत्री स्तरीय बैठक हो चुकी है जिसमें पाकिस्तान की ओर से उनके रक्षामंत्री अनुपस्थित रहे थे।

अभी पाकिस्तान दो प्रमुख मोर्चों पर बेहद खराब स्थिति में है। एक उसकी सर्वज्ञात बदहाल हो चली अर्थव्यवस्था, जो लगभग दिवालिया होने की ओर बढ़ रही है, वहीं दूसरे उसकी सरकार की अस्थिर स्थिति। ऐसे में पाकिस्तान की भ्रमित विदेश नीति कभी चीन के बेहद करीब होती है तो कभी अमेरिका से संबंधों का पुराना दर्जा प्राप्त करने के लिए लालायित दिखाई देती है।

बिलावल भुट्टो के भारत आने को इस परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता कि पाकिस्तान, अमेरिका सहित दुनिया को दिखाना चाहता है कि भारत से सुलह-समझौते के प्रयास उसकी ओर से किए जा रहे हैं। बदली हुई परिस्थितियों में भारत के अमेरिका और देश के सभी प्रमुख देशों से संबंध के बीच पाकिस्तान अपनी स्थिति सुधारना चाहता है। चीन उसका मित्र है और इसके जरिए पाकिस्तान रूस से नजदीकी बढ़ाने की कोशिश में है। वहीं आगे चलकर न-न करते हुए भी भारत से व्यवसाय-वाणिज्यिक संबंधों की बहाली पर भी उसकी दृष्टि है।

ऐसा करने से वह अपनी डूबती अर्थव्यवस्था को काफी हद तक सुधार सकता है लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है। पाकिस्तान में अभी इमरान खान के विरुद्ध बहुदलीय गठबंधन सरकार है जिसे आगे चलकर चुनावों में जाना है। भारत विरोध और कश्मीर राग को पाकिस्तान के राजनीतिक दल वोट दिलाने का फार्मूला मानते और उसका उपयोग करते हैं। इसलिए अभी संबंध बहाली का ‘राजनीतिक खतरा’ कोई नहीं लेना चाहेगा।

पाकिस्तान की सरकार पर हावी रहने वाली वहां की सेना भी अपनी स्थिति मजबूत बनाए रखने के लिए ‘भारत से असुरक्षा’ और ‘जवाब देने को तैयार’ वाले फार्मूले का सहारा लेती रही है। पिछले दिनों ऐसी दो बड़ी घटनाएं इस ओर संकेत करती हैं। सेना के जनसंपर्क विभाग (आईएसपीआर) के महानिदेशक मेजर जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने 25 अप्रैल को अपनी पहली प्रेस वार्ता में भारत विरोधी बातें कही थीं।

इसके चार दिन बाद ही 29 अप्रैल को खैबर पख्तूनख्वा के काकुल में सैन्य अकादमी की पासिंग आउट परेड में सेना के ग्रेजुएट अधिकारी कैडेट्स को संबोधित करते हुए सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने भारत के खिलाफ उकसावे भरी बातें कहीं। अपने भाषण के अंत में जनरल मुनीर ने कश्मीर के लिए बलिदान देने से पीछे नहीं हटने की और कश्मीरियों को समर्थन जारी रखने की बात भी कही थी। सेना की ओर से उकसावे वाले ये दोनों वक्तव्य ठीक उस समय आए जबकि विदेश मंत्री बिलावल के एससीओ बैठक में जाने को लेकर पाकिस्तान सरकार सहमति देकर इसकी घोषणा कर चुकी थी।

गोवा पहुंचने के लिए पाकिस्तान के उड्डयन विभाग ने भारत के एयर ट्रैफिक कंट्रोलर से 3 मई को मार्ग की अनुमति मांगी थी जो देर शाम तक भारत की ओर से उपलब्ध करा दी गई। इसके बाद 4 मई कराची से विमान से वे गोवा पहुंचे। इससे पहले उन्होंने ट्विटर पर वीडियो जारी कर एससीओ की बैठक में गोवा जाने की बात कही।

इसके अंत में उन्होंने विशेष बात कही कि मैं पाकिस्तान के मित्र देशों के अपने समकक्षों के साथ रचनात्मक चर्चा की आशा करता हूं। इस सबके बावजूद एससीओ एक बहुपक्षीय चर्चा वाला समूह है। इसमें आधिकारिक रूप से द्विपक्षीय वार्ता आदि नहीं होती। भारत की ओर से भी कहा गया है कि एससीओ में सदस्य देशों की बहुपक्षीय विषयों पर सामूहिक चर्चा ही होगी। ऐसे में बिलावल के इस दौरे से कोई खास उम्मीद लगाना ठीक नहीं है, क्योंकि फिलहाल की परिस्थितियों में इसका कुछ हासिल भी नहीं है।

इधर बैठक की अध्यक्षता कर रहे भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आतंकवाद का मुद्दा प्रमुखता के साथ उठाया। उन्होंने इस बात को बल देते हुए कहा कि आतंकवाद किसी भी स्थिति में जायज नहीं है। आतंकवाद को हर प्रकार से खत्म करना चाहिए। आतंक की आर्थिक रसद बंद करने के लिए प्रभावी कार्रवाई आवश्यक है। आतंकवाद पीड़ित और आतंकवाद को पोषित करने वाले देश के बीच बैठकर बातें नहीं हो सकतीं। भारत की आशंकाएं इसलिए भी सही हैं क्योंकि जब गोवा में शंघाई सहयोग संगठन की यह बैठक चल रही थी तभी शुक्रवार सुबह कश्मीर घाटी में आतंकवादियों से हुई मुठभेड़ में पांच भारतीय सैनिक शहीद हो गए।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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