इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारा बड़ी चुनौती, नहीं बन रही सहमति, बिहार से बंगाल तक बना दबाव

नई दिल्‍ली (New Delhi) । भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ बने इंडिया गठबंधन (india alliance) में सभी घटक दल अपनी तरफ से दबाव और प्रभाव जमाने की सियासत पर काम कर रहे हैं। पहले जदयू प्रमुख नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की नाराजगी की अटकलें थीं, तो अब ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के बैठक में नहीं आने पर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। सपा और शिवसेना उद्धव गुट का भी बैठक में न आना इंडिया गठबंधन में चल रही दबाव की रणनीति की ओर ही इशारा करता है।

दरअसल, साथ लड़ना है इसपर सहमति पहले बन गई थी लेकिन साथ कैसे लड़ना है और कितनी सीटों पर लड़ना है, किसकी क्या भूमिका होगी, इन गुत्थियों को लेकर ही दांवपेंच जारी है। अब शनिवार की बैठक के बाद माना जा रहा है कि शायद नेताओं की भूमिका का मुद्दा भी लगभग सुलझ गया है। अब ज्यादा पेंच सीटों को लेकर है और सभी अपने-अपने हिसाब से दबाव इसलिए बना रहे हैं कि उनकी हिस्सेदारी अधिक हो।

एक नेता ने कहा कि गठबंधन का असली आधार ही सीटों पर सहमति होना बनेगा। सूत्रों ने कहा, साथ लड़ने पर ही भाजपा को चुनौती दी जा सकती है इसलिए गठबंधन बना है। अब सबसे बड़ी चुनौती तो सीट शेयरिंग की ही है। सभी दल अपने लिए ज्यादा सीट चाहते हैं लेकिन कुछ दिनों में तस्वीर साफ हो जाएगी। मोल-तोल के बावजूद माना जा रहा है कि एक सहमति का फॉर्मूला तय हो जाएगा। कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा, यह तय हो जाए तो आगे यह निश्चित करना भी चुनौती होगी कि किन सीटों पर कौन पार्टी लड़ेगी। हालांकि, इसे लेकर भी बातचीत चल रही है। गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस का राष्ट्रीय प्रभाव है इसलिए वह सीट बंटवारे को लेकर क्षेत्रीय दलों के साथ अलग-अलग बैठकें कर रही है।

शनिवार की बैठक में नीतीश कुमार ने भी सीट शेयरिंग को सबसे बड़ी चुनौती बताया। उधर, ममता बनर्जी के बैठक में शामिल नहीं होने को भी सीट शेयरिंग और स्थानीय कांग्रेस इकाई से उनकी नाराजगी से जोड़कर देखा जा रहा है। पश्चिम बंगाल, केरल, महाराष्ट्र, यूपी, पंजाब, दिल्ली जैसे राज्यों में सीट शेयरिंग फॉर्मूला तय करना विपक्ष के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण है।

आंकड़ों से कांग्रेस पर दबाव बना रही तृणमूल
तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने पहले ही पश्चिम बंगाल में सीट बंटवारे पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने उन दो सीटों की पेशकश की थी, जो कांग्रेस ने 2019 में जीती थी। बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी ने पश्चिम बंगाल की कुल 42 सीटों में से 22 सीटें जीती थी। कांग्रेस ने दो और भाजपा ने 18 सीटें जीती थी। सूत्रों का कहना है कि टीएमसी ने मेघालय में एक सीट एवं असम में कम से कम दो सीटों पर लड़ने का प्रस्ताव दिया है। टीएमसी की गोवा इकाई एक सीट पर लड़ने की इच्छ जताई है। साल 2021 के गोवा विधानसभा चुनाव में टीएमसी को पांच प्रतिशत मत मिले थे। इस कारण टीएमसी यह दावा कर रही।

कांग्रेस को दो सीट देने की पेशकश पर टीएमसी का तर्क है कि पिछले विधानसभा एवं लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के वोट शेयर के आधार पर यह पेशकश की गई है। पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में से कम से कम 39 सीटों पर कांग्रेस को पांच फीसदी से कम वोट मिले थे। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को 2021 के विधानसभा चुनाव में 2.93 फीसदी, 2016 के विधानसभा चुनाव में 12.25 फीसदी एवं 2019 के लोकसभा चुनाव में 5.67 फीसदी वोट मिले थे। साल 2021 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी। हालांकि, बाद में सागरदिघी विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी, हालांकि विजयी उम्मीदवार बाद में तृणमूल में शामिल हो गया था। टीएमसी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस नेतृत्व बंगाल में जमीनी हकीकत को स्वीकार नहीं कर रहा है कि बंगाल में पार्टी कमजोर है। मेघालय, गोवा सहित अन्य राज्यों में भी चुनाव लड़ने का दावा तृणमूल ने ठोका है।

टीएमसी नेता का कहना है कि तृणमूल पश्चिम बंगाल में लड़ाई का नेतृत्व करने के लिए तैयार है। पार्टी इंडिया गठबंधन के घटक दल के रूप में भाजपा को हराने के लिए प्रतिबद्ध है। हमारी स्थिति डेटा के साथ स्पष्ट रूप से बताई गई है, इसलिए किसी को दिल्ली जाकर दोबारा चर्चा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। उधर, सपा भी सीटों पर कांग्रेस से व्यावहारिक रुख अपनाने का दबाव बना रही है। साथ ही बसपा को लेकर ऊहापोह की स्थिति पंद्रह तारीख के बाद खत्म होने की उम्मीद है।

बिहार में भी जेडीयू बना रहा दबाव
बिहार में भी जेडीयू के अधिकांश नेता 17 से कम सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं। उन्होंने वामपंथी दलों और कांग्रेस को आरजेडी से बात करने की सलाह दी है। वहीं, नीतीश कुमार ने संयजोक पद ठुकरा कर दबाव और बढ़ा दिया है।

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