
नई दिल्ली. तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) जब नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को मुख्यमंत्री (CM) उम्मीदवार घोषित न करने का सवाल बीजेपी से पूछ रहे हैं, तो बीजेपी (BJP) भी पूछती है कि महागठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस के पोस्टर से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की तस्वीर क्यों गायब हो गई? राहुल गांधी की तस्वीर के गायब होने के पीछे क्या कांग्रेस की कोई खास रणनीति है? यह सवाल बिहार की राजनीति में नई बहस को जन्म दे रहा है. राहुल गांधी पोस्टर से क्यों गायब थे? कांग्रेस के सूत्र कहते हैं कि ये रणनीति का हिस्सा है. तो कांग्रेस की रणनीति क्या थी?
बिहार से दूरी: सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी ने जानबूझकर बिहार से दूरी बनाई. वोटर अधिकार यात्रा के बाद से ही राहुल गांधी दोबारा बिहार नहीं गए. पहले वे विदेश दौरे पर थे, उसके बाद भारत वापस आकर भी वे पटना नहीं गए. नेतृत्व चाहता था कि टिकट बंटवारे को लेकर कांग्रेस मज़बूती से आरजेडी के सामने तोल-मोल करे. मामला राहुल गांधी तक पहुंचा ही नहीं और बिहार इंचार्ज व संगठन महासचिव वेणुगोपाल ही तेजस्वी यादव से निपटें. ऐसे में लालू परिवार और राहुल गांधी के बीच कोई मनमुटाव भी नहीं आएगा.
राहुल गांधी पोस्टर में नहीं: कांग्रेस के एक नेता का मानना है कि तेजस्वी यादव इस बात को लेकर ज़्यादा चिंतित थे कि उन्हें मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया जाएगा या नहीं, ना कि मुख्यमंत्री बनने को लेकर. चुनाव न्यूट्रल रहकर भी लड़ा जा सकता था, लेकिन आरजेडी सुनने को तैयार नहीं थी. इससे अति पिछड़ी जातियों को साधने में मदद मिलती. आरजेडी को संकेत दिए गए, पर तेजस्वी के चेहरे को लेकर पार्टी अड़ गई. इसलिए रणनीति के तहत राहुल गांधी इस ऐलान के लिए पटना नहीं पहुंचे, जबकि अशोक गहलोत जैसे अनुभवी नेता को यह काम सौंपा गया ताकि ग़लत संदेश भी ना जाए.
यही वजह है कि तेजस्वी के चेहरे को ही पोस्टर पर रखा गया और राहुल नज़र नहीं आए. कांग्रेस बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू तेजस्वी के ऐलान का नफा-नुकसान पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को समझा चुके थे.
उप मुख्यमंत्री के ऐलान को लेकर भी पेंच: कांग्रेस इससे भी बहुत खुश नहीं थी कि तेजस्वी यादव ने वीआईपी पार्टी के मुखिया मुकेश सहनी को उप मुख्यमंत्री उम्मीदवार का भरोसा दे दिया था. पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने बिहार कांग्रेस के नेताओं की बैठक में साफ कह दिया था कि कोई भी उप मुख्यमंत्री उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया जाएगा, नतीजे आने के बाद ही इस पर फैसला होगा. लेकिन तेजस्वी इसको लेकर भी अड़े हुए थे.
कई सीटों पर फांस: कांग्रेस की पूरी कोशिश थी कि आरजेडी से इस बात को लेकर बार्गेन किया जाए कि कांग्रेस को उसकी मज़बूत सीटें मिलें और यही वजह थी कि आख़िरी ओवर तक कांग्रेस ने तेजस्वी के ऐलान को टाला. कांग्रेस के एक नेता की मानें तो तेजस्वी भी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि उन्होंने भी सीटों के मामलों में अड़ियल रवैया दिखाया.
दिल्ली से राहुल की निगरानी: सूत्रों की मानें तो राहुल गांधी लगातार दिल्ली से इस पूरे मसले की निगरानी कर रहे थे. बिहार से दूरी बनाए रखने के बावजूद भी दिल्ली से उन्हें हर एक सीट पर अपडेट मिल रही थी.
संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल लगातार राहुल गांधी के निर्देश पर ही आख़िर तक सीटों को लेकर जोड़-तोड़ करते रहे. कहलगांव, नरकटियागंज, वैशाली, बछवारा जैसी सीटों पर सहयोगियों के अड़ियल रवैये को लेकर कांग्रेस को शक था कि आरजेडी ने आपस में दूसरे सहयोगियों से समझौता कर रखा है. यही वजह है कि कांग्रेस ने अपना पैर वापस नहीं खींचा और पहले फेज़ की कई सीटों पर कांग्रेस के सामने आरजेडी या लेफ्ट के प्रत्याशी हैं. यह सब राहुल गांधी की रजामंदी से हुआ. बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू सीधे राहुल गांधी के संपर्क में थे.
चुनावी प्रचार की तैयारी: रणनीति के मुताबिक राहुल गांधी और बाकी दिग्गज प्रचारकों को छठ त्योहार के ख़त्म होते ही चुनावी समर में उतारा जाएगा. राहुल गांधी ने बिहार नेतृत्व को यह साफ कह दिया है कि महागठबंधन में रहते हुए नेताओं का फ़ोकस कांग्रेस के प्रदर्शन और स्ट्राइक रेट को बेहतर करना है, और इसके लिए वे अपनी सारी ताकत झोंक दें.
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