लोकतंत्र में नेताओं की जन छवि का सवाल

– प्रभुनाथ शुक्ल

भारतीय लोकतंत्र जागरूक और मजबूत है। यह सुखद और भविष्य के लिए अच्छी बात है। लेकिन हमारे राजतंत्र में राजनेताओं की स्थिति और छवि क्या बनती जा रही है, यह बड़ा सवाल है। लोकतंत्र को राजनेता नहीं जनता खुद धोखा दे रही है। जिसके हाथ में हम सत्ता सौंपने जा रहे हैं उसकी जन छवि क्या है। राजनीति में रहते हुए उसने कौन-सा विकास कार्य किया है। पांच साल के लिए जिस पर हमने भरोसा जताया वह हमारे लिए कितना खरा उतरा। समस्याओं का समाधान एवं चुनावी वायदों की गाड़ी कहां तक पहुंची, इसका खयाल हमें नहीं रहता।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की हालिया रिपोर्ट हमारे जनतंत्र का होश उड़ाने वाली है। लेकिन, वह हमारे लिए इतनी चिंता का विषय नहीं होगी। हमें सिर्फ शोर में जीने की आदत हो गई है। हम जमीन पर खड़े हैं कि नहीं यह आकलन भी हमें नहीं है। क्योंकि हम खुद अपनी चिंताओं में उलझे हैं कि देश और समाज की चिंता मुझे नहीं करनी है। क्या आपको पता है भारत की राज्य विधानसभाओं में जिन विधायकों को हमने चुनकर भेजा है उसमें 44 फीसदी का रिकॉर्ड आपराधिक बताया गया है। उन पर अपराध से सम्बंधित कोई न कोई मुकदमा दर्ज है। हम कैसे लोगों को चुनकर भेज रहे हैं?

हालांकि अभी हम उन्हें अपराधी नहीं कह सकते, जब तक उनके खिलाफ अदालतों में चल रहे मुकदमों का फैसला नहीं हो जता। लेकिन ऐसे माननीयों पर क्रिमिनल केस दर्ज है, यह सच है। आपराधिक उपलब्धि के साथ-साथ इनके पास अकूत दौलत भी है। जिन विधायकों को हमने चुनकर भेजा है उनके पास औसतन 13.63 करोड़ की संपत्ति है। दो फीसदी विधायक अरबपति हैं। 4,001 माननीय में 88 अरबपति हैं। यह घोषणाएं चुनाव के दौरान माननीयों ने अपने शपथपत्र में खुद दिया है। फिर सोचें हम कैसे लोगों को चुन रहे हैं।

एडीआर और नेशनल इलेक्शन वॉच (एनईडब्ल्यू) डब्ल्यू की तरफ से किए गए सर्वेक्षण में दो केंद्र शासित प्रदेश और 28 राज्य विधानसभा में 4,033 माननीय में 4,001 का विश्लेषण शामिल है। 1,136 तकरीबन 28 फीसदी विधायकों ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं। जिसमें हत्या, अपहरण, हत्या का प्रयास और महिलाओं के साथ अपराध शामिल है। केरल जैसे छोटे राज्य में 135 विधायकों में से 95 ने आपराधिक मुकदमों की घोषणा की है। आप सोचिए ऐसे लोगों को हम सत्ता का देवता मानते हैं। चुनाव के दौरान अपनी जान गंवा देते हैं। मंच पर उनका चरण पकड़ने और भारी-भरकम माला पहनाने की होड़ लगाते हैं। इन्हें शर्म न आए तो कम से कम हमें आनी चाहिए कि हम कैसे लोगों को लोकतंत्र के पवित्र मंदिर में भेज रहे हैं।

यह स्थित किसी एक विधानसभा की नहीं है। देश की अधिकांश विधानसभाओं की यही हालत है। हमने राजनेता नहीं आपराधिक आरोपितों को भेजा है। फिर ऐसे लोगों से अच्छे आचरण और विकास की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। बिहार में 67 फीसदी, दिल्ली में 70, महाराष्ट्र में 62, तेलंगाना में 61 तमिलनाडु में 60 फीसदी माननीय अपने खिलाफ आपराधिक मुकदमों की घोषणा की है। बिहार में 242 विधायकों में से 161 जबकि महाराष्ट्र में 284 में से 175 के खिलाफ इस तरह के मुकदमे दर्ज है। भारत का दिल कहे जाने वाले मध्य प्रदेश की धड़कन क्या कहती है जरा देखिए। यहां 230 विधायकों में से 187 करोड़पति हैं। विधानसभा में पहुंचे 94 माननीयों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं।

एडीआर के विश्लेषण पर गौर करें तो यह स्थिति शर्मनाक और चिंताजनक है। देश की राजधानी दिल्ली में 70 विधायकों में से तकरीबन 37 यानी 53 फीसदी पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश विधानसभा में विधायकों की संख्या 403 है जिनमें करीब 38 फीसदी यानी 155 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।

मंचों से ऐसे राजनेता जो महिला सुरक्षा की बात करते हैं, निजी तौर पर कितने गिरे हुए हैं इसका अंदाजा भी आप नहीं लगा सकते। महिलाओं के खिलाफ विभिन्न अपराधों को लेकर जो विश्लेषण सामने आया है वह बेहद चौंकाने वाला है। देश के 144 विधायकों ने महिलाओं से संबंधित अपराध की घोषणा की है। 14 विधायकों पर बलात्कार के आरोप में संगीन मुकदमे दर्ज हैं। संबंधित माननीय के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 में मामले पंजीकृत किए गए हैं। इस तरह की घोषणा ऐसे विधायकों ने खुद अपने चुनावी हलफनामे में किया है।

राजनीति में आने के पहले ऐसे लोग जो जमीन पर थे, वे राजनेता चुने जाने के बाद बेशुमार दौलत के मालिक बन गए। विधानसभाओं में आदर्शवाद का प्रवचन देने वाले ऐसे माननीयों के पास इतनी संपत्ति कहां से आ गई। इनके खिलाफ ईडी और सीबीआई की जांच क्यों नहीं लगाई जाती। बेशुमार दौलत संग्रह करने वाले सत्ता की हां में हां मिलाने के बाद जांच से क्यों बच जाते हैं। ऐसे लोगों पर आर्थिक अपराध का मुकदमा क्यों नहीं चलता।

भारत की राज्य विधानसभाओं में जिनको हमने चुन कर भेजा है उनमें प्रत्येक विधायकों की औसत संपत्ति 13.63 करोड़ है। जबकि जिन्होंने अपने खिलाफ आपराधिक मुकदमा का शपथ पत्र दिया है, उनकी औसत संपत्ति यानी एक विधायक के पास 16.36 करोड़ की संपत्ति है। जबकि जिन विधायकों के खिलाफ कोई भी मुकदमा दर्ज नहीं है। ऐसे माननीय साफ-सुथरी छवि वाले हैं। उनके पास भी औसतन 11.45 करोड़ रुपए की संपत्ति है।

दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक के माननीय मालामाल हैं। यहां 14 फीसदी विधायक अरबपति हैं। मतलब साफ है कि 223 विधायकों में 32 विधायक अरबपति हैं। इस तरह के हालत बेहद चिंताजनक है। मतलब साफ है कि राजनीतिक दलों का चाल, चरित्र और चेहरा सब कुछ गिर गया है। जनता अपने वोट का इस्तेमाल किसके लिए और क्यों करे, यह सबसे बड़ा सवाल है। देश की सर्वोच्च अदालत और चुनाव आयोग को इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। क्योंकि यह मसला लोकतंत्र की पवित्रता और जन विश्वास से जुड़ा है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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