निर्मला सीतारमण ने कहा- SBI और ONGC में विनिवेश से सरकार को परहेज नहीं, जाने क्‍यों बोलीं वित्‍त मंत्री ?

नई दिल्‍ली (New Delhi) । देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (SBI) और देश की सबसे बड़ी सरकारी कंपनियों (government companies) में से एक ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ONGC) में विनिवेश करने से सरकार को कोई दिक्कत नहीं है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) ने एक निजी टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में ये बात कही है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि भारत सरकार को एसबीआई और ओएनजीसी जैसी तमाम ब्लूचिप सरकारी कंपनियों में विनिवेश (डिसइंवेस्टमेंट) से दिक्कत नहीं है. सरकार का रुख पब्लिक सेक्टर की अहम कंपनियों में मॉइनॉरिटी स्टेक होल्डर (50 प्रतिशत से कम) बने रहने के खिलाफ भी नहीं है.

इंटरव्यू के दौरान जब वित्त मंत्री से पूछा गया कि क्या सरकार एसबीआई और ओएनजीसी जैसी अहम कंपनियों में 49 प्रतिशत या उससे कम हिस्सेदारी रखने का समर्थन करती है, इस पर वित्त मंत्री ने ‘हां’ में जवाब दिया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ये बयान बजट पेश के तुरंत बाद दिया है, जिसके कई मायने निकाले जा रहे हैं.

सरकारी कंपनियों के विनिवेश की जिम्मेदारी दीपम की
जानकारी के मुताबिक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि डिपॉर्टमेंट ऑफ इंवेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट (दीपम) धीरे-धीरे कई सरकारी कंपनियों के शेयर्स मार्केट में रिलीज कर चुका है. ताकि प्राइवेट कंपनियां और रिटेल इंवेस्टर्स इन शेयरों को हासिल कर सके.

हाल के वर्षों में सरकार ने अपनी कई कंपनियों में हिस्सेदारी को बेचा है, लेकिन कंट्रोलिंग हिस्सेदारी सिर्फ एअर इंडिया में टाटा ग्रुप को बेची है.

बजट में प्राइवेटाइजेशन से 50,000 करोड़ कमाने का लक्ष्य
अगर सरकार के अंतरिम बजट 2024-25 को देखें, तो इसमें भी सरकार ने विनिवेश (प्राइवेटाजेशन) से 50,000 करोड़ रुपए कमाने का लक्ष्य रखा है. सरकार की कोशिश विभिन्न सरकारी कंपनियों में रणनीतिक विनिवेश की है. हालांकि सरकार के विनिवेश कार्यक्रम की देखरेख करने वाले विभाग ‘दीपम’ के आंकड़ों को देखें तो चालू वित्त वर्ष 2023-24 में भी विनिवेश से उसे 12,504.32 करोड़ रुपए हासिल हुए हैं. ये सरकार के 51,000 करोड़ रुपए के लक्ष्य का महज 24.5 प्रतिशत है.

हालांकि सरकार अपने विनिवेश लक्ष्य को पाने में वित्त वर्ष 2019-20 से ही चूक रही है. सरकार को अपनी कई कंपनियों जैसे कि भारत पेट्रोलियम और पवन हंस के लिए सही खरीदार नहीं मिले. तो एलआईसी की स्टॉक मार्केट में लिस्टिंग कराने के वक्त उसे सरकार के मुताबिक वैल्यूएशन हासिल नहीं हो सकी.

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