नारायण मूर्ति रिटायर होने तक सप्ताह में 80-90 घंटे करते थे काम, खुद किया खुलासा

नई दिल्‍ली (New Delhi) । इंफोसिस (Infosys) के संस्थापक नारायण मूर्ति (Narayana Murthy) ने बताया कि कंपनी (company) के निर्माण के दौरान वह सप्ताह में 85 से 90 घंटे काम किया करते थे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इसके बाद भी परिवार के लिए समय निकाल लेते थे। उन्होंने अपने परिवार के साथ बिताए समय की तुलना में गुणवत्तापूर्ण समय को प्राथमिकता दी। एक इंटरव्यू में नारायण मूर्ति से पूछा गया कि क्या उन्हें अपने परिवार के साथ कम समय बिताने का अफसोस है?

नारायण मूर्ति ने कहा, “ऐसा बिल्कुल नहीं है। मेरा हमेशा से मानना था कि क्वालिटी से कहीं महत्वपूर्ण क्वांटिटी होती है। मैं सुबह 6 बजे ऑफिस के लिए निकल जाता था और रात करीब 9.15 बजे तक लौट आता था। जैसे ही मैं घर पहुंचता था बच्चे गेट पर होते। सुधा, बच्चे और मेरे ससुर कार में बैठ जाते थे। इसके बाद हम जो भी खाना पसंद करते थे वह खाने के लिए निकल जाते थे। उस दौरान हम खूब मस्ती करते थे। वह डेढ़-दो घंटे बच्चों के लिए सबसे आरामदायक थे।”

नारायण मूर्ति ने कहा कि उन्होंने अपने परिवार में सभी से कहा था कि जब भी उन्हें कोई कठिनाई आएगी तो वह हमेशा उनके लिए समय निकालेंगे। उन्होंने कहा, “जिस सिद्धांत का मैंने हमेशा पालन किया है, मैंने अपनी बहनों सहित सभी को बताया है। मैंने उनसे कहा था- जब सब कुछ ठीक चल रहा हो तो तुम्हें मेरी जरूरत नहीं है। अगर कभी भी आपको कोई कठिनाई होगी तो मैं हमेशा आपके लिए मौजूद रहूंगा। आपको कठिनाई से बाहर निकालने की कोशिश करूंगा। अगर आपकी तबीयत ठीक नहीं है तो मैं आपको अस्पताल ले जाने के लिए मौजूद रहूंगा।”

सुधा मूर्ति ने कहा कि उनके पति के काम से वापस आने के बाद उनका समय बच्चों के साथ ही बीतता था। उन्होंने कहा कि उन्होंने नारायण मूर्ति का समर्थन किया क्योंकि वह समझती थीं कि इंफोसिस जैसी कंपनी बनाने में कितनी मेहनत लगती है। उन्होंने कहा, “हम ऐसे परिवार से आते हैं जहां हमारे पास कोई राजनीतिक संबंध या पैसा नहीं था। हम सामान्य लोग थे।” सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाला नारायण मूर्ति जैसा व्यक्ति 30 से 40 वर्षों में इंफोसिस जैसी महान कंपनी कैसे खड़ा कर देता है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि यह कड़ी मेहनत, ईश्वर की कृपा, अच्छे सहकर्मी और टीम वर्क है।

70-घंटे काम करने की सलाह पर क्यो बोले?
नारायण मूर्ति अपनी इस सलाह पर कायम रहे कि युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करना चाहिए। उन्होंने कहा, “मेरा विचार हमेशा यह रहा है कि भारत में हममें से जिन लोगों को देश से और करदाताओं से इतना लाभ मिला है। समाज के गरीब वर्गों के लिए जीवन की बेहतरी का अवसर लाने के लिए बहुत कड़ी मेहनत करने की एक बड़ी जिम्मेदारी है।”

उन्होंने कहा कि रिटायरमेंट होने तक वह सप्ताह में 85 से 90 घंटे काम करते थे। उन्होंने कहा कि 70 घंटे काम करना महत्वपूर्ण नहीं है। ध्यान कड़ी मेहनत करने पर होना चाहिए। उन्होने कहा, “इसका मतलब यह है कि आपको बहुत उत्पादक होना होगा। आपको बहुत कड़ी मेहनत करनी होगी। जैसे कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी के लोगों ने किया था। जैसे जापानियों ने किया था। हम अपने समाज के गरीब लोगों के लिए कड़ी मेहनत करने और उन्हें सक्षम बनाने के लिए बाध्य हैं।”

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